शुक्रवार, 24 मई 2019

कविता - घर


घर तब घर बनता है
जब माँ-बाप की
स्नेहिल छाया इसमें
प्रसन्न हो रहती हो
घर तब घर बनता है
जब पति-पत्नी का
विश्वास और समर्पण
एक-दूजे की बाहों में
बड़े प्रेम से रहते हों
घर तब घर बनता है
जब भाई-बहन का
स्नेह-प्रेम दृढ़ता से
इसमें टहला करता है
घर तब घर बनता है
जब संतान के हृदय में
बड़ों के आदर संग जिम्मेवारी
गहराई से बसती हो
ये सब न हों तो
घर, घर न होकर
केवल मकान ही रहता है
जिसको सदैव
प्रतीक्षा रहती  है कि
आदर, विश्वास, समर्पण
स्नेह, प्रेम और जिम्मेवारी
उससे आकर मिलें कभी
और वो मकान का चोगा तज
एक प्यारा सा घर हो जाये।

लेखक - सुमित प्रताप सिंह

3 टिप्‍पणियां:

कविता रावत ने कहा…

सच घर केवल ईंट गारे से नहीं बनते
बहुत सुन्दर प्रस्तुति

Sumit Pratap Singh ने कहा…

कविताजी कविता पर प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार

Sumit Pratap Singh ने कहा…

धन्यवाद

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...