उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के सुयश कुमार द्विवेदी पेशे से सहायक लोक अभियोजन अधिकारी हैं, लेकिन हृदय से रचनाकार हैं। अब तक दो पुस्तकें लिख चुके सुयश अपनी कलम पाठकों में उत्साह बढ़ाने के लिए चला रहे हैं। इनकी पहली पुस्तक 'सपनों को अपने जी ले रे' जहाँ आपको अपने सपनों को साकार करने के लिए प्रेरित करेगी, वहीं शीघ्र ही प्रकाशित होने जा रही इनकी दूसरी पुस्तक 'छू ले आसमां' आपके भीतर ऊंचाइयों का आकाश छूने का जोश जगाएगी। सुयश की रचनाएँ विभिन्न समाचारपत्रों एवं पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं तथा लेखन के लिए शोभना सम्मान-2020 समेत अनेकों पुरस्कार-सम्मान प्राप्त कर चुके हैं। हमने कुछ प्रश्नों के माध्यम से इनकी साहित्यिक यात्रा के विषय में जानने का लघु प्रयास किया है।
आपको लेखन का रोग कब और कैसे लगा?
सुयश कुमार द्विवेदी - मुझे हिंदी साहित्य पढ़ने का शौक बचपन से ही है। जब मैं कक्षा चौथी में था, तभी से मेरी दिलचस्पी कहानियों, कविताओं एवं नाटकों के प्रति काफी गहरी हो गयी। जब मैं कोई भी कहानी या काव्य की पुस्तक पाता तो उसे एक बार में पढ़ कर ही साँस लेता था। पढ़ते-पढ़ते कब मैंने लिखना शुरू कर दिया, मुझे ठीक से याद नहीं है। जहाँ तक मुझे याद है मैंने आठवीं कक्षा में अपनी पहली कविता 'प्रेरणा' की रचना की थी।
लेखन से आप पर कौन सा अच्छा अथवा बुरा प्रभाव पड़ा?
सुयश कुमार द्विवेदी - लेखन से मेरे जीवन पर बहुत ही सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। मुझे यह लगता है कि व्यक्ति के जीवन में सबसे अच्छा दोस्त कोई होता है, तो वो होती है पुस्तकें। मैंने अपने अब तक जीवन में सैकड़ों कहानियां, कविताएँ एवं दर्जनों उपन्यासों को पढ़ा है। आत्मकथा, यात्रा वृतांत, लघुकथाएं एवं नाटकों की कोई गिनती नहीं है। कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की लेखनी की सहजता और सरलता का मैं कायल रहा हूं। लेखन से व्यक्ति के जीवन में नए-नए विषयों के अध्ययन की जिज्ञासा, चिंतन की गुणवत्ता, व्यक्तित्व का निखार, समय की पाबंदी, आत्म अनुशासन एवं सकारात्मक दृष्टिकोण का विकास होता है और ऐसा मैंने अनुभव भी किया है।
क्या आपको लगता है कि लेखन समाज में कुछ बदलाव ला सकता है?
सुयश कुमार द्विवेदी - कहते हैं कि साहित्य समाज का दर्पण होता है। लेखन से समाज में व्यापक प्रभाव पड़ता है। हर काल में समाज के चिंतकों, मनीषियों, ऋषियों, लेखकों एवं कवियों ने अपने लेखन के माध्यम से समाज को जागृत करने का पुरजोर यत्न किया है और वे काफी हद तक समाज में व्यापक परिवर्तन लाने में सफल रहे। जब-जब समाज को जरूरत पड़ी, इन लोगों ने समाज का मार्ग प्रशस्त किया है एवं अपनी लेखनी चलाकर समाज को दर्पण दिखाया है। संत कबीर का लेखन इसका सर्वोत्तम उदाहरण है।
आपकी सबसे प्रिय स्वरचित रचना कौन सी है और क्यों?
सुयश कुमार द्विवेदी - मैंने अब तक दो सौ से अधिक कविताओं और गीतों की रचना की है। मुझे मेरी सभी रचनाएँ पसंद हैं, क्योंकि मैं रचनाएँ व्यवसाय के लिए नहीं अपितु आत्मसंतुष्टि के लिए लिखता हूँ। मैं लिखता हूँ क्योंकि मुझे लिखना पसंद है। मेरी सबसे प्रिय रचना 'सुबह का अखबार' है। इस रचना के लिए मुझे गोरखपुर विश्वविद्यालय से प्रथम पुरस्कार भी मिल चुका है।
आप अपने लेखन से समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं?
सुयश कुमार द्विवेदी - सच कहूँ तो मैं अपने लेखन से समाज से कोई संदेश अभी नहीं दे सकता, क्योंकि मैं अपने आपको इस योग्य ही नहीं समझता। समाज को संदेश देने का कार्य बड़े लेखकों एवं कवियों का है। जैसा कि मैंने पहले ही कहा है कि मैं आत्मसंतुष्टि के लिए लिखता हूँ और अगर मेरे लेखन से यदि कोई व्यक्ति प्रेरणा पा सके तो यह मेरे लिए गौरव का विषय होगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें