शनिवार, 16 अक्टूबर 2021

कविता : बोनस की आस


स-नस पूछ रही खुश हो

बोनस किस दिन आएगा

खाली पड़ा बैंक एकाउंट 

कुछ पल फिर मुस्काएगा


जाने कितने सपने पाले

वेतन के संग हम सबने 

पर वो आया और उड़ा

कुछ दिन के ही छल में

अब आगे की नैया को

बोनस ही पार लगाएगा

खाली पड़ा बैंक एकाउंट 

कुछ पल फिर मुस्काएगा


इस दीवाली दीप जलेंगे

बोनस के घी के बल पर

और कितनी बोनस से दूरी

दफ्तर बाबू जल्दी हल कर 

इस दिवाली कहीं दिवाला

नच के तो न ढोल बजाएगा

खाली पड़ा बैंक एकाउंट 

कुछ पल को तो मुस्काएगा


पत्नी को धनतेरस की रट है

बच्चे माँगें फुलझड़ी-पटाखे

लक्ष्मी पूजा की खातिर 

लाने हैं घर पे खील-बताशे

इन सभी योजनाओं को पूरा

बस बोनस ही कर पाएगा

और खाली पड़ा बैंक एकाउंट 

भर के फिर खाली हो जाएगा।

लेखक - सुमित प्रताप सिंह

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