रविवार, 26 मई 2024

अभिभावक-शिक्षक भेंटवार्ता


     जिस प्रकार की इन दिनो गंभीर अभिभावक-शिक्षक भेंटवार्ता होती है, ऐसी भेंटवार्ता हमारे भाग्य में कभी थी ही नहीं। सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले हम भोले-भाले विद्यार्थी विद्या का अर्थ ग्रहण करने की अपेक्षा विद्या की अर्थी निकालने का अधिक चाव रखते थे। हमारे माता-पिता को अपने-अपने काम से ही फुर्सत नहीं मिला करती थी, जो हम और हमारी पढ़ाई पर ध्यान दे पाते। पिताजी अपनी नौकरी के भंवर में ऐसे फंसे हुए थे कि उससे निकलना बहुत कठिन था और माँ को घर के काम से ही पल भर का चैन नहीं मिलता था रही सही कसर हमारे शिक्षक महोदय पूरी कर दिया करते थे। उनको अपने छात्रों को पढ़ाने से अधिक प्राइवेट ट्यूशन से दो पैसे की ऊपरी कमाई करने में अधिक आनंद आता था। जब कभी उन्हें कक्षा में पढ़ाने को विवश होना पड़ता था तो वह ब्लैक बोर्ड पर कुछ लिखने के बजाय अपने डंडे से छात्रों के शरीर पर लिखाई अधिक किया करते थे। न तो शिक्षकों ने हमारे अभिभावकों को किसी भेंटवार्ता के लिए बुलाया न ही किसी छात्र ने अपने अभिभावकों को शिक्षक से मिलने का सुझाव देने का साहस किया। सभी छात्र चुपचाप शिक्षकों के मजबूत डंडों की भेंटवार्ता अपने-अपने शरीर से इस आस के साथ करवाते रहते थे, कि चाहे बुद्धि का विकास हो न हो लेकिन डंडे खा-खाकर उन सबके शरीर में सहनशक्ति और मजबूती का विकास तो होकर ही रहेगा।

     आज के समय की बात ही कुछ और है। अब अभिभावक स्कूल की फीस भी भरते हैं और अपने बच्चे की हर छोटी-मोटी गलतियों के लिए शिक्षक की फटकार भी सहते हैं। असल में देखा जाए तो स्कूल में भारी भरकम फीस भरने के बावजूद पढ़ाने की नैतिक जिम्मेवारी अभिभावकों के जिम्मे ही है। वे बेचारे नौकरी और घर की जिम्मेदारी निभाने के साथ-साथ अपने नौनिहालों को पढ़ाने के नाम पर स्वयं बचपन को न चाहते हुए भी जीते हुए फिर से अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए विवश हैं। शिक्षकों की भी विवशता है वे बेचारे पूरी कक्षा के विद्यार्थियों पर भला एक साथ कैसे ध्यान दे सकते हैं। इसलिए अभिभावकों को शिक्षकों द्वारा ये जिम्मेवारी सौंप दी जाती है, कि या तो अपने बच्चों को ढंग से पढ़ाओ या फिर उनका बेकार रिजल्ट भुगतने को तैयार रहो। ऐसे सभी कड़े निर्देश देने के लिए प्रत्येक स्कूल में समय-समय पर अभिभावक-शिक्षक डांटवार्ता का आयोजन किया जाता है   

     अभिभावक-शिक्षक डांटवार्ता के दौरान शिक्षक अपने मुख पर गांभीर्य और दुख का ऐसा आवरण चढ़ा लेते हैं, कि एक बार को तो ऐसा प्रतीत होता है कि भेंटवार्ता से पूर्व वे किसी न किसी भले मानस की चिता को मुखाग्नि देकर आए हों। अपने बच्चे के भविष्य के प्रति चिंतित भयभीत अभिभावक शिक्षक द्वारा बच्चे के विषय में दिए गए आदेशात्मक कड़े निर्देश सिर झुका कर विवशतावश सुनते रहते हैं। बच्चे को पढ़ाई की मशीन बनाने की प्रक्रिया पर इतनी विस्तृत व गंभीर वार्ता होती है कि इस वार्ता के आगे भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाली कश्मीर वार्ता भी अपनी लघुता पर खिन्नता प्रकट करने लगे। भेंटवार्ता में अभिभावकों को बच्चे की शिकायत करते हुए अप्रत्यक्ष रूप से डांट की इतनी अधिक मात्रा प्रदान की जाती है, कि एक बार को तो इच्छा होती है कि अभिभावक-शिक्षक भेंटवार्ता के स्थान पर इसका नाम बदल कर अभिभावक-शिक्षक डांटवार्ता रख दिया जाए।

