जब तू मिलेगी
किसी मोड़ पर
तो तुझे बताऊंगा
कि तुझसे प्यार था
सच्चा
फिर तू पूछेगी मुझसे
कि जो प्यार था सच्चा
तो तू जब हुई
किसी और की
तो क्यों न झुलसा
दिया
तेरा चेहरा तेजाब से
या क्यों न
कतरा तेरा गला
छुरे की धार से
या फिर भून क्यों न
दिया
बदन को तेरे
पिस्तौल के हर कारतूस
से
और मैं मुस्कुरा के
कहूँगा
पगली सच्चा प्यार था
तभी तो ये सब न किया
गया।
सुमित प्रताप सिंह
इटावा, नई दिल्ली, भारत
2 टिप्पणियां:
bahut pyaari kavitaa he yeh bahut bahut dhanyavaad
धन्यवाद प्रदीप कश्यप जी...
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