मंगलवार, 26 जुलाई 2016

व्यंग्य : देवी का अट्टहास



   देवी अत्यधिक क्रोध में हैं। अपने महल में चहल-कदमी करते हुए वो कुछ बुदबुदा रही हैं। ध्यान से सुनने पर ज्ञात होता है कि वो 'तिलकतराजू और तलवार/इनके मारो जूते चारनामक अपने साम्राज्य के पवित्र मन्त्र का बेचैनी से जाप कर रही हैं। उनके हाथ में टंगे भारी-भरकम बटुए में पाँच पैसेदस पैसेबीस पैसेचवन्नी व अठन्नी के रूप में उनके मातहत देवों ने उछल-कूद करते हुए आसमान सिर पर उठा रखा है। यह देख देवी एक पल को मुस्कुराती हैं और अगले पल फिर से उस पावन मन्त्र को जपना आरम्भ कर देती हैं।

अचानक देवी के बटुए से पाँच पैसे की तेज आवाज गूँजती है "पेश करो पेश करो अपनी बेटी करो।" पाँच पैसे का समर्थन उनके मातहत देवों का पूरा दल पूरे जोर-शोर से करता है। देवी गर्वित मुस्कान के साथ पाँच पैसे को देखती हैं और उसे शाबासी देती हैं। देवी की शाबासी पाकर पाँच पैसा आनंदित हो नृत्य करने लगता है और वह अपनी माँग को फिर से चीख-चीखकर उठाना आरम्भ कर देता है। पाँच पैसे के संग पूरा दल भी मस्ती में नाचते हुए गाने लगता है "पेश करो पेश करो अपनी बेटी करो।" गाने को सुनकर देवी भी आनंदित हो झूमने लगती हैं। यह देख एक चवन्नी अत्यधिक उत्साहित हो जीभ काटने के बदले 50 लाख का ईनाम घोषित कर डालती है। चवन्नी की घोषणा सुन एक पल को तो देवी अचंभित हो जाती हैं फिर अगले ही क्षण वो चवन्नी को उठाकर उसे प्यार से चूम लेती हैं। अब चवन्नी ख़ुशी के मारे झूमने लगती है। उसके साथ पूरा दल भी झूमना शुरू कर देता है।

उधर दूसरी ओरजिस बेटी को पेश करने की माँग करते हुए देवी और उनके मातहत देवों ने हल्ला मचा रखा थाउसकी माँ देवी से पूछती है कि उसकी बेटी को कैसे पेश किया जाएउसे दिग्विजयी कल्पना के अनुसार पेश किया जाए या फिर शरदीय चाहत के अनुसारउसे आज़मीय पसंद के अनुसार सजाकर प्रस्तुत किया जाए या लालुई स्वप्न के स्टाइल मेंइसके अलावा बेटी की माँ देवी से ये भी पूछती है कि उनके मातहत देवों से गलती से कोई गलती तो नहीं होगी?

बेटी की माँ के प्रश्नों को सुनकर देवी अट्टहास करने लगती हैं। उनके संग-संग उनके बटुए में चिल्लर के रूप में मौजूद उनके मातहत देव भी अट्टहास करना आरम्भ कर देते हैं। उनके अट्टहास के फलस्वरूप उनका महल अचानक जोर-जोर से हिलने लगता है। यह देख देवी और उनके मातहत देव घबरा जाते हैं। देवी को कुछ-कुछ आभास होने लगता है कि शायद उनके स्वनिर्मित दैवीय तिलिस्म के चकनाचूर होने का निश्चित समय आ गया है।


लेखक : सुमित प्रताप सिंह

रविवार, 17 जुलाई 2016

व्यंग्य : चाँद-सीढ़ी का खेल


   चाँदनी रात में आसमान में खिले चाँद को देखकर फुटपाथ पर फटी चादर पर लेटे हुए जिले ने नफे से कहा ,"भाई नफे देख दुनिया चाँद तक पहुँच गयी और एक हम हैं जो इस फुटपाथ से ऊपर न उठ सके।"

जिले के बगल में मैली-कुचैली चादर पर करवट बदलकर सोने की कोशिश करते हुए नफे ने जब यह बात सुनी तो मंद-मंद मुस्कुराने लगा।

यह देख जिले ने पूछा, "भाई तू मेरी बात पर कुछ कहने की बजाय मुस्कुरा क्यों रहा है?"

