देवी अत्यधिक क्रोध में हैं। अपने महल में चहल-कदमी करते हुए वो कुछ बुदबुदा रही हैं। ध्यान से सुनने पर ज्ञात होता है कि वो 'तिलक, तराजू और तलवार/इनके मारो जूते चार' नामक अपने साम्राज्य के पवित्र मन्त्र का बेचैनी से जाप कर रही हैं। उनके हाथ में टंगे भारी-भरकम बटुए में पाँच पैसे, दस पैसे, बीस पैसे, चवन्नी व अठन्नी के रूप में उनके मातहत देवों ने उछल-कूद करते हुए आसमान सिर पर उठा रखा है। यह देख देवी एक पल को मुस्कुराती हैं और अगले पल फिर से उस पावन मन्त्र को जपना आरम्भ कर देती हैं।
अचानक देवी के बटुए से पाँच पैसे की तेज आवाज गूँजती है "पेश करो पेश करो अपनी बेटी करो।" पाँच पैसे का समर्थन उनके मातहत देवों का पूरा दल पूरे जोर-शोर से करता है। देवी गर्वित मुस्कान के साथ पाँच पैसे को देखती हैं और उसे शाबासी देती हैं। देवी की शाबासी पाकर पाँच पैसा आनंदित हो नृत्य करने लगता है और वह अपनी माँग को फिर से चीख-चीखकर उठाना आरम्भ कर देता है। पाँच पैसे के संग पूरा दल भी मस्ती में नाचते हुए गाने लगता है "पेश करो पेश करो अपनी बेटी करो।" गाने को सुनकर देवी भी आनंदित हो झूमने लगती हैं। यह देख एक चवन्नी अत्यधिक उत्साहित हो जीभ काटने के बदले 50 लाख का ईनाम घोषित कर डालती है। चवन्नी की घोषणा सुन एक पल को तो देवी अचंभित हो जाती हैं फिर अगले ही क्षण वो चवन्नी को उठाकर उसे प्यार से चूम लेती हैं। अब चवन्नी ख़ुशी के मारे झूमने लगती है। उसके साथ पूरा दल भी झूमना शुरू कर देता है।
उधर दूसरी ओर, जिस बेटी को पेश करने की माँग करते हुए देवी और उनके मातहत देवों ने हल्ला मचा रखा था, उसकी माँ देवी से पूछती है कि उसकी बेटी को कैसे पेश किया जाए? उसे दिग्विजयी कल्पना के अनुसार पेश किया जाए या फिर शरदीय चाहत के अनुसार? उसे आज़मीय पसंद के अनुसार सजाकर प्रस्तुत किया जाए या लालुई स्वप्न के स्टाइल में? इसके अलावा बेटी की माँ देवी से ये भी पूछती है कि उनके मातहत देवों से गलती से कोई गलती तो नहीं होगी?
बेटी की माँ के प्रश्नों को सुनकर देवी अट्टहास करने लगती हैं। उनके संग-संग उनके बटुए में चिल्लर के रूप में मौजूद उनके मातहत देव भी अट्टहास करना आरम्भ कर देते हैं। उनके अट्टहास के फलस्वरूप उनका महल अचानक जोर-जोर से हिलने लगता है। यह देख देवी और उनके मातहत देव घबरा जाते हैं। देवी को कुछ-कुछ आभास होने लगता है कि शायद उनके स्वनिर्मित दैवीय तिलिस्म के चकनाचूर होने का निश्चित समय आ गया है।
लेखक : सुमित प्रताप सिंह
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