“हम बाबा हैं।“
“कौन से बाबा?”
“हम कलियुग के बाबा हैं।“
“आप करते क्या हैं?”
“हम लोगों के दुःख और परेशानी दूर करते हैं।“
“क्या वास्तव में आप लोगों के दुःख व परेशानी दूर करते हैं?”
“अब अगर शक हैं तो हमारे भक्तों से जाकर पूछ लो। हम क्या बताएँ।“
“आपके भक्त इस देश की जनता के ही अंग हैं और क्या आपको लगता है कि जनता वाकई में कुछ बताने लायक है। फिर उससे पूछने से फायदा क्या? वैसे आप ही क्यों नहीं बता देते?”
“देखो बालक भक्तों के दुःख और परेशानी दूर हुए हों या न भी हुए हों लेकिन वे सब इस बात में यकीन करते हैं कि इनका खात्मा एक न एक दिन अवश्य होगा। ये आस ही उनमें ऊर्जा का संचार करती है और वे आनंद व प्रसन्नता का अनुभव करने लगते हैं।“
“और एक दिन इसी आस में भक्तों का राम नाम सत्य हो जाएगा लेकिन शायद उनके कष्ट दूर नहीं हो पाएँगे।“
“बालक ऐसी निराशावादी सोच से उबरो।“
“निराशावादी सोच नहीं बल्कि हकीक़त है। आप झूठे संसार में अपने भक्तों को रखकर उनकी भावनाओं से खिलवाड़ कर रहे हैं।“
“बालक हम खिलवाड़ नहीं बल्कि हमारे और हमारे भक्तों के जीने का जुगाड़ कर रहे हैं।“
“वो भला कैसे?”
“बालक इस संसार में इतने कष्ट हैं कि किसी भी व्यक्ति का जीना बहुत ही मुश्किल है। इसलिए हम अपने भक्तों को इस संसार से दूर स्वप्नों के संसार में जीने का तरीका सिखाते हैं।“
“हाँ और इसके बदले आपके मूर्ख भक्त आपकी झोली भरके आपको मालामाल कर देते हैं।“
“बालक ये तुम गलत कह रहे हो।“
“तो फिर सही बात क्या है?”
“सही बात ये है कि हम बाबा होने का फर्ज निभाते हुए अपने भक्तों को मोहमाया के बंधन से मुक्त करते हैं।“
“और अपनी मोहमाया के जाल में अपने भक्तों को क़ैद कर लेते हैं। बाबा वैसे आप किस धर्म के हैं?”
“बालक कार्ल मार्क्स ने कहा है कि धर्म अफीम है और हम किसी भी नशे के खिलाफ हैं इसलिए हम किसी भी धर्म का प्रतिनिधित्व नहीं करते। वैसे तुम हमारा पंथ, संप्रदाय अथवा धर्म बाबागीरी ही मान सकते हो।“
“मतलब आप अफीम की बजाय भक्तों को बाबागीरी नाम की चरस पिला रहे हैं।“
“बालक हम भक्तों को चरस नहीं बल्कि प्रेमरस पिला रहे हैं, जिससे विश्व में बंधुत्व की भावना का विकास हो सके।“
“खैर छोड़िए आप ये बताइए कि आपका असली नाम क्या है?”
“बालक सच कहें तो हमें हमारा असली नाम याद ही नहीं रहा है। अब तो हमें लंगोटवाले बाबा के नाम से ही जाना जाता है।“
“अच्छा बाबा एक बात और बताएँ।“
“अब बाकी बातें फिर कभी करेंगे फ़िलहाल हम अपने भक्तों को आशीर्वाद देने जा रहे हैं।“
यह कह बाबा बहुत ही अधीर हो कुछ समय पहले ही वहाँ पधारीं महिला भक्तों की ओर चलने को हुए। उनकी ऐसी हालत देखकर मेरे मुँह से अनायास ही निकल गया, “बाबा आपने तो अपना नाम लंगोटवाले बाबा बताया था पर आप तो लंगोट के ढीले लगते हैं।”
बाबा आँख मारके मुस्कुराते हुए बोले, “बालक नाम तो हमारा ढीले लंगोटवाले बाबा ही है, लेकिन बोलने में ढीले शब्द साइलेंट हो जाता है।”
लेखक : सुमित प्रताप सिंह
* कार्टून गूगल से साभार
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