नफे बोला, "जिले तू जब भी देसी ठर्रा चढ़ाता है, तो अक्सर ये ही सवाल पूछता है और मैं तुझे वही जवाब देता हूँ जिसे तू हर बार भूल जाता है।"
जिले ने बिना चाँद से नज़र हटाए कहा, "भाई पूरे दिन की हाड़-तोड़ मेहनत के बाद एक ये देसी ठर्रा ही तो एक सहारा बचता है वर्ना रात को जाने नींद आए भी कि नहीं। खैर तू मेरे सवाल का जवाब दे।"
नफे ने मुस्कुराते हुए बताया, "दुनिया चाँद पर नहीं पहुँची बल्कि दुनिया के कुछ चुनिंदा लोग चाँद पर पहुँचे हैं। वो भी इसलिए क्योंकि उन सबको चाँद तक पहुँचने की सीढ़ी मिली और उस सीढ़ी को पकड़कर सँभालनेवाले अपने कुछ लोग भी, जिन्होंने अपने लोगों के चढ़ते समय सीढ़ी को तब तक कसकर पकड़े रखा जब तक कि वो अपने मनमाफिक चाँद पर पहुँच नहीं गए। जब किसी और ने उस सीढ़ी के सहारे अपने मनमर्जी के चाँद पर चढ़कर पहुँचने का विचार किया तो या तो सीढ़ी को कहीं छुपा दिया गया या फिर उन बेचारों के आधी सीढ़ी तक पहुँचने पर सीढ़ी वापस खींच ली गयी और उनको बीच अधर में ही लटकने को छोड़ दिया गया।"
"भाई मैंने तो तेरे से सीधा सा सवाल पूछा था लेकिन तूने तो ऐसा जवाब दिया कि दिमाग घूमने लगा। लगता है तू आज जल्दी उतार देगा।" जिले अपना सिर सहलाते हुए बोला।
नफे हँस दिया, "भाई मैंने जवाब तो सीधा सा दिया है। दुनिया के कुछ गिने-चुने लोग चाँद-सीढ़ी का खेल खेलते हुए सीढ़ी चढ़कर अपने-अपने चाँद तक पहुँच गए और बाकी या तो जिंदगी की भाग-दौड़ में फँसे पड़े हैं या फिर इस चाँदनी रात में सड़क के किनारे के किसी फुटपाथ पर हम दोनों की तरह फटेहाल पड़े हैं।"
जिले उठकर घुटनों के बल बैठा और अपना माथा पीटते हुए बोला, "हे भगवान तूने दोस्त भी दिया तो कैसा दिया? साले को बिना पिए चढ़ गयी है और बहकी-बहकी बातें कर रहा है। यहाँ पूरे दिन रिक्शा खींचकर एक अदद ठर्रे का जुगाड़ कर कुछ पल के लिए शांति पाने की सोची थी वो भी इसकी सिर घुमाऊ बातों ने हासिल न करने दी।" 
नफे ने अपनी मैली-कुचैली चादर को समेटा और जिले से बोला, "ओ शांति के चाहनेवाले जिले अपना माथा बाद में पीट लियो, फ़िलहाल तो जल्दी से यहाँ से बिस्तर गोल कर ले वर्ना जिंदगी गोल होने में ज्यादा वक़्त नहीं लगेगा।"
"क्यों क्या बात हो गयी?" जिले ने सिर खुजाते हुए पूछा।
नफे ने सड़क की ओर इशारा करते हुए बोला, "स्पीड और रोमांच के शौक़ीन सड़कों पर उतर चुके हैं। न जाने कौन सी कार का दिल फुटपाथ पर आ जाए और हमारा राम नाम सत्य हो जाए।"
घबराकर जिले ने भी अपनी चादर समेटी और नफे के संग हो लिया, "भाई ये स्पीड और रोमांच के दीवाने आज इतने मस्ताने क्यों हो रखे हैं?"
नफे ने जिले के कंधे पर हाथ रखते हुए समझाया, "भाई ये लोग पवित्र काम को पूरा करने के लिए इतने मस्ताने हो रखे हैं।“

