गुरुवार, 30 जून 2022

हिंदी साहित्य की आस आशा शर्मा

     राजस्थान के बीकानेर जिले की आशा शर्मा पेशे से इंजीनियर और दिल से साहित्यकार हैं। इन्होंने 2014 ईसवी में लेखन आरंभ किया और इनकी लेखनी ने अनवरत चलते हुए सात पुस्तकों का सृजन कर डाला। इनकी रचनाओं ने जहाँ देश के प्रतिष्ठित समाचारपत्रों एवं पत्रिकाओं में स्थान बनाया, वहीं अनेकों पुरस्कार-सम्मान इनकी झोली में आकर चैन की सांस ले रहे हैं। हिंदी साहित्य को बड़ी आस है कि आशा शर्मा नित्य नई रचनाओं से उसे समृद्ध करती रहेंगीं। हमने कुछ प्रश्नों के माध्यम से इनकी साहित्यिक यात्रा के विषय में जानने का लघु प्रयास किया है।

आपको लेखन का रोग कब और कैसे लगा?

आशा शर्मा - लेखन से भी बहुत पहले मुझे पढ़ने का रोग लगा था। लिखना शायद उसी रोग का साइड इफेक्ट है, जिसके लक्षण पहली बार 2014 ईसवी में दिखाई दिए थे। इसके बाद यह साइड इफेक्ट मुख्य रोग में बदल गया और तब से ही यह रोग लाइलाज बना हुआ है।

लेखन से आप पर कौन सा अच्छा अथवा बुरा प्रभाव पड़ा?

आशा शर्मा - जिंदगी में जब कोई नया अध्याय जुड़ता है तो जीवन पर उसका प्रभाव पड़ना लाज़िमी है। लेखन से भी बहुत से प्रभाव पड़े जिन्हें अच्छे या बुरे में बांटना मेरे लिए संभव नहीं। लेखन से जुड़ने के बाद मेरा सामाजिक दायरा बहुत बढ़ गया, जो कि एक अच्छा प्रभाव माना जा सकता है, लेकिन सामाजिक दायरा बढ़ने से निश्चित ही मेरा भी टाइम अर्थात व्यक्तिगत समय कम हो गया, जिसे बुरा प्रभाव कहा जा सकता है।

क्या आपको लगता है कि लेखन समाज में कुछ बदलाव ला सकता है?

आशा शर्मा - क्यों नहीं बदलाव ला सकता? कभी आपने देशभक्ति के गीत सुने हैं? उन गीतों को सुनकर सीमा पर खड़े सैनिकों की बाजुएं फड़कने लगती हैं। दर्दभरी कविताएं आंखों में पानी ला देती हैं। कितने ही ऐसे बड़े-बड़े सामाजिक आंदोलन हुए हैं, जो कलम की शक्ति से ही सफल हुए हैं। लेखक अपने समय से आगे चलते हैं। समाज में उठ रही नित नई समस्याओं के सकारात्मक समाधान कलम के माध्यम से ही लोगों तक पहुंचते हैं। लेखन से ही बच्चों में संस्कारों का बीजारोपण होता है। कुल मिलाकर मैं तो इस कथ्य से पूरी तरह सहमत हूँ, कि समाज में यदि कोई बदलाव ला सकता है वो कलम है।

आपकी सबसे प्रिय रचना कौनसी है और क्यों?

आशा शर्मा - ये तो आपने वैसा ही प्रश्न पूछ लिया, कि आपको अपनी संतानों में से सबसे अधिक प्रिय कौन सी है? लेखक को अपनी हर रचना संतान जैसी ही प्रिय होती है, लेकिन जैसे कोई संतान अपनी किसी विशेष योग्यता के कारण दिल के जरा अधिक नजदीक होती है उसी तरह कुछ रचनाएं भी हमारे दिल में अपना विशेष स्थान रखती हैं। मुझे अपनी बहुत सी रचनाएं समान रूप से प्रिय हैं। जिनमें से मैं अपनी कहानी 'साढ़े आठ बजे की कॉल'  का नाम ले सकती हूँ। इस रचना को मैंने एक अलग अंदाज में लिखा है। इसके अतिरिक्त मुझे अपनी एक पद्य रचना भी विशेष प्रिय है, जिसे मैंने दर्द के अतिरेक में लिखा था। बच्चों की बहुत सी कविताएं एवं कहानियां और कुछ लघुकथाएं भी मेरे दिल के बहुत करीब हैं।

आप अपने लेखन से समाज को क्या संदेश देना चाहती हैं?

