गुरुवार, 26 जनवरी 2012

मैनपुरी मैन पवन कुमार



प्रिय मित्रो

सादर ब्लॉगस्ते!

     15 अगस्त1947 में भारत स्वतंत्र हुआ. हाँ यदि  नेहरु जी को अपने सुप्रसिद्ध भाषण ''ट्राइस्ट विद डेस्टिनी'' देने की लालसा न होती तो भारत 14 अगस्त, 1947 को ही स्वतंत्र हो जाता अन्य देशों की भांति भारत ने भी लोकतंत्र की परम्परा को अपनाया 2 वर्ष11 माह व 18 दिनों के कड़े परिश्रम के पश्चात विश्व के विशालतम भारतीय संविधान का निर्माण किया गया तथा 26 जनवरी1950 को इसे लागू किया गया और इस प्रकार भारत एक गणतंत्र देश बना तो साथियो आप सभी को इस गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ आज के इस विशेष दिवस पर हम आपको मिलवाने जा रहे हैं एक विशेष व्यक्ति से जो प्रशासनिक अधिकारी होने के साथ-साथ हिंदी ब्लॉगर भी हैं और हिंदी माँ सेवा हेतु सदैव तत्पर रहते हैं आइये मिलते हैं पवन कुमार जी से पवन कुमार जी 8 अगस्त 1975 को मैनपुरी (उ. प्र.) में प्रकट हुए (हम जैसे नासमझों के लिए पैदा हुए )। सेन्ट जोंस कालेज आगरा में अध्ययन किया और 1998 में सरकारी नौकरी  झपट ली (जो न समझ पाएँ वे सरकारी नौकरी प्राप्त की पढ़ें) । सम्प्रति भारतीय प्रशासनिक सेवा में, फिलहाल नोएडा में धूनी जमाए हैं (नासमझ समझ गए होंगे कि नोएडा में कार्यरत हैं)। इनकी गृहमंत्री (नासमझ इनकी धर्मपत्नी और हमारी भाभी जी समझें) भी प्रशासनिक सेवा में है...... नज़रिया ब्लॉग  के माध्यम से  ब्लॉग लेखन जारी है जिस पर 100 से भी ज्यादा पोस्टें आ चुकी हैं आज कल ग़ज़ल लेखन में ज्यादा रूचि (नासमझ इसे भाभी जी द्वारा दिया आदेश न समझें)। सिंगापुर और वियतनाम में सैर-सपाटा (नासमझ घुमक्कड़पन नहीं भ्रमण समझें) कर चुकें हैं  । फोटोग्राफी व पर्यटन में भी विशेष रूचि है। पवन कुमार जी मैनपुरी से हैं तो क्या मैनपुरी में केवल मैन (नर) ही रहते हैं, कोई वूमैन (नारी) नहीं रहती, जो इसका नाम मैनपुरी रखा चलिए ये सब प्रश्न मैनपुरी मैन पवन कुमार जी से ही चलकर पूछ लेते हैं...

सुमित प्रताप सिंह- पवन कुमार जी सुमित प्रताप सिंह 'नासमझ' का नमस्कार! कैसे हैं आप?

पवन कुमार- नमस्कार सुमित प्रताप सिंह 'समझदार' जी! भैया दुनिया को पट्टी पढ़ा रहे हो और अपने-आपको नासमझ कहते हो बहुत अच्छे

सुमित प्रताप सिंह- हा हा हा पवन जी खूब फ़रमाया आपने लेकिन आपके सामने तो रहेंगे हम बच्चे....आपके लिए कुछ प्रश्न लाया हूँ अच्छे

पवन कुमार- अब छोड़ो देना गच्चे और पूछ डालो अपने सभी प्रश्न अच्छे। (यदि बुरे भी पूछ लें तो?)

सुमित प्रताप सिंह- पवन जी एक बात तो बताएँ आपके जन्मस्थान मैनपुरी का नाम मैनपुरी ही क्यों है? क्या वहाँ कोई वूमैन नहीं रहती?

पवन कुमार- देखिए सुमित बन्धु मैन तो वूमैन (वू+मैन) का  अभिन्न अंग है तो यदि नाम मैनपुरी हुआ तो भी  वूमैनपुरी कहें या मैनपुरी बात तो एक ही हुई

(नासमझ इस बात को ढंग से समझ गए और देखिए कितना मुसकरा रहें हैं) 

सुमित प्रताप सिंह- ब्लॉग लेखन का विचार आपके मस्तिष्क में कब कौंधा?

पवन कुमार- वर्ष 2008 में जब मेरी तैनाती गाजियाबाद में थी तो मेरे एक मित्र ने ’ ब्लॉग’ के विषय में बताया। मैंने  ब्लॉग पर जब लिखने की प्रक्रिया शुरू की तो मेरे लिए यह नया अनुभव था। शुरूआत में तो हिन्दी टाइपिंग के विषय में ज्ञान नहीं था तो आरंभिक पोस्ट ’अंग्रेजी’ में लिखी जैसे ही इंडिक ट्रांसलिटरेशन के विषय में जानकारी मिली तो लेखन मातृभाषा में शुरू हो गया । तब से आज तक लेखन का सिलसिला जारी है.......... अब तो सौ से भी ज्यादा पोस्ट इस ब्लॉग  ’नजरिया’ पर आ चुकी है। 

सुमित प्रताप सिंह- आपकी पहली रचना कब और कैसे रची गई?

पवन कुमार- जैसा कि मैने आपको बताया कि लेखन कर्म से मेरा रिश्ता विद्यार्थी जीवन से ही रहा। ग्रेजुएशन के दौरान ही मेरे लेख विभिन्न राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे थे। एक समाचार पत्र के लिए मैने अवैतनिक रूप से ’पत्रकार’ का भी कार्य किया था.......ऐसे में लेखन मेरे लिए कोई नवीन कार्य नहीं था, हाँ ब्लॉग-लेखन एक नया माध्यम अवश्य था। शुरूआती  ब्लॉग लेखन अहमद फ़राज़ और मेहदी हसन जैसे व्यक्तियों पर लिखे। बाद में  ब्लॉग लेखन में यात्रा संस्मरण, व्यक्तिगत अनुभव, महत्वपूर्ण व्यक्तित्वों से अन्तरंग मुलाकातें, त्यौहार परक लेख, घटनाओं पर त्वरित टिप्पणी व गज़लें भी शामिल हो गई।

सुमित प्रताप सिंह- आप लिखते क्यों हैं?

