संपादक की पत्नी नामक संबंध लेखक समुदाय के लिए बड़ा ही पवित्र है. संपादक महोदय हमारे लिए यदि आदरणीय हैं, तो उनकी पत्नी महोदया हम सबके लिए परम आदरणीया हैं. हम लेखकों को नचाने वाले संपादक नामक खिलौने को कसने की चाभी उन्हीं के पावन हाथों में विराजमान रहती है, जिसका समय-समय पर उनके कोमल दिखनेवाले कठोर हाथों से सदुपयोग होता रहता है. वो संपादक के जीवन की स्वामिनी हैं. वो उनके सारे सुखों को हरने वाली है और उनका जीवन दुखों से भरने वाली हैं. संपादक जी वैसे तो अपने घर से बाहर शेर हैं, किन्तु घर में पहुँचकर अपनी परम परमेश्वरी पत्नी के सामने कोल्हू का बैल बनकर हो जाते ढेर हैं. कोल्हू का बैल बनना उनकी नियति है. दिन भर दफ्तर में पिरते हैं फिर अपने घर में थके-मांदे अपनी पत्नी के निर्देश पर पिरते-पिरते आहें भरते हैं. उनका घर उनके कठिन परिश्रम से बना हुआ उनकी पत्नी का साम्राज्यिक संसार है और उस साम्राज्य में संपादक की हर साँस पत्नी के आदेश से ही भीतर व बाहर आती और जाती है. संपादक द्वारा अस्वीकारे व दुत्कारे जाने पर हम लेखकों की अंतिम आस हैं संपादक की पत्नी. उन्होंने यदि स्वीकृति दे दी, तो समझो लेखकों का भाग्य जाग गया और यदि उन्होंने भी दुत्कार दिया, तो लेखनी छोड़कर दूसरा कार्य करने में ही भलाई है. इसलिए यदि वो थोड़ी-बहुत बदसूरत भी हैं, तो भी उनकी खूबसूरती की शान में कसीदे पढ़े जा सकते हैं. उनकी आँखों में थोड़ी-बहुत विकृति है या थोड़ा-बहुत भेंगा भी देखती हैं तो क्या हुआ ? हम लेखकों के लिए तो वो मृगनयनी ही हैं. वो चाहे लगड़ाकर चलें या फिर बैसाखी के सहारे पर हमारी दृष्टि में उनकी चाल हिरनी की चाल को भी मात देती है. उनकी कर्कश बोली भी हमारे कानों में रस घोल देती है. चाहे उनकी आवाज सुनते-सुनते हमारा सिर दर्द से फटने लगे, किन्तु फिर भी हमें अपने मुस्कुराते चेहरे संग वाह-वाह करने का धर्म ही निभाना चाहिए. उनके रूखे-सूखे बाल भी काली घटाओं से प्रतीत होते हैं और उनकी छोटी सी चोटी भी काली नागिन का आभास करती प्रतीत होती है. उनकी बेढंगी स्थूल काया भी मॉडलों की छरहरी काया को मात देती है. उनकी हँसी बेशक औरों को भयानक लगे किन्तु हम लेखकों के लिए वो ऐसी लगती है जैसे फूल झर रहे हों. अनेक कमियाँ होते हुए भी इस धरा पर वो एक संपूर्ण नारी हैं, क्योंकि वो एक पत्नी हैं वह भी किसी ऐरे-गैरे या नत्थू-खैरे की नहीं की नहीं, बल्कि माननीय संपादक महोदय की पत्नी हैं. वो जो कहें वह सत्य है और जो न कहें वह भी सत्य है. वो हम लेखकों को लेखन की वैतरणी पार करवाने वाली खेवा हैं. संपादक द्वारा हम लेखकों पर की गईं ज्यादतियों के लिए उन्हें सबक सिखाने का हमारा अचूक अस्त्र और शस्त्र हैं संपादक की पत्नी. यदि उनका वरद हस्त हम लेखकों को मिल जाये तो लेखकीय कैरियर बिगड़ते- बिगड़ते बन जाये, अन्यथा संवरते-संवरते बिगड़ जाये. इसलिए आइये हाथ जोड़कर नमन करें इस वसुंधरा पर अवतरित हुई उस महान नारी को, जिसके हाथ में हम लेखकों के भाग्य को बनाने व बिगाड़ने की कुंजी है.
सुमित प्रताप सिंह
इटावा, नई दिल्ली, भारत
2 टिप्पणियां:
ha ha ha....Bahut sahi.....dekhte hain hamare bhavishya ke sampadak Sumit ji ki Naiya ko Unki Bhavi Patni kaise par karwati hain :)
हा हा हा योगी जी ये भी खूब रहा...
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