आशा शर्मा - मैं किसी को कोई संदेश नहीं देना चाहती, लेकिन चूंकि मैं बच्चों के लिए अधिक लिखती हूँ इसलिए मेरी इच्छा है कि हमारे बच्चे आने वाले समय में अच्छे नागरिक बनें। मेरा प्रयास रहता है कि मैं अपनी रचनाओं के माध्यम से उन्हें अच्छी आदतें, अच्छा व्यवहार और अच्छा आचरण सिखाऊं। यदि बचपन संस्कारित होगा तो हर पीढ़ी आदर्श होगी। मैं यही कहना चाहती हूं कि हर परिवार अपने बच्चों को वो सभी संस्कार आवश्यक रूप से दे जो समाज को सही राह दिखाएँ और राष्ट्र की उन्नति में सहायक हों।

शनिवार, 25 जून 2022

राजा राम की महिमा गाते जयपाल सिंह परमार

     मध्यप्रदेश के पन्ना जिले के जयपाल सिंह परमार की साहित्यिक यात्रा सन् 1981 ईसवी से सामान्य शब्द संयोजन के साथ आरम्भ होकर आकाशवाणी एवं विभिन्न पत्र पत्रिकाओं की पगडंडियों से होते हुए 'कल्पवृक्ष सेंहुड़ लगता है' नामक काव्य संग्रह के पड़ाव तक पहुंच गई है। इनके अनुसार साहित्य के सागर में इनकी लेखकीय नौका के आगे का सफर ईश्वर की कृपा पर निर्भर है। राजा राम की महिमा गाते हुए जयपाल सिंह परमार निरंतर साहित्य सृजन में जुटे हुए हैं। हमने कुछ प्रश्नों के माध्यम से इनकी साहित्यिक यात्रा के विषय में जानने का लघु प्रयास किया है।

आपको लेखन का रोग कब और कैसे लगा?

जयपाल सिंह परमार - सन् 1981 ईसवी में पहली बार महाविद्यालय छात्र संघ का अध्यक्ष बनने पर मंच से कुछ पंक्तियाँ पढ़ने से मिली प्रशंसा से इस रोग का जन्म हुआ था। इसके बाद यह रोग उम्र के साथ साथ बढ़ने लगा फिर जैसा कि आप जानते है कुछ दिन बाद यह रोग लाइलाज हो गया। अब तो यह स्थिति है कि पुरानी खांसी की तरह जब चाहे उभर आता है।

लेखन से आप पर कौन सा अच्छा अथवा बुरा प्रभाव पड़ा?

जयपाल सिंह परमार - लेखन कार्य से मेरे ऊपर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ा, क्योंकि यह तो माँ सरस्वती की आराधना है और आराधना से किसी का बुरा नहीं होता बल्कि समय का सदुपयोग करने का एवं समाज में अपनी पहचान बनाने का अच्छा अवसर प्राप्त होता है। यही मेरे साथ हुआ है क्योंकि ग्रामीण परिवेश से महाविद्यालयीन शिक्षा के लिए महानगर आने पर मेरी जो पहचान बनी वह माँ सरस्वती की कृपा से मेरे लेखन की वजह से ही है।

क्या आपको लगता है कि लेखन समाज में कुछ बदलाव ला सकता है?

जयपाल सिंह परमार - यदि हम युगों-युगों से चली आ रही सामाजिक व्यवस्था के बदलाव का अध्ययन करें तो देख सकते हैं कि समाज में बदलाव का जन्म लेखन की कोख से ही हुआ है। हर बड़े सामाजिक बदलाव के मूल में उस समय का लेखक और लेखन ही रहा है। हाँ लेखन के द्वारा इस बदलाव के लिए आवश्यक है, कि जिम्मेदारी के साथ इसे उस व्यक्ति तक पहुंचाया जाए जिसके लिए उसे लिखा गया है। समाज में व्याप्त कुरीतियों एवं विसंगतियों से व्यथित हो कर जो पीड़ा होती है, उसी से कुछ लिखने के लिए कलम उठ जाती है इस उम्मीद के साथ कि शायद इस व्यवस्था में कुछ बदलाव ला सकूं।

आपकी सबसे प्रिय स्वरचित रचना कौन सी है और क्यों?

जयपाल सिंह परमार - मेरी सर्वाधिक प्रिय रचना मेरे काव्य संग्रह 'कल्पवृक्ष सेंहुड़ लगता है' की दूसरे क्रम की रचना 'महिमा राम राजा की' है, जो ईश्वर के प्रति मेरा समर्पण है।

आप अपने लेखन से समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं?