पवन कुमार- पानी बहता क्यों  है, फूल खशबू क्यों देते हैं, सूरज रोशनी क्यों देता है, चाँद तपती रातों में शीतलता क्यों प्रदान करता है.................. यह सब नियति ही है। यह सब सहज प्रक्रियाएं हैं, जो होनी ही हैं..................लेखन भी मेरे लिए सहज प्रक्रिया है। मेरे लिए विचारों को अभिव्यक्ति देने का सर्वाधिक सुलभ जरिया लेखन ही है। बचपन से लेकर अब तक जो भी जिंदगी में देखा-सुना -भोगा है उसे महसूस करके व्यक्त करने का काम ही लेखन है। अपने अहसासों को जिंदा रखने का जरिया-ऩजरिया ही लेखन है। यूं तो मेरा लेखन स्वान्तः सुखाय है किन्तु यदि उसमें किसी को जरा भी अपनापन महसूस होता है तो यह मेरे लिए और भी प्रसन्नता  देता है।

 सुमित प्रताप सिंह- लेखन में आपकी प्रिय विधा कौन सी है?

पवन कुमार- मुश्किल  सवाल है....... दरअसल मेरी लेखन यात्रा शुरू हुई थी लेख लिखने से । पत्रकारिता में आने के बाद लेखन का स्वरूप थोड़ा बदला,घटनापरक विश्लेषण वाला लेखन का सिलसिला चला । बाद में सरकारी सेवा में आने के बाद लेखन की शैली बदलनी पड़ी । फिलहाल यात्रा संस्मरण, मूर्धन्य साहित्य कर्मियों /कलाकारों पर व्यक्तित्वपरक लेख तथा ग़ज़लें  लिख रहा हूँ.  वैसे मुझे ग़ज़ल लिखना सर्वाधिक पसंद है। 

सुमित प्रताप सिंह- अपनी रचनाओं से समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं?

पवन कुमार- संदेश  देने की स्थिति में मैं स्वयं को अभी नहीं पाता........ अभी तो सीखने का दौर है फिर भी रचनाधर्मिता से जुड़े समस्त लोगों से यह अपेक्षा करता हूँ  कि वे सार्थक लिखें, ऐसा लिखें जिसमें आम आदमी की जिंदगी के सुख-दुख की आवाज हो।

सुमित प्रताप सिंह- एक अंतिम प्रश्न. "ब्लॉग पर हिंदी लेखन और हिंदी भाषा का भविष्य"  इस विषय पर आप अपने कुछ विचार रखेंगे?

पवन कुमार- ब्लॉग पर हिंदी लेखन रफ़्तार पा चुका है और देश-विदेश में बसे हिंदी पुत्र इस रफ़्तार को और बढ़ाने में जुटे हुए हैं हिंदी भाषा का भविष्य बहुत उज्जवल है एक न एक दिन आप और हम इसे उच्चतम शिखर पर पहुँचा कर ही रहेंगे

(अब इस नासमझ समझदार के पास इतनी समझ बाकी नहीं बची थी कि पवन कुमार जी को और समझने की कोशिश करूँ सो समझदारी इसी में लगी कि चुपचाप अपनी प्रश्नों की पोटली उठाकर उनसे राम-राम कह निकल पडूँ अपने सफ़र पर)

पवन कुमार जी को समझना हो तो पधारें http://singhsdm.blogspot.com/ पर...

मंगलवार, 24 जनवरी 2012

बल्ले-बल्ले करते काजल कुमार


प्रिय मित्रो

सादर ब्लॉगस्ते!

     साथियो काजल और सुरमा सुन्दरी के नैनों को और अधिक आकर्षक व कटीला बनाने का काम करते हैं. इन नैनों में खोकर ही हम और आप जैसे कवि व गीतकार कुछ ऐसा रच डालते हैं कि उन नैनों की सुन्दरता में चार चाँद लग जाते हैं. हालाँकि अब काजल और सुरमे के दिन लद चुके हैं और उनका स्थान "आई लाइनर" ने ले लिया है. किन्तु हम ब्लॉगरों के नैनों की सुंदरता सदैव बढाते रहेंगे अपने ब्लॉगर बंधु और कार्टूनकार काजल कुमार जी. काजल कुमार जी मूलरूप से हिमाचल प्रदेश से हैं व दिल्ली में सरकारी नौकरी में कार्यरत हैं (यानि कि हमारी तरह सरकारी दामाद हैं). इन्हें लगता है कि किसी को भी तकनीक तो सिखाई जा सकती है पर कला नहीं. कला शायद जन्मजात होती है. बस यह भी इसी का फायदा उठा रहे हैं कि रेखा चित्रकला इन्हें भी जन्म से ही मिली हैइसमें इनका कोई प्रयासपूर्ण योगदान नहीं रहा. कॉलेज के दिनों से ही यह कार्टून बनाने में मस्त और व्यस्त हैं. आइए कुछ बातें कर लेते हैं इनसे... 

सुमित प्रताप सिंह- काजल कुमार जी नमस्कार! कैसे हैं आप?

काजल कुमार- नमस्कार सुमित जी! बस अपनी तो बल्ले-बल्ले है. आप सुनाएँ.

सुमित प्रताप सिंह- जी अपना जीवन करते हुए बल्ले-बल्लेचल रहा है हल्ले-हल्ले. कुछ प्रश्न लाया हूँ.

काजल कुमार- ओ बल्ले-बल्लेपूछ डालिए प्रश्न हल्ले-हल्ले.
मन में विचार आता है कि कहीं आज काजल जी क्रिकेट का मैच तो खेलने नहीं जा रहे हैंयदि ऐसा है तो बल्ले-बल्ले के साथ गेंद-गेंद भी बोलना चाहिए. खैर हमें क्या? लेकिन उन्हें कम से कम  हमें भी क्रिकेट खेलने का निमंत्रण तो देना चाहिए, चाहे वह हमसे फील्डिंग ही करवा लेते. )

सुमित प्रताप सिंह- आपको यह ब्लॉग का चस्का कब और कैसे लगा?

काजल कुमार- चस्का तो पता नहींअलबत्ता पढ़ने-लिखने से जुड़े रहने के कारण कला-साहित्य-संस्कृति-सूचना की दूनिया से दो-चार होना लगा ही रहता है. कई साल पहले geocities पर कार्टून होस्ट किये (अब यह साइट बंद हो गई है). फिर googlepages.com पर चला गयाआजकल यह sites.google.com में बदल गई है. इसी के चलते जनवरी 2007 में एक ब्लाग बनाया लेकिन उस पर काफी समय तक कुछ नहीं छापा…. इसी तरह चलती रहती है यह यात्रा.

सुमित प्रताप सिंह- प्रकृति द्वारा निर्मित अच्छे-खासे चेहरे को आप क्या बना डालते हैं. आपको ऐसा करते हुए उस मासूम पर दया नहीं आती?

काजल कुमार- प्रकृति ने तो नि:संदेह ही चेहरे अच्छे-ख़ासे ही बनाए होते हैं पर हम अपने विचारों और कामों से अपने चेहरे ख़राब कर लेते हैं. यहां मुझे सत्यजीत रे प्रेज़ेन्टस” टी.वी. सीरियल का वह गंवई नायक याद आता है जो एक दिन निश्छल युवक न रह कर सड़क पर कीलें बिखेर गाड़ियां पंक्चर कर पैसे कमाने वाले व्यक्ति में बदल जाता है तब उसकी प्रेमिका एक दिन उसे कहती है –‘तुम वो नहीं रहे जिसे मैंने प्यार किया थातुम कोई और हो.’ कार्टूनिस्ट का काम ही चेहरे के पीछे का चेहरा दिखना होता है न.

सुमित प्रताप सिंह- आपने अपना पहला कार्टून कब और क्यों बनाया?

काजल कुमार- पहले कार्टून का तो सही-सही पता नहींछुटपन से ही स्वयं को रंग और रेखाओं के साथ खेलते पाया. हां कालेज के दिनों कार्टून बनाना नियम सा हो गया था. क्यों बनाया… कार्टून बनाना अच्छा लगाआज भी उतना ही अच्छा लगता है.

सुमित प्रताप सिंह- आप कार्टून बनाते क्यों हैं?

काजल कुमार- क्यों बनाता हूं. हम्म… कार्टून बनाना कोई काम नहीं है यह एक urge है, extremely intense urge. बल्किमेरे लिए तोकार्टून बनाने की आज़ादी छीन लेने से बड़ी कोई और सज़ा हो ही नहीं सकती.

सुमित प्रताप सिंह- किस विषय पर कार्टून बनाना आपको सबसे प्रिय है?

काजल कुमार-राजनीतिज्ञों के अलावा किसी भी विषय पर कार्टून बनाना बहुत अच्छा लगता है लेकिन राजनीति पर कार्टून न बनाना पलायन होगा इसलिए राजनीति व राजनीजिज्ञों पर भी कार्टून बनाता हूं किन्तु मुझे दूसरे किसी भी विषय पर कार्टून बनाना कहीं अधिक प्रिय है.

सुमित प्रताप सिंह- अपनी रचनाओं से समाज को क्या सन्देश देना चाहते हैं?

काजल कुमार- सच्चाई तो ये है कि समाज के द्वंदोंविद्रूपोंअसंगतियों-विसंगतियों पर कटाक्ष करना भर ही होता है कार्टून का उद्देश्य क्योंकि ये समझना कि समाज के दूसरे लोगों को तथाकथित संदेशों की आवश्यकता हैमेरे ख़्याल सेस्वयं को बहुत बड़ा समझ बैठने का भ्रम भर है. कार्टूनिंग में तो नंगे राजा को नंगा कह देने भर से ही काम हो जाता है वर्ना संदेश गढ़ने वालों की कमी कहां होती है किसी भी समाज में.

सुमित प्रताप सिंह- एक अंतिम प्रश्न. "ब्लॉग लेखन द्वारा हिंदी का विश्व में प्रचार और प्रसार." इस विषय पर क्या आप अपने कुछ विचार रखेंगे?

काजल कुमार- ब्लॉग लेखन द्वारा विश्व में हिंदी के प्रचार और प्रसार को निश्चय ही पहले की अपेक्षा कहीं अधिक नया बल मिल रहा है. हिन्दी ही क्योंकिसी भी भाषा को. कुछ समय पहले तक मुझे भी यही पता था कि इंटरनेट की भाषा केवल अंग्रेज़ी है. मज़बूरी में दूसरों की आवाज़ में अपनी बात कहनी पड़ती थी. पर आज वह बात नहींभाषाएं आज अपना स्पेस तलाश नहीं कर रही हैं बल्कि उससे भी कहीं आगे निकल कर अपनी बात रख रही हैं. जिन भी लोगों ने हिन्दी को इंटरनेट पर यूँ सुलभ बनाया है मैं उनका बहुत आभारी हूँ.

(इतना कहकर काजल कुमार जी घर के कोने में रखे क्रिकेट के बल्ले की ओर निहारने लगे. यानि कि मेरा अनुमान सही था. उन्हें बल्ले-बल्ले करने के लिए छोड़कर हल्ले-हल्ले मैं भी चल पड़ा अपने अगले ठिकाने पर.)

काजल कुमार जी कार्टूनों को देख बल्ले-बल्ले करना हो तो पधारें http://kajalkumarcartoons.blogspot.com/ पर...

काजल कुमार जी ने यह कार्टून किसका बनाया है? बताइये न. 

शुक्रवार, 20 जनवरी 2012

सूरत बिगाड़ते सुरेश शर्मा



प्रिय मित्रो

सादर ब्लॉगस्ते!

           साथियो आप सभी को याद होगा कि बचपन में कार्टून फिल्मों के आप और हम कितने दीवाने थे और कार्टून फिल्म देखना हमारे जीवन की दिनचर्या थी. बिल्लू, पिंकी, साबू और चाचा चौधरी जैसे कार्टूनी अवतारों की कॉमिक्स कितना आनंद देती थीं उन दिनों. आज आपसे मिलवाने जा रहा हूँ अपने कार्टूनों से सबको हँसाने वाले कार्टूनिस्ट सुरेश शर्मा जी से. सुरेश शर्मा जी का जन्म बिहार राज्य के मुंगेर नामक स्थान पर हुआ. इन्होंने बहुत छोटी उम्र से ही कार्टून बनाना आरंभ कर दिया था. जब यह पढ-लिख गए तो इनके माता-पिता से इनकी आज़ादी बर्दाश्त न हुई और इनका विवाह कर इन्हें श्रीमती सुरेश शर्मा (हमारी भाभी जी) के अंतर्गत नियुक्त कर दिया गया. विवाह के उपरान्त भाभी जी के साथ सुरेश शर्मा जी रांची (झारखण्ड) में बस गए (या फिर भाभी जी की आज्ञानुसार बसना पड़ा. हो सकता है उनके डर से बसे हों. अब आप जो भी समझें). बचपन से कार्टून बनाने के प्रति इनका इतना अधिक लगाव रहा कि आगे चलकर इनके कार्टून ही इनकी पहचान बन गए.

सुमित प्रताप सिंह- सुरेश शर्मा जी नमस्कार! कैसे हैं आप?

सुरेश शर्मा- जी सुमित जी ठीक-ठाक हूँ. आप अपनी सुनाएँ.

सुमित प्रताप सिंह- जी मैं भी ठीक-ठाक हूँ. कुछ प्रश्न लाया हूँ आपके लिए.

सुरेश शर्मा- अब प्रश्न ले ही आये हो तो पूछ डालो.

सुमित प्रताप सिंह- आप इस ब्लॉग नामक भंवर में कब और कैसे फँसे?

सुरेश शर्मा- आज से चार साल पहले ब्लॉग क्या बला है यह मुझे पता भी न था, कार्टूनिस्ट कृतीश भट्ट के प्रेरित करने पर मैंने  ब्लॉगिंग शुरू की और अब ब्लॉग जगत में मेरी भी कुछ पहचान बन गई है.

सुमित प्रताप सिंह- प्रकृति द्वारा निर्मित किसी भी आदमी के अच्छे-खासे चेहरे को आप क्या बना डालते हैं. आपको ऐसा करते हुए उस मासूम पर दया नहीं आती?

सुरेश शर्मा- कार्टून शब्द ही ऐसा है जिससे यह पता चल जाता है की जब किसी को कार्टून की शक्ल में ढाला जायेगा तो उसकी शक्ल क्या होगी ..मुझे किसी का चेहरा बिगाड़ने में कोई बुराई नजर नहीं आती है ..आप खुद जब कार्टून की शक्ल में अपना चेहरा देखोगे तो अपने आप पर मुस्कुरा उठोगे ..इस कला की यही तो पूँजी है.
(जब बनेगा तभी तो मुस्कराएँगे. जाने कब सुरेश जी मेरा कार्टून बनाएंगे?)

सुमित प्रताप सिंह- आपने अपना पहला कार्टून कब और क्यों बनाया?

सुरेश शर्मा- मेरा पहला कार्टून हास्य पत्रिका मधु मुस्कान में प्रकाशित हुआ. यह प्रयास मेरे स्वर्गीय पापा के प्रोत्साहन से सफल हुआ ..और उन्ही की प्रेरणा से मैंने पहला कार्टून बनाया और आज एक कार्टूनिस्ट के रूप में पहचाना जाता हूँ.

सुमित प्रताप सिंह- आप कार्टून बनाते क्यों हैं?

सुरेश शर्मा- समाज में फैले भ्रष्टाचार, लूट खसोट, को देख मन आक्रोशित हो जाता है तब मैं इनका विरोध अपने कार्टूनों के माध्यम से करने को बाध्य हो जाता हूँ. 

सुमित प्रताप सिंह- किस विषय पर कार्टून बनाना आपको सबसे प्रिय है?

सुरेश शर्मा- राजनीति में भ्रष्टाचार, सामाजिक कुरीतियाँ, इन विषयों पर कार्टून बनाना मुझे पसंद है.

सुमित प्रताप सिंह- अपनी कार्टून रचनाओं से समाज को क्या सन्देश देना चाहते हैं?

सुरेश शर्मा- समाज के सामने भ्रष्टाचार को बेनकाब कर मेरे मन को सुकून मिलता है. मैं अपने कार्टून के माध्यम से आम जनता को समाज के प्रति देश के प्रति जागरूक होने का सन्देश देता आया हूँ और आगे भी ये सिलसिला जारी रखूँगा.

सुमित प्रताप सिंह- एक अंतिम प्रश्न. "ब्लॉग लेखन द्वारा हिंदी का विश्व में प्रचार और प्रसार."  इस विषय पर क्या आप अपने कुछ विचार रखेंगे?

सुरेश शर्मा- ब्लॉग लेखन हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए एक सशक्त भूमिका निभा सकता है, अतः हमें हिंदी ब्लॉग लेखन को प्रोत्साहित करना ही चाहिए. 

(इतना कहकर सुरेश शर्मा जी अपना पैन और कागज़ उठाकर कुछ बनाने लगे. मैंने अनुमान लगाया कि शायद मेरा कार्टून बनाया जा रहा है, किन्तु वह तो कुछ और ही बनाने में मस्त थे. उन्होंने वादा किया कि वह एक दिन मेरा भी कार्टून बनाकर मुझे हंसाएँगे. कहीं उनका वादा चुनावी वादे जैसा न निकले?)

सुरेश शर्मा जी के कार्टून देखकर मुस्कराना हो तो पधारें http://sureshcartoonist.blogspot.com पर...

मंगलवार, 17 जनवरी 2012

उड़न तश्तरी में उड़ते समीर लाल




प्रिय मित्रो

सादर ब्लॉगस्ते!

इंसान की शुरू से ही दूसरे के घर में ताक-झाँक करने की आदत रही है. जब हमने विज्ञान में प्रगति की तो हमारी पृथ्वी के वैज्ञानिक अपने ग्रह को छोड़ दूसरे ग्रहों में ताक-झाँक करने लगे. "तुम डाल-डाल हम पात-पात" की कहावत को चरितार्थ करते हुए दूसरे ग्रहों के वासी, जिन्हें हम एलियन कहते हैं, भी समय-समय पर अपनी-अपनी उड़न तश्तरी में सवार हो हमारी पृथ्वी पर ताक-झाँक करने आते रहते हैं. एक दिन ऐसे ही एक उड़न तश्तरी धरती पर उतरी, तो उस समय वहाँ दो हिंदी ब्लॉगर टहल रहे थे. उड़नतश्तरी से कुछ एलियन धरती की जाँच-पड़ताल करने निकले, तो इन दोनों ब्लॉगरों ने उन्हें नींद की दवा डालकर बनाया हुआ सूजी का हलवा खिला दिया. जब बेचारे एलियन नींद में मस्त हो धरती पर आराम फरमाने लगे, तो ये दोनों ब्लॉगर उड़न तश्तरी पर सवार हो पूरी दुनिया की सैर करने लगे. उनमें से एक ब्लॉगर उड़न तश्तरी में उड़ते-उड़ते जब बोर हो गये, तो नीचे उतर नुक्कड़ पर बैठकर पंचायत करने लगे. दूसरे ब्लॉगर अब तक उड़न तश्तरी पर सवार हो इधर से उधर घूम रहे हैं. जी हाँ हम बात कर रहे हैं उड़न तश्तरी वाले समीर लाल जी की .

समीर लाल जी पैदायशी रतलामी हैं. बचपन और जवानी का बड़ा हिस्सा गुजरा जबलपुर में, सी. ए. हुए मुंबई से, फिल्मों में न जाकर लौट गये जबलपुर और प्रेक्टिस करते रहे जबलपुर में, खूब जुड़े राजनीति से और फिर अब १२ साल पहले चले गए कनाडा में तो तकनीकी सलाहकार बने बैठे हैं बैंक में और लिख रहे हैं कहानी और कविता अपने ब्लॉग "उड़न तश्तरी" पर.परिवार के फ्रंट पर एक निरीह प्राणी बोले तो एक जिम्मेदार पति हैं, पिता हैं दो जवान लड़कों के, ससुर हैं दो प्यारी सी बहुओं के और अब दादा भी हो गए हैं अपने पोते आर्यव के आने के साथ. आज उनसे मिलने का बहुत मन किया तो उन्हें जैसे ही याद किया तो कुछ पलों में ही वह अपनी उड़न तश्तरी के साथ वह मेरे अंगना में उतर आये.

सुमित प्रताप सिंह- समीर लाल जी नमस्कार! कैसे हैं आप?

समीर लाल- नमस्कार सुमित प्रताप सिंह जी! मैं तो एक दम फिट हूँ. और आप सुनायें?

सुमित प्रताप सिंह- जी मैं भी बिलकुल फिट हूँ. किन्तु समीर लाल जी आज आप थके-थके कैसे लग रहे हैं?

समीर लाल(हैरान हो)- थका-थका ?(वह अपना लैपटॉप निकाल कर एक नई पोस्ट पढ़ते हैं और उस पर झट से कमेन्ट कर देते हैं. ) अब बताइए कि अब भी थका-थका लग रहा हूँ.

सुमित प्रताप सिंह- जी नहीं बिलकुल तरोताजा लेकिन एक बात तो बताइए कि आपका कमेन्ट लगभग हर ब्लॉग पर मिल जाता है कहीं आप औरों की तरह बिना पढ़े ही तो कमेन्ट नहीं दे आते है?

समीर लाल- ऐसा कुछ नहीं हैं, मैं पूरी पोस्ट पढ़ता हूँ, यदि रचना अच्छी लगे तभी कमेन्ट देता हूँ. (उनकी इस बात को सुन दिल को तसल्ली मिली, क्योंकि मेरी लगभग प्रत्येक रचना पर उनका कमेन्ट मिलता है. यानि मैं भी अच्छा लिखता हूँ.)

सुमित प्रताप सिंह- समीर लाल जी कुछ प्रश्न पूछने की इच्छा है आपसे.

समीर लाल- तो पूछिए सरकार.

सुमित प्रताप सिंह- आपको ये ब्लॉग लेखन की बीमारी कब, कैसे और क्यों लगी?

समीर लाल- मेहमान और बीमारी बताकर आये तो क्या आये. बस लग गई साहब. वायरल टाईप है, जो दिख भर जाये तो लग जाती है. कंप्यूटर पर कविताबाजी तो २००५ से ही ई कविता ग्रुप पर कर रहे थे और वहीं कुछ लोगों को देखकर यह बीमारी लगा बैठे- लाईलाज- कोई वेक्सीन नहीं. कुछ लगाव तो कवि और लेखक होने के नाते छपास से था ही- बस, इसने और हवा दे दी.

सुमित प्रताप सिंह- आपने अपने ब्लॉग का नाम "उड़न तश्तरी" ही क्यों रखा? कहीं इसके पीछे पायलट न बन पाने की दबी इच्छा अथवा दुःख तो नहीं?

समीर लाल- पायलट तो खैर अगर बनते तो किसी एयर होस्टेस के चक्कर में ही बनते वरना काया के हिसाब से परीक्षा में शून्य ही मिलता और हवाई जहाज भी शायद ही जमीन से हिलता. बस, नामकरण करना था. भारत से दूर थे. फट से पहुँच पाने की इच्छा भले ही विचारों के माध्यम से लेखन की लगाम थामे और रख लिया नाम उड़न तश्तरी. लोग पसंद करने लगे और हालत यह हुई कि शुद्ध पाठक यानि जो मुझे व्यक्तिगत रुप से नहीं जानते (व्यक्तिगत जानने वाले तो बेचारे मजबूरी में भी पढ़ते हैं) अक्सर पत्र में ऊड़न जी या आदरणीय तश्तरी जी लिखकर भी संबोधित करते नजर आते हैं.
(जी कर रहा है कि मैं भी हैलीकॉप्टर या रोकेट नाम से ब्लॉग शुरू कर दूँ लेकिन फिर मेरे सुमित के तड़के कैसे लगेंगे?)
यूँ मुस्कराने के लिए तो, दुनिया मुस्कराती है
मगर हाय तेरी ये अदा, जान ही निकल जाती है....
सुमित प्रताप सिंह- आपकी पहली रचना कब और कैसे रची गई?

