जैसे एक आम आदमी के लिए सरकारी नौकरी पाने की तीव्र इच्छा होती है वैसे ही सरकारी नौकरी वाले जीव को सरकारी मकान पाने की दिली चाहत होती है। अब चूंकि सरकारी वेतन उसको और उसके परिवार को पालने में ही दम तोड़ देता है इसलिए निजी मकान के सपने देखना छोड़ सरकारी मकान को खोजना उसकी विवशता हो जाती है। वैसे देखा जाए तो सरकारी जीव के लिए सरकारी मकान अलॉट करवाना आसमान से तारे तोड़ कर लाने जितना ही आसान होता है। इस आसान काम को बहुत आसानी से पूरा करने के बाद जब उस बेचारे को इस बात का पता चलता है, कि जिस सरकारी मकान को उसने दुनिया भर के आसान उपायों को आजमा कर हासिल किया है वह तो भुतहा है तो उसका हाल धोबी के कुत्ते की भांति हो जाता है। सरकारी मकान अलॉट होने के बाद वह सरकारी जीव जिस मकान में किराए पर रह रहा होता है उसके मालिक को जल्द से जल्द मकान खाली कर सरकारी मकान में जाने की बात कह कर वह उसे धमकाते हुए एडवांस किराया देने से साफ इंकार कर चुका होता है। फलस्वरूप उसके मकान का मालिक अपने मकान को दूसरे किरायेदार से एडवांस लेकर उसके लिए बुक कर चुका होता है। अब उस सरकारी जीव के सामने केवल दो ही परिस्थितियां होती हैं कि या तो वह उस भुतहा सरकारी मकान में बस कर भूतों से दो – दो हाथ करे या फिर दूसरा किराए का मकान तलाशने के लिए जूते घिसे।
इससे पहले कि सरकारी जीव दोनों परिस्थितियों में से किसी एक का चुनाव करे आइए हम सरकारी मकान के भुतहा बनने की प्रक्रिया पर दृष्टि डाल लेते हैं।
सरकारी मकान जब कई सालों तक खाली रहता है तो उसके दो परिणाम होते हैं। पहला परिणाम होता है कि वह आसपड़ोस के लिए बहुत ही काम की वस्तु हो जाता है। पहले परिणाम के स्वरुप दूसरा परिणाम ये होता है, कि वह मकान आसपड़ोस वालों के अतिरिक्त बाकी कॉलोनी वासियों के लिए भुतहा घोषित हो जाता है।
उस भुतहा मकान में अंधेरा होते ही अजीबोगरीब आवाजें आने लगती हैं, जिनके बारे में ये बताया जाता है कि वो भूतों की आवाजें हैं। जबकि उस मकान में कभी आसपड़ोस के बेवड़े नशे में धुत्त होने के बाद लड़ते हुए कुटने-कूटने की ध्वनि उत्पन्न करते हैं तो कभी अगल–बगल के प्रेमी युगल जिगर से बीड़ी जलाने के उपक्रम में जुट कर रोमांटिक ध्वनियों के उत्सर्जन में अपना पावन योगदान देते हैं। पड़ोस के मकानों का आलतू–फालतू सामान उस भुतहा पड़े मकान की शोभा बढ़ाता है। रात में पड़ोस की भली नारियां अपना फालतू सामान भुतहा मकान में धरने के दौरान कभी–कभार जब फिसल कर धम्म से फर्श पर गिरती हैं तो गिरने के परिणामस्वरूप निकलीं उनकी चीखों को चुड़ैल की चीखें मान कर कॉलोनी के वीर निवासियों द्वारा उस स्थान से निकलने से बिलकुल परहेज कर लिया जाता है। आसपड़ोस के घरों के सामान रूपी कचरे की अधिकता से जब वायुदेव उस मकान से आवागमन करने को तिलांजलि दे देते हैं तो उस भुतहा मकान में सड़ांध के व्यवसाय में बहुत तेजी से वृद्धि होने लगती है।
अब चूंकि सरकारी जीव सरकारी कार्यालय और आम जीवन में जीवित भूतों से निरंतर जूझते हुए ही जीवन व्यतीत कर रहा होता है, इसलिए वह पहली परिस्थिति को ही स्वीकार कर सरकारी मकान में आने का निश्चय कर लेता है। उसे उस भुतहा सरकारी मकान के आसपड़ोस के भले लोगों द्वारा बहुत समझाया जाता है, लेकिन वह सरकारी जीव अपने निर्णय पर अटल रहता है। उसके अटल निर्णय के परिणामस्वरूप उस सरकारी मकान से भुतहा आवाजें आनी धीमे–धीमे बंद हो जाती हैं और उस सरकारी जीव व उसके परिवार द्वारा उस सरकारी मकान में गृह प्रवेश करने के साथ ही भुतहा आवाजें वहां से अपना बोरिया–बिस्तर समेटकर किसी अन्य खाली सरकारी मकान में जाकर डेरा डाल लेती हैं।
लेखक : सुमित प्रताप सिंह
चित्र गूगल से साभार