जयपाल सिंह परमार - प्रत्येक लेखक की भांति मैं भी समाज में भाईचारे एवं देश प्रेम की भावना को बनाए रखने का सन्देश देना चाहता हूँ। यदि मेरे इस प्रयास से समाज में थोड़ा सा भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है तो मैं स्वयं को धन्य समझूंगा।

मंगलवार, 21 जून 2022

साहित्य के बंधु कुमार गौरव अजीतेन्दु

      बिहार की राजधानी पटना के कुमार गौरव अजीतेन्दु नौकरी के लिए संघर्ष करते-करते निराशा व अवसाद के भंवर में फँसकर डूबने ही वाले थे कि अचानक उनकी मुठभेड़ साहित्य से हो गयी। इस मुठभेड़ का सुखद परिणाम यह निकला कि अजीतेन्दु साहित्य के बंधु बन गए और गीत-नवगीत, छंद, कहानी, लघुकथा, मुक्तक, हाइकु इत्यादि विधाओं में लिखने और प्रकाशित होने लगे। इनकी हाइकू की एक पुस्तक मुक्त उड़ान प्रकाशित हुई है व गीत-नवगीत, छंद, कहानी, लघुकथा, मुक्तक, हाइकु समेत सभी विधाओं में इनके अनेक संयुक्त साहित्यिक संकलन आ चुके हैं। अजीतेन्दु देश के विभिन्न समाचारपत्रों-पत्रिकाओं व रेडियो स्टेशन पर अपनी नियमित उपस्थित दर्शा रहे हैं। हमने कुछ प्रश्नों के माध्यम से इनकी साहित्यिक यात्रा के विषय में जानने का लघु प्रयास किया है।

आपको लेखन का रोग कब और कैसे लगा?

कुमार गौरव अजीतेन्दु - अपनी बात कहूँ तो ये शौक जन्म से है। बचपन से ही मैं तुकबंदी करता रहा हूँ। हाँ अगर विधागत लेखन और नियमित रूप से बतौर लेखक काम करने की बात हो तो ये चीज तब शुरू हुई जब मैं निराशा में था और अवसाद में बस डूबने ही वाला था। 2011-12 के समयकाल में कई बार सरकारी नौकरी की परीक्षा पास की, लेकिन आगे चलकर काम नहीं बन सका। उसी समय इंटरनेट पर सर्फिंग करते हुए मुझे जागरण जंक्शन वेबसाइट दिखी, जो ब्लॉग लिखने की सुविधा देती है। जागरण जंक्शन पर लिखना शुरू किया और बस तब से ही ये लेखन यात्रा चल रही है। 

लेखन से आप पर कौन सा अच्छा अथवा बुरा प्रभाव पड़ा?

कुमार गौरव अजीतेन्दु - जी, जैसा कि मैंने अभी बताया कि लेखन मैंने तब शुरू किया जब मैं अवसाद के अंधेरे में डूबने वाला था तो सबसे पहला लाभ तो मुझे यही लगता है कि लेखन ने मुझे अवसादित होने से बचा लिया इसके अलावा लेखन से जो अनुभूति का दायरा और बल बढ़ता है, वो तो एडिशनल प्रॉफिट रहता है। बुरा प्रभाव ये कहा जा सकता है कि लेखन आपके मन को कोमल कर देता है। ये दुनिया ऐसी है कि हर जगह कोमलता के साथ आप नहीं चल सकते। सर्वाइवल के लिए थोड़ी कठोरता भी जरूरी है। 

क्या आपको लगता है कि लेखन समाज में कुछ बदलाव ला सकता है?

कुमार गौरव अजीतेन्दु - लेखक ही तो बदलाव लाता है। लेखन के जरिए जो वैचारिक यातायात की परिस्थिति बनती है, उससे समाज सीधे प्रभावित होता है। लेखन का विस्तार केवल हम भावुक कविताओं तक नहीं मान सकते बल्कि ये अखबार से लेकर रंगमंच और चलचित्रों की दुनिया जैसे सभी वृहत पक्षों में अपना दखल रखता है। इतिहास भी तो लेखन ही होता है। 

आपकी सबसे प्रिय स्वरचित रचना कौन सी है और क्यों?

कुमार गौरव अजीतेन्दु - अपनी तो सभी रचनाएँ प्रिय हैं। हाँ जिन रचनाओं पर माँ से खास तारीफ मिलती है, उनसे विशेष जुड़ाव हो जाता है। ऐसी ही एक कहानी प्यार नहीं खोना है, जो कि दो पीढ़ियों की लव स्टोरी है। वैसे तो क्राइम और सस्पेंस थ्रिलर लिखना पसंद करता हूँ, लेकिन कभी-कभी कुछ स्पेशल मूड में लव भी लिखा जाता है। 

आप अपने लेखन से समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं?