समीर लाल- पूत के पाँव पालने में दिखे तो नहीं थे मगर झाँके जरुर थे, जब मेरे स्कूल की पत्रिका में मेरी एक रचना छपी. ५ या ६ क्लास में रहा हूँगा. फिर परसाई जी के हाथों से उस रचना के लिए पुरुस्कृत भी किया गया. हाल वही कि सम्मानित हुए और लिखना बन्द. सभी बड़े साहित्यकारों सा हाल अपना पहली रचना में ही हो गया. फिर सन २००५ में कलम थामी तो अब तक चली जा रही है. कोई रुकवाना चाहे तो करे ठीक से सम्मानित श्रीफल देकर और शॉल बाँटकर, बंद हो जायेगा अपना लिखना भी.

सुमित प्रताप सिंह-आप लिखते क्यों हैं?

समीर लाल- इस प्रश्न से वह कवि याद आया जो मंच से रचना सुनाकर अपनी ६-७ डायरी संभाले उतर रहा था तो एक श्रोता ने आकर पूछा कि महोदय इतनी डायरियाँ देखकर मेरे मन में एक प्रश्न आ रहा है.

कवि तो यूँ भी अपने आपको डेढ़ होशियार समझते हैं तो कवि महोदय ने कहा कि मैं समझ गया- "तुम पूछना चाहते कि मैं इतना कैसे लिख लेता हूँ?"

श्रोता ने कहा कि नहीं जनाब, मैं पूतो छना चाहता था कि आप इतना लिखते क्यूँ हैं?

अब आप बताओ कि क्या अब भी मेरे जबाब की जरुरत है या फिर आप खुद समझ लोगे? वैसे लिखता हूँ मन की बात कहने को, सुनाने को, लोगों से जुड़ने को, कुछ बदलने को बस और क्या?

सुमित प्रताप सिंह- लेखन में आपकी प्रिय विधा कौन सी है?

समीर लाल- यूँ तो छंद मुक्तकवितायें और व्यंग्य मुझे सबसे प्रिय हैं मगर हाथ-पैर सब जगह अटकाये हैं. जो जिसे चाहे उम्मीद रहती है कि हर तरह का पाठक जुड़े. यही संख्या शायद कभी नाम दिला जाये. वैसे तो उसके लिए अलग तरह की तिकड़म भिड़ानी होती है मगर उस हेतु अभी समय की कमी और केन्द्र बिन्दु से दूरी की अधिकता बाधक बनी हुई है.

सुमित प्रताप सिंह- अपनी रचनाओं से समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं?

समीर लाल- मैने बुजुर्गों की स्थितियों पर लिखा है, अराजकता, भ्रष्टाचार, गरीबी, राजननीति से लेकर हर वह बात जो मुझे कचोट जाती है, उस पर लिखता हूँ, विधा कोई भी अपनाऊँ. बिना आवाज उठाये कुछ नहीं बदलता यही सोच रहती है. आवाज कितनी भी हल्की हो, उठनी जरुर चाहिये. एक चिंगारी ही तो है जो आग में बदलती है. हाँ हर चिंगारी आग बने यह जरुरी नहीं किन्तु हर आग के लिए एक चिंगारी जरुरी है. समाज और सभी से कहता हूँ, निवेदन करता हूँ कि कुछ बदलना चाहते हो तो चुप मत बैठो, कदम बढ़ाओ. लिखो, बोलो, कुछ तो करो. चिंगारी भी नहीं उठाओगे तो आग की आशा करना बेकार है.

सुमित प्रताप सिंह- एक अंतिम प्रश्न. "ब्लॉग पर हिंदी लेखन और इसका भविष्य" इस विषय पर आप अपने कुछ विचार रखेंगे?

समीर लाल- एक तीव्र गति से विकास प्रक्रिया जारी है. देश की तरह मात्र घोषणा नहीं, सच में. हाँ, इधर कुछ एग्रीगेटर्स के बंद हो जाने से पुराने ब्लॉगर्स में भ्रम की स्थिति बन रही है, कि ब्लॉग की संख्या में कमी आ रही है. मगर इस आयाम का अंदाजा पूर्व में ही लगाया जा चुका था कि एक निश्चित संख्या के बाद एग्रीगेटर अपनी क्षमताओं के चलते काम के नहीं रह जायेंगे, लोग उन पर आश्रित नहीं रहेंगे और अंग्रेजी ब्लोग्स की तरह से ही यहाँ भी लोग फीड बर्नर और अन्य माध्यमों से लोगों के ब्लॉग अवलोकन करेंगे. मैं हिन्दी ब्लॉगिंग के भविष्य को लेकर आशान्वित हूँ और उत्साहित भी. हिन्दी ब्लॉगिंग का भविष्य उज्जवल है और इसमें अनेक संभावनायें है. संपूर्ण ब्लॉगजगत को मेरी शुभकामनाएँ.

(मैंने उनके नाश्ते के लिए सूजी का हलवा बनवाया था, किन्तु जैसे ही मैं सूजी का हलवा लेकर अपने अंगना में पहुँचा, समीर लाल जी अपनी उड़न तश्तरी के साथ गायब मिले. कहीं उन्हें कुछ ग़लतफ़हमी तो नहीं हो गयी थी?)

समीर लाल जी की उड़न तश्तरी में घूमना हो तो पधारें http://udantashtari.blogspot.com/ पर...

शनिवार, 14 जनवरी 2012

सुरेश यादव की चिमनी पर टंगा चाँद


प्रिय मित्रो

सादर ब्लॉगस्ते!