"भाई ऐसा कौन सा पवित्र काम है जो ये पूरा करना चाहते हैं?" जिले ने उबासी लेते हुए पूछा।

नफे ने एक पल को नींद से अपनी आँखें मलते हुए जिले को देखा फिर मुस्कुराते हुए बोला, "हम जैसे दुखियारों को बिना सीढ़ी के चाँद पर पहुँचाने का पवित्र काम।"

"फिर से चाँद और सीढ़ी! आज मैं तुझे भी बिना सीढ़ी के चाँद पर पहुँचाकर रहूँगा।" इतना कहकर जिले नफे के पीछे भागा।

नफे आगे-आगे और जिले उसके पीछे-पीछे भागा जा रहा था। आसमान में चाँद उन दोनों को देखकर मुस्कुराते हुए अगले पहर में छुपने की तैयारी कर रहा था। सूरज अंगड़ाई लेते हुए दुनिया को रौशन करने के लिए अपनी कमर कस रहा था। जिले और नफे के रिक्शे एक-दूसरे को मुस्कुराकर देखते हुए अपने-अपने सारथी की राह तकते हुए एक और दिन को जीते हुए जीवन संघर्ष की एक और नई सीढ़ी चढ़ने को तत्पर हो रहे थे।

कुछ क्षण ही बीते थे कि जिले-नफे आसमान में टहलते हुए दिखाई दिए। वे दोनों नीचे धरती पर अपने-अपने मृत शरीरों को पुलिस द्वारा शव वाहन में डाले जाने की क्रिया देख रहे थे।

"भाई नफे!" जिले उदासी से बोला।

नफे ने जिले के कंधे पर हाथ रखा और बोला, "हाँ बोल भाई जिले!"

"तेरी बात सच निकली। हम बिना सीढ़ी के ही यहाँ पहुँच गए। हमने बचने की कोशिश तो बहुत की लेकिन रफ़्तार और रोमांच के शौकीनों ने हमें दूसरे फुटपाथ पर भी नहीं छोड़ा। जरा सी आँख लगते ही उन्होंने हमें यहाँ पहुँचा दिया।" जिले ने एक पल को अपने मृत शरीर और फिर कुछ दूर पर विस्मित चाँद को देखते हुए कहा। 
नफे मुस्कुराया, "दुःखी मत हो बल्कि उन शौकीनों को धन्यवाद दे जिनकी कृपा से हमें सारी परेशानियों एवं दिक्कतों से एक पल में ही मुक्ति मिल गयी।"
"वो तो ठीक है भाई पर मुझे हम दोनों के रिक्शों की चिंता सता रही है। न जाने अब उनका क्या होगा?" जिले चिंता में डूबता हुआ बोला।
नफे ने समझाया, "उन्हें चलानेवाले और कोई जिले-नफे मिल जायेंगे।"
"और फिर किसी दिन वो भी हम दोनों की तरह किसी फुटपाथ से बिना सीढ़ी के सीधे चाँद पर आएँगे।" कहकर जिले ने ठहाका लगाया।
जिले के साथ नफे भी खिलखिलाकर हँसने लगा। जब चाँद ने यह देखा तो वह भी अपने पास आ रहे नए अतिथियों का स्वागत करते हुए खिलखिलाने लगा। 
कुछ क्षणों के पश्चात् नया दिन उग आया और उस नए दिन के साथ फिर से आरम्भ हो गया चाँद पर सीढ़ी लगा उसपर पहुँचने के लिए चाँद-सीढ़ी का खेल।

लेखक : सुमित प्रताप सिंह 
* चित्र गूगल से साभार 
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