कुमार गौरव अजीतेन्दु - मैं खुद भी काफी प्रैक्टिकल रहने वाला इंसान हूँ और वही भाव लिखना भी चाहता हूँ। संदेश मेरा अपने पाठकों के लिए जीवन की वास्तविकता को समझाना है। मैं फिल्मी अंदाज का लेखन नहीं करता।


शनिवार, 18 जून 2022

आसमां छूने का जोश जगाते सुयश कुमार द्विवेदी

 

      त्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के सुयश कुमार द्विवेदी पेशे से सहायक लोक अभियोजन अधिकारी हैं, लेकिन हृदय से रचनाकार हैं। अब तक दो पुस्तकें लिख चुके सुयश अपनी कलम पाठकों में उत्साह बढ़ाने के लिए चला रहे हैं। इनकी पहली पुस्तक 'सपनों को अपने जी ले रे' जहाँ आपको अपने सपनों को साकार करने के लिए प्रेरित करेगी, वहीं शीघ्र ही प्रकाशित होने जा रही इनकी दूसरी पुस्तक 'छू ले आसमां' आपके भीतर ऊंचाइयों का आकाश छूने का जोश जगाएगी। सुयश की रचनाएँ विभिन्न समाचारपत्रों एवं पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं तथा लेखन के लिए शोभना सम्मान-2020 समेत अनेकों पुरस्कार-सम्मान प्राप्त कर चुके हैं। हमने कुछ प्रश्नों के माध्यम से इनकी साहित्यिक यात्रा के विषय में जानने का लघु प्रयास किया है।

आपको लेखन का रोग कब और कैसे लगा?

सुयश कुमार द्विवेदी -  मुझे हिंदी साहित्य पढ़ने का शौक बचपन से ही है। जब मैं कक्षा चौथी में था, तभी से मेरी दिलचस्पी कहानियों, कविताओं एवं नाटकों के प्रति काफी गहरी हो गयी। जब मैं कोई भी कहानी या काव्य की पुस्तक पाता तो उसे एक बार में पढ़ कर ही साँस लेता था। पढ़ते-पढ़ते कब मैंने लिखना शुरू कर दिया, मुझे ठीक से याद नहीं है। जहाँ तक मुझे याद है मैंने आठवीं कक्षा में अपनी  पहली कविता 'प्रेरणा' की रचना की थी।

लेखन से आप पर कौन सा अच्छा अथवा बुरा प्रभाव पड़ा?

 सुयश कुमार द्विवेदी - लेखन से मेरे जीवन पर बहुत ही सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। मुझे यह लगता है कि व्यक्ति के जीवन में सबसे अच्छा दोस्त कोई होता है, तो वो होती है पुस्तकें। मैंने अपने अब तक जीवन में सैकड़ों कहानियां, कविताएँ एवं दर्जनों उपन्यासों को पढ़ा है। आत्मकथा, यात्रा वृतांत, लघुकथाएं एवं नाटकों की कोई गिनती नहीं है। कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की लेखनी की सहजता और सरलता का मैं कायल रहा हूं। लेखन से व्यक्ति के जीवन में नए-नए विषयों के अध्ययन की जिज्ञासा, चिंतन की गुणवत्ता, व्यक्तित्व का निखार, समय की पाबंदी, आत्म अनुशासन एवं सकारात्मक दृष्टिकोण का विकास होता है और ऐसा मैंने अनुभव भी किया है। 

क्या आपको लगता है कि लेखन समाज में कुछ बदलाव ला सकता है?

सुयश कुमार द्विवेदी - कहते हैं कि साहित्य समाज का दर्पण होता है। लेखन से समाज में व्यापक प्रभाव पड़ता है। हर काल में समाज के चिंतकों, मनीषियों, ऋषियों, लेखकों एवं कवियों ने अपने लेखन के माध्यम से समाज को जागृत करने का पुरजोर यत्न किया है और वे काफी हद तक समाज में व्यापक परिवर्तन लाने में सफल रहे। जब-जब समाज को जरूरत पड़ी, इन लोगों ने समाज का मार्ग प्रशस्त किया है एवं अपनी लेखनी चलाकर समाज को दर्पण दिखाया है। संत कबीर का लेखन इसका सर्वोत्तम उदाहरण है।

आपकी सबसे प्रिय स्वरचित रचना कौन सी है और क्यों?

