शनिवार, 18 मई 2024

लोकतंत्र के नज़रबट्टू


     स बार चुनावी महाभारत में फिर से राजनीतिक दलों द्वारा फिल्म एवं खेल जगत के सितारों को टिकट देकर चुनावी दंगल में जनता के बीच लाया गया है। आशा है कि सदा की भांति जनता फिल्मी पर्दे पर दिखाए गए अभिनेताओं व अभिनेत्रियों के जलवों एवं खेल के मैदान में खेल जगत के सितारों द्वारा किए गए अभूतपूर्व प्रदर्शन पर मोहित हो उन्हें अपना जनप्रतिनिधि चुन ही लेगी। चुने जाने के बाद वे कथित जनप्रतिनिधि अपने चुनावी क्षेत्र से ऐसे लापता हो जायेंगे जैसे गधे के सिर से सींग। वे जनता के दुःख दर्द सुनने, उसकी परेशानियों का समाधान करने व अपने चुनावी क्षेत्र के हाल चाल की खबर रखने के अलावा हर वो काम करेंगे जो उनकी सुख सुविधा और यश को बढ़ाने का कार्य करें। जनता के बीच अंधभक्ति और चमचत्व में सर्वोच्च डिग्री धारक उन जनप्रतिनिधियों के नाकारापन पर आंख बंद किए रहेंगे। यदि कोई भूल से भी उनकी आँखें खोलने का प्रयास भी करेगा तो उस बेचारे पर देशद्रोही अथवा सांप्रदायिक होने की मोहर लगा दी जाएगी।

     उन कथित जनप्रतिनिधियों को अपने क्षेत्र की सुध तब आएगी जब अगले चुनावी रण का बिगुल फिर से बजेगा। इसके बाद कभी वे खेतों में दराती लेकर फसल काटने का ड्रामा करेंगे तो कभी किसी गरीब के जाकर उसके सीने से चिपट कर उसका सच्चा हितैषी बनने का स्वांग करेंगे। जो नौटंकी के मास्टर माइंड होंगे वे किसी गरीब के घर जाकर उसके खून-पसीने से जोड़े गए अन्न को हजम कर उस गरीब व उसके परिवार को अगले कुछ दिनों भूख से दो-दो हाथ करने के लिए छोड़ कर किसी और गरीब के घर भोजन कर गरीबों का हितैषी बनने के अभियान पर निकल पड़ेंगे।

     उनके चुनावी फंड के भाग्य में जनता की भलाई में खर्च होने के बजाय यूं निठल्लेपन पड़े रहते हुए आंसू बहाना ही लिखा होगा। चुनावी फंड को जनप्रतिनिधि द्वारा जनता के कल्याण हेतु खर्च करने के स्वप्न को जनता द्वारा दिन में जागते हुए देखा जाएगा। किन्तु उसका ये स्वप्न कभी भी पूरा नहीं हो पायेगा। कथित जनप्रतिनिधि के कार्यकाल के पूरा होने पर वापिस जमा होना ही उसकी नियति होगी।

    राजनीतिक दलों के कर्मठ कार्यकर्त्ता दलों के कार्यक्रमों में दरी बिछाने या नेताओं की जय- जयकार करने को ही अपना सौभाग्य समझेंगे क्योंकि उनके ज्ञान चक्षु खुलने के बाद उन्हें इस दिव्य ज्ञान की प्राप्ति चुकी है कि चुनावी टिकट के लिए जनता के बीच जाकर उसकी सेवा करने के बजाय चर्चित चेहरा होना अधिक आवश्यक होता है। इसलिए वे कर्मठ कार्यकर्त्ता अंधभक्ति और चमचत्व की मिश्री नींबू पानी में अच्छी तरह घोलने के बाद एक घूँट में उसे पी जायेंगे। इसके बाद अपने-अपने राजनीतिक दल का झंडा उठा कर कथित जनप्रतिनिधियों के अनुगामी बनकर उनकी जयकार से आकाश को गुंजायमान कर देंगे। यह देख कर लोकतंत्र भरपूर स्नेह के साथ लोकतंत्र के नज़रबट्टू कथित जनप्रतिनिधिओं को अपने सीने से लगा लेगा।

लेखक : सुमित प्रताप सिंह

रचना तिथि– 13/05/2024

1 टिप्पणी:

श्याम जागोता ने कहा…

राजनीति के शोपीस हमेशा से आते रहे हैं नेताओं को भी रेडीमेज प्रसिद्ध लुभाती है

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