     आप सभी को अपने परिवार, रिश्तेदारों, पड़ोसियों व सभी दोस्तों-दुश्मनों के साथ बीती लोहड़ी और आगामी मकरसंक्रांति की ह्रदय से हार्दिक शुभकामनाएँ. साथियो क्या आप जानते हैं कि दिल्ली नगर निगम कब आस्तित्व में आया. नहीं जानते? चलिए हम किसलिए हैं? दिल्ली नगर निगम संसदीय क़ानून के अंतर्गत 7 अप्रैल, 1958 में आस्तित्व में आया. दिल्ली की पहली निर्वाचित मेयर थीं अरुणा आसफ अली और लाला हंसराज गुप्ता ने प्रथम मेयर के रूप में अपनी सेवा दी.आज आपकी मुलाक़ात करवाने जा रहे इसी दिल्ली नगर निगम में अतिरिक्त उपायुक्त पद पर कार्यरत सुरेश यादव जी से. जो दिल्ली नगर निगम की सेवा करते हुए हिंदी साहित्य की सेवा में भी कर्मठता से लगे हुए हैं.
     सुरेश यादव जी जिला मैनपुरी के एक गाँव से आकर 1973 -74 ई. में दिल्ली में जमने की कोशिश कर रहे थे तभी से कही न कही कविताओ में भी खुद को पा रहे थे. 1981 ई. में इनकी "उगते अंकुर" नामक काव्यकृति प्रकाशित हुई. चार साल के अंतराल के पश्चात 1985 ई.में "दिन अभी डूबा नहीं" नामक दूसरी काव्यकृति प्रकाशित हाई और इसे हिंदी अकादमी, दिल्ली की ओर से सम्मान मिला. इनकी तीसरी काव्यकृति "चिमनी पर टंगा चाँद " 2010 ई. में प्रकाशित हुई. इस कृति को "भवानी प्रसाद मिश्र सम्मान" दिया गया. इन्हें लेखन हेतु "डॉ. रांगेय राघव सम्मान" सहित कई सम्मान समाज ने दिए है. रेडियो एवं दूरदर्शन पर भी यह काव्यपाठ करते रहते हैं. मज़े की बात यह है कि इन्हें हमारी तरह छपने का चस्का बिलकुल भी नहीं है और इन्होंने अखबारों तथा पत्रिकाओ को केवल माँगने पर ही रचनाए दी हैं.

सुमित प्रताप सिंह- आपको यह ब्लॉग लेखन का विचार कब और कैसे आया?

सुरेश यादव- अक्टूबर 2006 में जब पहली बार "अनुभूति" में मेरी रचनाए प्रकाशित हुई और मैंने देश विदेश से अपनी रचनाओ पर प्रतिक्रियाए पाईं इस सुखद अनुभूति ने मुझे प्रेरित किया.भाई सुभाष नीरव की प्रेरणा ने मुझे ब्लॉग रचनाकार बनाया और उसके बाद बहुत सारे मित्र हैं और सहयोग देने को तत्पर तो सुमित जी आप भी हैं.

सुमित प्रताप सिंह- आपकी पहली रचना कब और कैसे रची गई?

सुरेश यादव- .मेरी पहली रचना 1973 ई.में रची गई जब मैं छुट्टी पर अपने गाँव गया था . यह एक प्रणय गीत ही था जिसे मैंने शर्म से किसी को नहीं सुनाया.

सुमित प्रताप सिंह- आप लिखते क्यों हैं?

सुरेश यादव- .यह प्रश्न बहुत बड़ा है और लगभग ऐसा ही है जैसे कोई पूछे कि आप जीवन क्यों जीते है? लिखने का कारण कभी खोजा नहीं परन्तु महसूस करता हूँ कि अपने आप को अभिव्यक्त करने के लिए, अपने समाज से सरोकार बनाए रखने के लिए,जीवन-चिंतन तथा समाज के अभावों की पूर्ति के लिए और अंत में बेचैन सवालों के द्वारा विवशता वश भी कविता लिख जाता हूँ . लेखन जिसमें कविता के अलावा कहानियां ,लघु कथाएँ, समीक्षाएं आदि हैं. उनके लिखने का कारण भी यही है. सच तो यह है कि जितना मैं साहित्य रचता हूँ, साहित्य भी मुझे उतना ही रचता है और यह सिलसिला ज़ारी रहता है. कष्ट में सुख की अनुभूति केवल रचना करवा सकती है इसलिए वह मेरा जीवन है .

सुमित प्रताप सिंह- लेखन में आपकी प्रिय विधा कौन सी है?

सुरेश यादव- कविता मेरी प्रिय विधा है. यद्यपि मैंने कहानी,लघु कथा, ग़ज़ल, मुक्तक, दोहे, हायकू भी लिखे हैं और साहित्य समाज ने पसंद किए हैं.

सुमित प्रताप सिंह- अपनी रचनाओं से समाज को क्या सन्देश देना चाहते हैं?

सुरेश यादव- कोई भी रचना सन्देश से अधिक एहसास दिलाती है कि हम सब के बीच कहीं न कहीं विचारों और भावनाओं की समानता है जो मानवीय एकता को स्थापित करती है. यह एहसास ही सन्देश बन जाता है कि तमाम मानवता के बीच साझा चिंताए भी हैं. मैं अपने समाज को यह सन्देश भी देना चाहता हूँ कि सच्चाई, ईमानदारी और मानवता के हक़ में मेरी रचनायें खड़ी है तथा मानवीय संवेदनायें अभी जीवित हैं. आस्था और विश्वास का सन्देश मेरा प्रमुख सन्देश हैं.

सुमित प्रताप सिंह- एक अंतिम प्रश्न. "ब्लॉग लेखन हेतु भी एक आचार संहिता तथा एक निश्चित आयु सीमा होनी चाहिए." इस विषय पर क्या आप अपने कुछ विचार रखेंगे?

सुरेश यादव- ब्लॉग लिखने को मैं उसी तरह मानता हूँ कि जैसे कोई किसी पत्रिका का संपादन कर रहा हो अथवा अपनी स्वयं की रचनायें रच रहा हो. कोई किसी के नाम से ब्लॉग में कुछ भी लिख दे ठीक नहीं है. अपनी पूरी पहचान के साथ प्रामाणिक रूप में ही ब्लॉग रचनाकार को आना चाहिए. जहाँ तक आयु का सम्बन्ध है निर्धारित करना संभव नहीं है, परिपक्वता का आधार होना चाहिए, फिर भी यदि 13 -14 वर्ष से आयु कम न हो तो अच्छा है.

(इतना कहकर सुरेश यादव जी अपनी चिमनी की ओर निहारने लगे. मुझे लगा कि शायद चाँदरुपी कोई नई रचना उनके मस्तिष्क में प्रवेश करने को राह तक रही है. सुरेश यादव जी और उनकी नई रचना के मिलन में बाधा न बनूँ, सो मैं निकल लिया अपने अगले पड़ाव की ओर)

सुरेश यादव जी की चिमनी पर टंगा चाँद देखना हो तो पधारें http://sureshyadavsrijan.blogspot.com/ पर...


बुधवार, 11 जनवरी 2012

ब्लॉग शास्त्र पढ़ते संतोष त्रिवेदी




प्रिय मित्रो

सादर ब्लॉगस्ते!