सुयश कुमार द्विवेदी - मैंने अब तक दो सौ से अधिक कविताओं और गीतों की रचना की है। मुझे मेरी सभी रचनाएँ पसंद हैं, क्योंकि मैं रचनाएँ व्यवसाय के लिए नहीं अपितु आत्मसंतुष्टि के लिए लिखता हूँ। मैं लिखता हूँ क्योंकि मुझे लिखना पसंद है। मेरी सबसे प्रिय रचना 'सुबह का अखबार' है। इस रचना के लिए मुझे गोरखपुर विश्वविद्यालय से प्रथम पुरस्कार भी मिल चुका है।

आप अपने लेखन से समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं?

सुयश कुमार द्विवेदी - सच कहूँ तो मैं अपने लेखन से समाज से कोई संदेश अभी नहीं दे सकता, क्योंकि मैं अपने आपको इस योग्य ही नहीं समझता। समाज को संदेश देने का कार्य बड़े लेखकों एवं कवियों का है। जैसा कि मैंने पहले ही कहा है कि मैं आत्मसंतुष्टि के लिए लिखता हूँ और अगर मेरे लेखन से यदि कोई व्यक्ति प्रेरणा पा सके तो यह मेरे लिए गौरव का विषय होगा।

बुधवार, 15 जून 2022

हिंदी लेखन जगत की सलामी बल्लेबाज रेनू सैनी

     दिल्ली के पंचशील विहार की निवासी रेनू सैनी लेखन जगत की सलामी बल्लेबाज हैं। सोलहवें वसंत में जब किशोर-किशोरियां किशोरावस्था के मद में खोए रहते हैं, उस समय रेनू सैनी ने लेखन में डूबकर अपनी पहली रचना का सृजन किया और इनकी वो रचना देश के प्रमुख समाचारपत्र में प्रकाशित भी हुई। इसके बाद इन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। देश के जाने-माने समाचारपत्रों व पत्रिकाओं में प्रकाशित होने के साथ-साथ अब तक इनकी कुल 25 पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है तथा इनका अगला लक्ष्य पुस्तकों का अर्द्ध शतक जड़ने का है। इन्हें लेखन के क्षेत्र में अनेकों सम्मान व पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं तथा इनकी रचनाओं का कई भाषाओं में अनुवाद भी किया जा चुका है। हमने कुछ प्रश्नों के माध्यम से इनकी साहित्यिक यात्रा के विषय में जानने का लघु प्रयास किया है।

आपको लेखन का रोग कब और कैसे लगा?

रेनू सैनी - मुझे बचपन से ही लिखना और पढ़ना बेहद पसंद था। केवल दस वर्ष की आयु से अपने आप ही विचारों को कॉपी में क्रमबद्ध करना आरंभ कर दिया था। स्कूल में हिन्दी की शिक्षिका लिखने व पढ़ने के लिए बहुत प्रेरित करती थीं। संयोगवश हिन्दी की शिक्षिका और मैं हमनाम थे। इसलिए मुझे उनकी हर बात को पूरा करने में एक विशेष आनंद की अनुभूति होती थी । जब वह मेरे लेखन की प्रशंसा करतीं थीं तो बहुत अच्छा लगता था । इसी तरह लिखना और पढ़ना चलता रहा । पहली रचना सोलह वर्ष की आयु में नवभारत टाइम्स में प्रकाशित हुई थी । उसके बाद तो रचनाएं प्रकाशित होने का सिलसिला चल पड़ा । 

लेखन से आप पर कौन सा अच्छा या बुरा प्रभाव पड़ा?

रेनू सैनी - लेखन से मुझ पर सदैव अच्छा प्रभाव पड़ा है। लेखन हमारी कल्पना एवं तर्कशक्ति को बेहद मजबूत कर देता है । लेखन करने और पढ़ने से व्यक्ति के अंदर परिपक्वता आती है । लेखन ने मेरा शारीरिक एवं बौद्धिक विकास किया है ।

क्या आपको लगता है कि लेखन समाज में कुछ बदलाव ला सकता है?

रेनू सैनी - जी बिल्कुल,  साहित्य समाज का दर्पण होता है । लेखन से केवल समाज ही नहीं बदलता अपितु भाषा को भी एक नवीन पहचान मिलती है । जैसा कि हाल ही में प्रसिद्ध साहित्यकार गीताजंलि श्री के वृहद् हिन्दी उपन्यास ‘रेत समाधि’ को अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार मिला है । इससे हिन्दी भाषा एक नए फलक पर स्थापित हुई है । प्रेमचंद की कहानियों से लेकर चित्रा मुद्गल, मन्नू भंडारी, ममता कालिया, सत्य व्यास और दिव्य प्रकाश दुबे जैसे लेखकों ने साहित्य को समाज के यथार्थ से जोड़ा है । 

आपकी अपनी सबसे प्रिय रचना कौन सी है और क्यों है?

