बुधवार, 27 जनवरी 2016

व्यंग्य : अगला विश्वयुद्ध पार्किंग के लिए होगा


    विश्व अब तक दो विश्वयुद्धों की मार झेल चुका है। हम सभी इस बात से भली-भांति परिचित हैं कि विश्व की महाशक्तियों ने किस प्रकार निजी स्वार्थों के लिए बाकी संसार को दो विश्वयुद्धों की आग में झोंक दिया था। पर शायद दो-दो विश्व युद्धों से हम लोगों का जी नहीं भरा है सो अक्सर हम अपने मस्तिष्क को कष्ट देते हुए विचारमग्न रहते हैं कि अगला अर्थात तीसरा विश्व युद्ध किस कारण होगा? विभिन्न रायवीरों ने तीसरा विश्व युद्ध भड़कने के लिए विभिन्न कारण बताये हैं। उनमें से ही एक कारण है कि तीसरा विश्व युद्ध जल यानि पानी के लिए होगा। यह कारण अधिकांश महानुभावों द्वारा स्वीकार भी किया जा चुका है। इसके पीछे तर्क दिया जाता है कि दिन-प्रतिदिन विश्व की आबादी बढ़ती ही जा रही है और एक दिन ऐसा भी आएगा जब आबादी के अनुपात में पर्याप्त जल उपलब्ध नहीं होगा। हालाँकि उनके इस तर्क में थोड़ी-बहुत सच्चाई भी अनुभव होती है, क्योंकि जिन नारियों का कलेजा घर में कॉकरोच को ही देखकर बुरी तरह काँप उठता है वे पानी के टैंकर पर खड़ी होकर इतनी वीरता से युद्ध करती हैं कि ऐसा प्रतीत होता है कि न पहले कभी इतनी वीर नारियाँ जन्मी होंगी और न ही जन्म लेंगी। पर पानी के लिए होनेवाली ये छिटपुट लड़ाइयाँ तो गर्मी के मौसम में होनेवाली लड़ाइयों के कुछेक उदाहरण मात्र हैं। सर्दी का मौसम आते ही ये सभी युद्धप्रेमी स्वेटर अथवा रजाई की ओट में छिपे हुए पानी से अधिकाधिक दूरी बनाने के लिए प्रयासरत रहते हैं। कई महानुभाव तो इन दिनों ठंडे पानी के प्रकोप से डरकर नहाने से ही सन्यास ले लेते हैं। बेचारा पानी भी इन दिनों निराश और उदास रहता और कामना करने लगता है कि जल्द से जल्द गर्मी का आगमन हो और उसकी प्रतिष्ठा फिर से स्थापित हो जाए।
      अब सोचनेवाली बात ये है कि यदि तीसरा विश्व युद्ध पानी के कारण नहीं होगा तो फिर किस कारण से होगा? फिर एक बार को ख्याल आता है कि तीसरा विश्व युद्ध होना क्या इतना जरूरी है कि उसके सोच-विचार में अपना बहुमूल्य समय ख़राब किया जाए। अचानक मन ये विचार करने लगता है कि यदि विश्व युद्ध नहीं हो पायेगा तो फिर दुनिया के ठेकेदार देशों की रोजी-रोटी कैसे चल पायेगी। उनके द्वारा प्रेमपूर्वक बनाये गए विध्वंशक हथियार बिना युद्ध के जंग नहीं खा जायेंगे। इसलिए युद्ध होने बहुत जरूरी हैं ताकि हथियारों का सदुपयोग होता रहे तथा हम जैसे दुखी मानवों को इस जीवन मुक्ति मिलती रहे। बहरहाल हम अपने मुद्दे पर जैसे थे कि स्थिति में फिर से आते हैं और अपने मस्तिष्क को कष्ट देकर मिलजुलकर ये विचार करते हैं कि ये ससुरा तीसरा विश्वयुद्ध आखिर किस वजह से होगा?
