एक गरीब आदमी था। वह हल्दी बेचकर बड़ी मुश्किल से अपना और अपने परिवार का गुजारा चलाता था। एक रात उसके सपने में आलू से सोना बनाने वाले संत आये। उन्होंने उस पर तरस खाकर उसे उपाय सुझाया, कि जब भी वह किसी ग्राहक को हल्दी बेचे तो एक हाथ से ग्राहक को हल्दी दे और ठीक उसी समय दूसरे हाथ को आसमान की ओर करके दुआ माँगते हुए अल्लाह या जीसस का नाम ले। पर वह आदमी सांप्रदायिक हिन्दू निकला। उसने एक हाथ से हल्दी बेची और दूसरे हाथ को आसमान की ओर करके दुआ माँगते हुए राम का नाम स्मरण किया। ऐसा करते हुए उसकी दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति हुई। फिर एक दिन उसने हल्दी और राम का कॉम्बिनेशन बनाकर हल्दीराम नाम से खाने-पीने की एक दुकान खोली, जहाँ लोग चौगुनी कीमत चुका कर अपनी जीभ का स्वाद मिटाने के लिए आने लगे। अब हल्दीराम नाम से दुकानों की एक बहुत बड़ी श्रृंखला बन चुकी है। वह आदमी रात को सोते हुए कामना करता रहता है, कि वो संत एक बार फिर उसके सपनों में आ जायें, ताकि वह उनको धन्यवाद दे सके पर उन संत को राम के नाम से इतनी तगड़ी एलर्जी है, कि वो राम का नाम सुनते ही सौ कोस दूर उछलकर गुलाटी मारते हुए भाग लेते हैं।