रेनू सैनी - मेरे द्वारा रचित मेरी सबसे प्रिय रचना ‘आखरदीप’ नामक कहानी है । यह कहानी शिक्षा के ऊपर है । इसमें एक बच्चा निम्न वर्ग के सब लोगों के अंदर शिक्षा की अलख जगाता है और वे सभी बच्चे एक दूसरे को शिक्षित करने लग जाते हैं । 

आप अपने लेखन से समाज को क्या संदेश देना चाहती हैं?

रेनू सैनी - मैं अपने लेखन से समाज को यही संदेश देना चाहती हूँ, कि सभी लोग सकारात्मक रहें। देश की समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करने में अपनी योग्यता दर्शाएं । मैं सेल्फ हेल्प की रचनाएं अधिक लिखती हूं ताकि मैं स्वयं भी विपरीत परिस्थितियों का सामना हिम्मत और धैर्य से कर सकूं । मैंने यही अनुभव  किया है कि यदि हम पढ़ते-लिखते रहें और विपरीत परिस्थितियों में सकारात्मक साहित्य हाथ में हो तो हर कठिन से कठिन बाधा पर विजय पायी जा सकती है ।

शनिवार, 11 जून 2022

साहित्य के दीप जलातीं कात्यायनी सिंह 'दीप'

     कात्यायनी सिंह 'दीप' बिहार के सासाराम में पिछले कुछ वर्षों से साहित्य के दीप जला रहीं हैं। स्कूली शिक्षा के दौरान साहित्य के प्रति लगाव धीमे-धीमे इन्हें पाठन से लेखन की ओर खींच लाया। विज्ञान से स्नातक कात्यायनी की रचनाएं देश के प्रतिनिधि समाचारपत्रों एवं पत्रिकाओं  में उपस्थिति दर्ज करवा चुकी हैं तथा इनकी तीन पुस्तकें साहित्य जगत में पदार्पण कर चुकी हैं। हमने कुछ प्रश्नों के माध्यम से इनकी साहित्यिक यात्रा के विषय में जानने का लघु प्रयास किया है।

आपको लेखन का रोग कब और कैसे लगा?

कात्यायनी सिंह 'दीप' - साहित्य में मेरी रूचि बहुत पहले से ही है। मेरे माता-पिता दोनों साहित्य प्रेमी थे। घर में पत्रिकाएं और साहित्यिक पुस्तकें आया करती थी। शिवानी मेरी प्रिय लेखिका रही हैं। इनके सभी उपन्यास मैंने दसवीं कक्षा में ही पढ़ लिए थे। बाद के दिनों में रेणु, चित्रा मुद्गल, मनोहर श्याम जोशी, प्रभा खेतान एवं उषा प्रियंवदा इत्यादि लेखकों को भी पढ़ती रही। लेखन का रोग मुझे चार या पांच साल से लगा है। एक दिन एक कहानी को पढ़ते समय मुझे अनुभव हुआ, कि ऐसी कहानियां तो मैं भी लिख सकती हूँ। तब से अब तक लेखन से जुड़ी हुई हूँ और जुड़ाव ऐसा है कि यह एक रोग सा ही हो गया है।

लेखन से आप पर कौन सा अच्छा या बुरा प्रभाव पड़ा?

कात्यायनी सिंह 'दीप' -  लेखन से बुरा प्रभाव तो कभी नहीं पड़ा, बल्कि अच्छा ही प्रभाव पड़ा है। खुद की बातों को लेखन के माध्यम से व्यक्त करना, सकारात्मक सोच को बढ़ावा देता है। 

क्या आपको लगता है कि लेखन समाज में कुछ बदलाव ला सकता है?

