लोकतंत्र के महाभारत की समाप्ति हो चुकी है। अब समय है गठजोड़ कर सरकार बनाने का। किसी भी राजनैतिक दल को जनता ने इतनी शक्ति प्रदान नहीं की कि वो केवल अपने दम पर सरकार बना सके। अब सरकार बनाने का पथ उस रस्सी का रूप धर चुका है जिस पर मुख्य राजनीतिक दल को नट बनकर करतब दिखाते हुए लोकतंत्र की चाबी हासिल करने जाना है। दूसरे राजनीतिक दल भी नट बनकर उस रस्सी पर करतब दिखाना चाहते हैं। किंतु ये तभी संभव है जब रस्सी पर पहले से करतब दिखा रहा नट अपना संतुलन खोकर नीचे आ गिरे। इसके लिए रस्सी के दोनों ओर खड़े छोटे नटों को प्रलोभन दिया जाता है कि वह बड़े नट को दिए गए अपने वचन से नट जाएं तो उन्हें सुनहरा अवसर प्रदान किया जाएगा। छोटे नट विचारमग्न हो अपने नफे-नुकसान का गुणा-भाग करने में व्यस्त हो जाते हैं कि कहीं सबसे बड़े नट का साथ छोड़कर कम बड़े नट के साथ मिल गए और वहां उतना सम्मान नहीं मिला तो उनके नटने के परिणामस्वरूप उनके राजनीतिक भविष्य की तो खाट ही खड़ी हो जाएगी। छोटे नटों के उत्तर की प्रतीक्षा में कम बड़े नट रस्सी पर चल रहे सबसे बड़े नट के साथ-साथ नीचे ही इस आस के साथ करतब दिखाना आरंभ कर देते हैं कि कब उनके भाग्य का छींका टूटे और सबसे बड़ा नट अपने-आप ही रस्सी से फिसल कर नीचे धरती पर ऐसा गिरे कि भविष्य में उठकर अपने पैरों पर चल ही न पाए। फिर तो रस्सी भी उनकी होगी और छोटे नटों का साथ भी रहेगा। जनता दर्शक बनी उन नटों के करतबों को देखकर सोचने लगती कि देश में अब गठबंधन की अपेक्षा नटबंधन का दौर आ चुका है।
रचना तिथि - 6 जून, 2024
लेखक: सुमित प्रताप सिंह
कार्टून - श्याम जगोता
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