शुक्रवार, 24 जुलाई 2015

व्यंग्य : अगले जनम मोहे ठुल्ला ही कीजो


    हे प्रभु मैं तुम्हारी भक्ति में अक्सर खोया रहता हूँ और अपने आपको धिक्कारते हुए अपने आपसे अक्सर ये सवाल पूछता हूँ कि मैं आखिर क्यों नहीं आपसे अपनी भक्ति की कीमत वसूलता? कलियुग में पैदा होकर भी कलियुगी इच्छाएँ मुझसे एक कोस दूर क्यों रहना चाहती हैं? पर आज मेरे मन में कलियुगी शक्ति प्रभाव जमाकर मुझे आपसे कुछ न कुछ माँगने को विवश कर रही है। अब आप विचार करेंगे कि ऐसा अचानक मेरे साथ आखिर क्या हुआ जो कुछ न माँगने की इच्छा रखनेवाला मेरा मन क्यों याचक बनने को उतारू हो गया? प्रभु अब आपसे क्या छिपाना। हमारे प्रदेश में एक माननीय महोदय आम आदमी के उद्धारक के रूप में प्रकट हुए थे। हालाँकि वो दूसरों को दानव और अपने आपको महामानव घोषित करते फिरते हैं किन्तु मुझे व मेरे प्रदेश वासियों को उनके मानव होने में भी शंका होती है और उनकी उछल-कूद देखकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे मानव अपनी उत्पत्ति के प्रारंभिक चरण में वापस पहुँच गया है। उन्हीं माननीय महोदय ने ऑफिशियल तौर पर मेरे जैसे तमाम पुलिसकर्मियों को ठुल्ला घोषित किया है। अब आप पूछेंगे कि ये ठुल्ला कौन सा शब्द है? प्रभु वैसे तो आप सर्वज्ञाता हैं फिर भी आपको ठुल्ला शब्द के विषय में विस्तार से बताना इसलिए आवश्यक है क्यों इसी बहाने कलियुग के स्वघोषित प्रभुओं का भी कुछ ज्ञानवर्धन हो  जाएगा।
प्रभु गाँव, गली या किसी घर के बाहर गाँव के कुछ नाकारा व निठल्ले अक्सर अपना समय बर्बाद करते हुए बैठे मिल जाते हैं। गाँव के लोगों पर आते-जाते फब्तियाँ कसना या फिर गाँव की लड़कियों से छेड़छाड़ करना तहत इसके बाद पिटकर अपनी हरकत का खामियाजा भुगतना इनके शगल होते हैं। गाँववाले ऐसे लोगों को ठलुआ की संज्ञा से सुशोभित करते हैं। इसी ठलुआ शब्द का जब शहरीकरण किया गया तो ठुल्ला शब्द की उत्पत्ति हुई, जिसे उन माननीय महोदय ने वैश्विक शब्द बनाने की ठान ली और हम पुलिसकर्मियों को इस शब्द से सुशोभित कर दिया।
हालाँकि सुना है कि ये माननीय महोदय पढ़े-लिखे हैं और हमारे प्रदेश की सत्ता हथियाने से पहले बड़े सरकारी अधिकारी भी रह चुके हैं, किन्तु उनकी सम्मानजनक भाषा से हमारा पापी मन इस बात से शंकित हो उठता है कि अपनी पार्टी के कुछ सम्मानीय सदस्यों की भाँति कहीं उनकी डिग्री भी तो...? बहरहाल उन्होंने हम पुलिसजनों को ठुल्ला कहा होगा तो कुछ सोच कर ही कहा होगा। क्या पता उन्होंने हमें नौकरी पर देर से जाते और जल्दी घर आते देखा हो या फिर होली, दीवाली, ईद, क्रिसमस या फिर किसी अन्य भारतीय त्यौहार को अपने घर पर मस्ती मारते देखा हो अथवा उन्होंने कोई दिवा स्वप्न देखा हो कि कम ड्यूटी करते हुए पुलिसकर्मी भारी-भरकम वेतन का मजा लूट रहे हैं और अपनी नौकरी पर समय बर्बाद करने की बजाय अपने बीबी-बच्चों संग ऐश करने में मदमस्त हैं। उन्हें कहाँ फुरसत है कि वो ये जानने की कोशिश करें कि कई पुलिसवाले ऐसे भी जिन्हें अपने बच्चों से बात किये हुए कई महीने गुज़र जाते हैं। कारण जब वो देर रात घर जाते हैं तो बच्चे सोते हुए मिलते हैं और सुबह उन्हें सोता हुआ ही छोड़कर ड्यूटी के लिए निकलना पड़ता है। उन माननीय महोदय को शायद ये भी न ज्ञात हो कि किन-किन विषम परिस्थितियों में एक पुलिसवाले को नौकरी करनी पड़ती है।
बहरहाल उन माननीय महोदय ने ठुल्ला नामक शब्दभेदी बाण चलाकर विश्व के सामने पुलिसकर्मियों को खड़ा कर दिया है। अब शायद लोग पुलिसवालों की परेशानियों और दिक्कतों को समझने का प्रयास करें तथा सरकार को भी अहसास हो कि देश की सड़कों, मोहल्लों और गलियों में दिन-रात भटकनेवाला पुलिसवाला भी मानव की श्रेणी रखा जा सकता है और उसे सुविधाओं के नाम पर कुछ सहूलतें दी जा सकती हैं। फिर शायद पुलिसजनों का जीवन बेहतर जीवन की श्रेणी में आ सके।
इसलिए हे प्रभु चाहे मेरे अन्य साथी अगले जन्म में ठुल्ला बनने से परहेज करें, किन्तु मैं तो आपसे बार-बार, हर बार यही कामना करूँगा कि अगले जनम मोहे ठुल्ला ही कीजो। क्या करूँ मुझे इस खाकी वर्दी से इतना लगाव हो गया है बार-बार खाकी अवतार लेने का ही मन करने लगा है। फिर चाहे मुझे अगले जनम में भी ड्यूटी के दौरान धकियाया, मुक्कियाया या लतियाया जाए या फिर जुतियाया अथवा लठियाया जाए पर मेरे मन में इस बात का संतोष रहेगा, कि मैंने वास्तव में इस देश व देश की जनता के लिए कुछ किया न कि ऊल-जलूल हरकतों और अपशब्दों का पिटारा लिए हुए माननीय महोदयों या फिर कहें कि असली ठुल्लों की भाँति बयानबाजी व धरने-प्रदर्शनों में खोये रहकर जनता को सिर्फ और ठगने का कार्य किया। तो प्रभु आप मेरी प्रार्थना स्वीकारेंगे न। क्या कहा कौन सी प्रार्थना? अब प्रभु दिल्लगी छोड़ भी दीजिये। आपसे रोज ही तो करता हूँ अरे वही इकलौती प्रार्थना "अगले जनम मोहे ठुल्ला ही कीजो"।

लेखक : सुमित प्रताप सिंह 

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