कात्यायनी सिंह 'दीप' - हाँ, लेखन समाज में बिल्कुल बदलाव ला सकता है। हम लेखक लिखते ही हैं कि समाज में कुछ बदलाव ला सकें। और बदलाव आया भी है। सबसे बड़ा बदलाव तो स्त्रियों की स्थिति में आया हैं। शिक्षा का बदलाव,  अपनी इच्छाओं को व्यक्त करने का बदलाव, अपने अनुरूप काम करने का बदलाव, गलत परम्पराओं को नकारने का बदलाव, विवाह को लेकर सही-गलत फैसला करने का बदलाव,  मनपसंद कैरियर चुनने का बदलाव, समाज में व्याप्त  विसंगतियों में बदलाव।  लिखना और बोलना गलत के खिलाफ प्रतिरोध ही तो है। और प्रतिरोध दर्ज हो रहा है तथा समाधान भी मिल रहा है।

आपकी सबसे प्रिय रचना कौन सी है और क्यों?

कात्यायनी सिंह 'दीप' - जिस प्रकार माँ को अपने सभी बच्चे एक समान प्रिय होते हैं, उसी प्रकार एक लेखक को उसकी प्रत्येक रचना प्रिय होती है। हाँ कुछ रचनाएं होती हैं जो खास हो जाती है। मुझे अपनी दो रचनाएँ सर्वाधिक प्रिय हैं जो कि क्रमशः 'सुर्ख रंग' और 'बदतमीज' हैं। इनके सर्वाधिक प्रिय होने का कारण इनमें निहित संदेश है। जहाँ 'सुर्ख रंग' नामक कहानी में इसके पात्र पति-पत्नी अलग-अलग धर्म व जाति के होते हुए भी एक-दूसरे का सम्मान करते हुए खुशहाल वैवाहिक जीवन बिताते हुए समाज को प्रेम व सौहार्द का संदेश देते हैं। वहीं 'बदतमीज' नामक कविता ऐसी लड़की की करुण व्यथा है, जो विवाह के पश्चात ससुराल और ससुरालियों को प्रेम व सम्मान देने के बावजूद उनसे अपमान व वितृष्णा ही पाती है।

आप अपने लेखन से समाज को क्या संदेश देना चाहती हैं?

कात्यायनी सिंह दीप -  मैं अपने लेखन के माध्यम से समाज में फैली विसंगतियों, गलत परम्पराओं की समाप्ति एवं स्त्रियों के लिए समाज में स्थान और सम्मान दिलवाना चाहती हूँ।

बुधवार, 8 जून 2022

कलम घिसतीं संगीता सिंह तोमर

      संगीता सिंह तोमर दिल्ली में ही जन्मीं व पढ़ी-लिखीं। जब संगीता स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद कॉलेज में पहुँचीं तो उनके हृदय में साहित्य के प्रति प्रेम जाग्रत हुआ। रचना को पढ़ कर उसकी  समालोचना करना उनकी आदत में शुमार हो गया । समालोचना करते-करते एक दिन संगीता लेखिका बन गयीं। इनके लेखन का शुभारंभ ब्लॉग लेखन से हुआ। ऐसा समय भी आया कि इनका ब्लॉग 'कलमघिस्सी' इतना चर्चित हुआ, कि विश्व की चर्चित महिला हिंदी ब्लॉगरों में सूची में संगीता का नाम सम्मिलित किया गया। लघुकथा, आलेख, कहानी, बाल कहानी, व्यंग्य व कविता इत्यादि विधाओं में संगीता कई वर्षों से अपनी कलम घिस रही हैं। फिलहाल साहित्य सेवा करते हुए संगीता उच्च शिक्षा प्राप्त करने में व्यस्त हैं। हमने कुछ प्रश्नों के माध्यम से इनकी साहित्यिक यात्रा के विषय में जानने का लघु प्रयास किया है।

आपको लेखन का रोग कब और कैसे लगा?

संगीता सिंह तोमर - मुझे साहित्य पढ़ने का बचपन से शौक रहा है। पढ़ते-पढ़ते एक दिन लिखने लगी। शुभचिंतकों की शुभकामनाओं से मेरी रचनाओं को प्रकाशन का सौभाग्य मिला और इस प्रकार मेरी लेखन की गाड़ी चल पड़ी।

लेखन से आप पर कौन सा अच्छा अथवा बुरा प्रभाव पड़ा?

संगीता सिंह तोमर - जहाँ तक मेरा अनुभव है कि लेखन से मेरे व्यक्तित्व पर अभी तक तो कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ा है, बल्कि ये कहा जाये तो अतिश्योक्ति नहीं होगी कि मुझ पर लेखन से अच्छा प्रभाव ही पड़ा है।  जीवन में सकारात्मकता आयी है और नकारात्मकता दूर हुई है।

क्या आपको लगता है कि लेखन समाज में कुछ बदलाव ला सकता है?