       अब आप चाहे जो भी उल्टा-सीधा सोचते रहें पर मेरे अनुपजाऊ मस्तिष्क में एक अनुपजाऊ सा विचार कबड्डी खेल रहा है कि अगला विश्वयुद्ध पार्किंग के लिए होगा। अब भला इसमें चौंकने जैसी बात कहाँ से आ गयी? पूरे संसार में कंक्रीट के जंगल तेजी से पनपते जा रहे हैं और उन जंगलों में वास करनेवाले भले लोगों के दिल भी कंक्रीट जैसे ही हो गए हैं, जिनमें मानवीय संवेदनायें दम तोड़ती जा रही हैं। इन्हीं संकुचित दिलों वाले भले मानुषों ने अपने घर के आजू-बाजू वाली सड़क को अपहृत करके अपने बड़े-बड़े फ्लैटों का आकार बढ़ाने का अद्भुत कार्य किया है और ये सब इन्होंने सरकारी सड़क को अपनी बपौती समझकर किया है। इसके अलावा बाकी बची सड़क को भी ये अपने पुश्तैनी अधिकार की श्रेणी में रखकर उसपर अपने गाड़ियों के संग्रह की प्रदर्शनी लगाये हुए मिल जाते हैं। इनके घरों में रहनेवाले विभिन्न सदस्य गणों की निजी वाहन की चाहत गाड़ियों के संग्रह में वृद्धि रुपी योगदान देती रहती है। हालाँकि उनका काम एक वाहन से भी चल सकता है किन्तु इसके लिए एकता की भावना भी होनी आवश्यक है किन्तु एकता नामक अवगुण हमारे दिलों से जाने कबका लापता हो चुका है। वाहनों की भीड़ और बोझ से सड़कें हाँफती रहती हैं लेकिन वाहनों की संख्या दिनों-दिन बढ़ती ही जा रही है। वाहनों की इस भीड़-भाड़ में जाने-अनजाने एक-दूसरे के वाहनों में हलकी-फुलकी खरोंच आ ही जाती है, जिसका बदला वाहन चालक एक-दूसरे को खरोंचों से भरकर लेते हैं। पार्किंग के मुद्दे पर लोग सड़कों, गलियों, मोहल्लों और अपने आस-पड़ोस में कर्मठता से लड़ते-झगड़ते हुए मिल रहे हैं। कई बार कर्मठता से लड़ते हुए वे एक-दूसरे का राम नाम सत्य भी कर डालते हैं। एक बार के लिए विचार करें तो असल में यह तीसरे विश्व युद्ध की तैयारी चल रही है, जिसके लिए हम भले लोग निरंतर अभ्यासरत हैं। अब देखते हैं कि किस शहर के किस कोने में पार्किंग विवाद पर छिड़ा संघर्ष बढ़ते-बढ़ते विश्व युद्ध का रूप धारण करता है। अब आप सभी के मन में यह प्रश्न कौंध रहा होगा कि विश्व युद्ध का शुभारंभ किसी शहर से ही क्यों होगा? इसका शुभारंभ किसी गाँव से भी तो हो सकता है। तो गौर करनेवाली बात ये है कि यदि गाँवों को किसी भी देश की राजनीति में इतना महत्त्व मिल पाता तो गाँव का किसान इतना गरीब न होता और न ही उसे इस मोहमाया के बंधन से मुक्त होने के लिए किसी पेड़ पर फाँसी के फंदे में झूलकर बेमौत मरना पड़ता। खैर हम भी कहाँ महत्वहीन किसान की दुखभरी व्यथा में उलझ गए। उसका जीवन तो कर्ज के भंवर में फँसने से आरंभ होता है और किसी पेड़ की डाली पर फाँसी के फंदे पर झूलते हुए ही समाप्त होता है। अब आप ही सोचिये कि भला गाँव शहर द्वारा किये जानेवाले विश्व युद्ध के शुभारंभ जैसे पुनीत कार्य में व्यवधान डालने की धृष्टता कैसे करेगा। इसलिए इस पावन कार्य की अगुवाई का सर्वाधिकार तो शहर के पास ही सुरक्षित रहेगा। इसलिए आप सब शहरियों से निवेदन है कि इस पावन यज्ञ में अपनी आहुति देने के लिए तैयार रहें और इसके लिए कर्मठता और परिश्रम से अभ्यास करते रहें। ॐ अशांति!  

लेखक : सुमित प्रताप सिंह
चित्र गूगल से साभार 

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