           प यह भली-भाँति जानते होंगे कि हिन्दू धर्म में कितने वेद हैं. क्या नहीं जानते? चलिए हम बता देते हैं. वेदों की संख्या कुल चार है. ऋगवेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्वेद. ऋगवेद, यजुर्वेद व सामवेद को वेदत्रयी के नाम से संबोधित किया जाता था. इतिहास को हिन्दू धर्म में पंचम वेद की संज्ञा दी गई है. प्राचीन काल में जो ब्राम्हण जितने वेदों का ज्ञान प्राप्त करता था उसके नाम के पीछे उसी आधार पर चतुर्वेदी, त्रिवेदी व द्विवेदी आदि उपनाम लगाए जाते थे. आज हम जिन ब्लॉगर महोदय से मुलाक़ात करने जा रहे हैं वह भी त्रिवेदी उपनाम को धारण किये हुए हैं. अब यह तो ज्ञात नहीं कि उन्हें तीन वेदों का ज्ञान है अथवा नहीं, किन्तु ब्लॉग शास्त्र को वह भली-भाँति पढ़ रहे हैं. पहली बार इस तरह औपचारिक रूप से इनका साक्षात्कार हो रहा है, इसकी वज़ह सिर्फ और सिर्फ ब्लॉगिंग है.

           संतोष त्रिवेदी जी मूलतः रायबरेली (उत्तर प्रदेश) से हैं. इनकी पढ़ाई-लिखाई वहीँ के ग्रामीण परिवेश में हुई है. इनका क्षेत्र बैसवारा के अंतर्गत आता है, जिस धरती पर आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, निराला, डॉ. राम बिलास शर्माजी ,चन्द्र शेखर आजाद,राणा बेनी माधव,राव राम बक्स सिंह,हसरत मोहानी, शिव मंगल सिंह 'सुमन' और मुनव्वर राणा ने जन्म लिया ! पवित्र गंगा नदी का भी सानिद्ध्य इन्हें प्राप्त है. अब करीब अठारह सालों से दिल्ली में हैं और यहीं पर अध्यापन कार्य कर रहे हैं.

सुमित प्रताप सिंह- संतोष त्रिवेदी जी नमस्कार! कैसे हैं आप?

संतोष त्रिवेदी- जी नमस्कार सुमित प्रताप सिंह जी! मैं बिलकुल ठीक हूँ बस ब्लॉग शास्त्र के अध्ययन में मस्त था.

सुमित प्रताप सिंह- संतोष जी आपके ब्लॉग शास्त्र अध्ययन में बाधा पहुँचाने के क्षमा कीजियेगा. आपके लिए कुछ प्रश्न लाया हूँ.

संतोष त्रिवेदी- अपने प्रश्नरुपी बाण तरकश से निकाल लीजिये. हम झेलने को तैयार बैठे हैं.

सुमित प्रताप सिंह- हा हा हा. संतोष जी ब्लॉग लेखन का भूत आप पर कब और कैसे सवार हुआ?

संतोष त्रिवेदी- लिखने के बारे में पहले से ही मुझे शौक़ था.शेर-ओ-शायरी और राजनैतिक टिका-टिप्पणी करता रहता था.शुरू में 'जनसत्ता' में बहुत अधिक पत्र लिखे और वे प्रमुखता से छपे भी.बाद में सन २००७ से ब्लॉगर पर हूँ.पर कुछ सक्रिय हुआ २००९ से जो २०११ में जाकर चरम पर पहुँच गया.पहले राजनैतिक व शैक्षिक लेख लिखता रहा,बाद में साहित्यिक और व्यंग्यात्मक रुझान भी काफ़ी हो गया !

सुमित प्रताप सिंह- आपकी पहली रचना कब और कैसे रची गई? 


संतोष त्रिवेदी- पहली रचना तो शायद एक शेर के रूप में थी.बचपन में एक सांवली लड़की को याद करके लिखा था,आप भी देख लें;"जब भी देखता हूँ कोई सांवली-सी सूरत,तुम्हारा ही अक्स  उसमें नज़र आता है."

सुमित प्रताप सिंह- आप लिखते क्यों हैं?

संतोष त्रिवेदी- मैं पहले केवल शौकिया लिखता था पर अब शौक और संवाद (जो ब्लॉगिंग की ख़ास पहचान है)  के लिए लिखता हूँ.

सुमित प्रताप सिंह-  लेखन में आपकी प्रिय विधा कौन सी है? 

संतोष त्रिवेदी- लिखने में मेरी प्रिय विधा ग़ज़ल या व्यंग्य है !

सुमित प्रताप सिंह- अपनी रचनाओं से समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं?

संतोष त्रिवेदी- मैं अपने लिखने से समाज को सन्देश देने की बात नहीं समझता हूँ,हाँ ज़रूर अपने विचार इस समाज कें रखना चाहता हूँ,भले ही वह सबको सन्देश देते हों या नहीं.जो मुझे ठीक लगता है,बस लिख मारता हूँ,खरी-खरी !

सुमित प्रताप सिंह- एक अंतिम प्रश्न. "ब्लॉग पर हिंदी साहित्य"  इस विषय पर आप अपने कुछ विचार रखेंगे?

संतोष त्रिवेदी- मूलतः ब्लॉगिंग पूर्णकालिक लेखन (प्रिंट) या साहित्य से अलग विधा है.लोग निरा साहित्य पढ़ने के लिए यहाँ नहीं आते. हल्का-फुल्का लेखन व आपसी विमर्श मुख्य यू एस पी हैं ब्लॉगिंग की. अगर आप अच्छा लिखते हैं,कहीं पढ़ते नहीं, टीपते नहीं तो यह दुनिया आपके लिए नहीं है. यह बात और है कि अब यहाँ पर भी अच्छे दर्जे का साहित्य लिखा जा रहा है ! इसलिए आने वाले दिनों में इसका भविष्य उज्जवल है.

(मुझे लगा कि मैंने उन पर बहुत अधिक प्रश्न बाण चला लिए थे अब उन्हें ब्लॉग शास्त्र के अध्ययन हेतु अकेला छोड़ ही दिया जाए)

संतोष त्रिवेदी जी के साथ ब्लॉग शास्त्र का अध्ययन करना हो तो पधारें www.santoshtrivedi.com पर... 


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