संगीता सिंह तोमर - बिलकुल लगता है। मेरे विचारानुसार लेखन में वह शक्ति है जो समाज में बदलाव लाने की भूमिका का निर्वहन कर सकती है।

आपकी सबसे प्रिय रचना कौन सी है और क्यों?

संगीता सिंह तोमर - वैसे तो मुझे अपनी सारी रचनाएँ ही प्रिय हैं, किंतु मुझे मेरी कविता 'मुझे जन्म दो माँ' विशेष रूप से प्रिय है। भ्रूण हत्या से व्यथित होकर इस रचना का सृजन हुआ था। इस कविता का विषय मेरे मन को बहुत ही अधिक भाता है।

आप अपने लेखन से समाज को क्या संदेश देना चाहती हैं?

संगीता सिंह तोमर - प्रत्येक लेखक अपने लेखन से समाज को संदेश देना चाहता है। मैं भी उनमें से एक हूँ। अब ये समाज पर निर्भर करता है कि वह मेरी रचनाओं से संदेश लेना भी चाहता या नहीं।

शनिवार, 4 जून 2022

साहित्य की संदूकची भरतीं रुपाली सक्सेना

      ध्यप्रदेश के भोपाल के हर्षवर्धन नगर क्षेत्र की रुपाली सक्सेना की हिंदी साहित्य से भेंट एक पाठक के रूप में हुई थी। पेशे से वस्त्र सज्जाकार रूपाली सक्सेना का साहित्य से इतना लगाव हो गया, कि एक दिन इन्होंने लिखना भी आरंभ कर दिया। इनकी लेखन यात्रा का शुभारंभ इतना धुंआधार हुआ, कि इनकी रचनाएं देश भर के समाचारपत्रों एवं पत्रिकाओं की शोभा बढ़ाने लगीं। इनके द्वारा किए गए साहित्यिक परिश्रम के फलस्वरूप इनकी पहली पुस्तक 'स्नेह की संदूकची' प्रकाशित हुई व कुछ साझा संकलनों में भी इनकी रचनाओं ने अपनी दमदार भागीदारी सुनिश्चित की। अब तक रुपाली सक्सेना अपने लेखन के लिए कई सम्मान व पुरस्कार प्राप्त कर चुकीं हैं तथा अपनी साहित्य की संदूकची में नित प्रतिदिन नई-नई रचनाओं एवं सम्मान व पुरस्कारों को भरने में रत हैं। हमने इनसे कुछ प्रश्नों के माध्यम से इनकी साहित्यिक यात्रा के विषय में जानने का लघु प्रयास किया है।

आपको लेखन का रोग कब और कैसे लगा?

रुपाली सक्सेना - मेरी पारिवारिक पृष्ठभूमि साहित्यिक है अतः साहित्य से मेरा जुड़ाव बचपन से ही था। स्कूल-कॉलेज के दिनों में भी मैं साहित्यिक गतिविधियों में बढ़-चढ़कर भाग लिया करती थी। मैं लिखती तो थी, लेकिन अपने मन के उद्गारों को लिखकर मैं अपनी डायरी में छिपा दिया करती थी। विवाह होने के कई वर्षों के बाद अपनी बड़ी बहनों के प्रोत्साहन के बाद मैंने फिर से लिखना आरंभ कर दिया।

लेखन से आप पर कौन सा अच्छा अथवा बुरा प्रभाव पड़ा?

रुपाली सक्सेना - लेखन से मुझ पर बुरा नहीं बल्कि हमेशा की तरह सकारात्मक प्रभाव ही पड़ता है। जिंदगी जीने का और उसे समझने का एक नया दृष्टिकोण मुझे लेखन से ही मिलता है।

क्या आपको लगता है कि लेखन से समाज में कुछ बदलाव लाया जा सकता है?

रुपाली सक्सेना - जी बिल्कुल, मेरा विश्वास है कि लेखनी में जो शक्ति होती है वो किसी और में नहीं होती है।

आपकी सबसे प्रिय रचना कौन सी है और क्यों?

रुपाली सक्सेना - 'आसान नहीं है औरतों के लिए कविता ग़ज़ल या गीत लिखना' मेरी सबसे प्रिय रचना है। मेरी यह रचना उन सभी गृहणियों को समर्पित है, जो अपनी व्यस्त दिनचर्या में से समय निकाल कर सृजन कार्य कर रहीं हैं।

आप अपने लेखन से पाठकों को क्या संदेश देना चाहेंगीं?

रुपाली सक्सेना - मेरी कोशिश रहती है कि मैं अपने लेखन से समाज में व्याप्त कुरीतियों और नकारात्मकता को दूर कर सकारात्मकता का संचार करूँ।

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