लेखक : सुमित प्रताप सिंह

शनिवार, 18 मई 2024

लोकतंत्र के नज़रबट्टू


     स बार चुनावी महाभारत में फिर से राजनीतिक दलों द्वारा फिल्म एवं खेल जगत के सितारों को टिकट देकर चुनावी दंगल में जनता के बीच लाया गया है। आशा है कि सदा की भांति जनता फिल्मी पर्दे पर दिखाए गए अभिनेताओं व अभिनेत्रियों के जलवों एवं खेल के मैदान में खेल जगत के सितारों द्वारा किए गए अभूतपूर्व प्रदर्शन पर मोहित हो उन्हें अपना जनप्रतिनिधि चुन ही लेगी। चुने जाने के बाद वे कथित जनप्रतिनिधि अपने चुनावी क्षेत्र से ऐसे लापता हो जायेंगे जैसे गधे के सिर से सींग। वे जनता के दुःख दर्द सुनने, उसकी परेशानियों का समाधान करने व अपने चुनावी क्षेत्र के हाल चाल की खबर रखने के अलावा हर वो काम करेंगे जो उनकी सुख सुविधा और यश को बढ़ाने का कार्य करें। जनता के बीच अंधभक्ति और चमचत्व में सर्वोच्च डिग्री धारक उन जनप्रतिनिधियों के नाकारापन पर आंख बंद किए रहेंगे। यदि कोई भूल से भी उनकी आँखें खोलने का प्रयास भी करेगा तो उस बेचारे पर देशद्रोही अथवा सांप्रदायिक होने की मोहर लगा दी जाएगी।

     उन कथित जनप्रतिनिधियों को अपने क्षेत्र की सुध तब आएगी जब अगले चुनावी रण का बिगुल फिर से बजेगा। इसके बाद कभी वे खेतों में दराती लेकर फसल काटने का ड्रामा करेंगे तो कभी किसी गरीब के जाकर उसके सीने से चिपट कर उसका सच्चा हितैषी बनने का स्वांग करेंगे। जो नौटंकी के मास्टर माइंड होंगे वे किसी गरीब के घर जाकर उसके खून-पसीने से जोड़े गए अन्न को हजम कर उस गरीब व उसके परिवार को अगले कुछ दिनों भूख से दो-दो हाथ करने के लिए छोड़ कर किसी और गरीब के घर भोजन कर गरीबों का हितैषी बनने के अभियान पर निकल पड़ेंगे।

     उनके चुनावी फंड के भाग्य में जनता की भलाई में खर्च होने के बजाय यूं निठल्लेपन पड़े रहते हुए आंसू बहाना ही लिखा होगा। चुनावी फंड को जनप्रतिनिधि द्वारा जनता के कल्याण हेतु खर्च करने के स्वप्न को जनता द्वारा दिन में जागते हुए देखा जाएगा। किन्तु उसका ये स्वप्न कभी भी पूरा नहीं हो पायेगा। कथित जनप्रतिनिधि के कार्यकाल के पूरा होने पर वापिस जमा होना ही उसकी नियति होगी।

    राजनीतिक दलों के कर्मठ कार्यकर्त्ता दलों के कार्यक्रमों में दरी बिछाने या नेताओं की जय- जयकार करने को ही अपना सौभाग्य समझेंगे क्योंकि उनके ज्ञान चक्षु खुलने के बाद उन्हें इस दिव्य ज्ञान की प्राप्ति चुकी है कि चुनावी टिकट के लिए जनता के बीच जाकर उसकी सेवा करने के बजाय चर्चित चेहरा होना अधिक आवश्यक होता है। इसलिए वे कर्मठ कार्यकर्त्ता अंधभक्ति और चमचत्व की मिश्री नींबू पानी में अच्छी तरह घोलने के बाद एक घूँट में उसे पी जायेंगे। इसके बाद अपने-अपने राजनीतिक दल का झंडा उठा कर कथित जनप्रतिनिधियों के अनुगामी बनकर उनकी जयकार से आकाश को गुंजायमान कर देंगे। यह देख कर लोकतंत्र भरपूर स्नेह के साथ लोकतंत्र के नज़रबट्टू कथित जनप्रतिनिधिओं को अपने सीने से लगा लेगा।

लेखक : सुमित प्रताप सिंह

रचना तिथि– 13/05/2024

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