शनिवार, 8 अप्रैल 2017

व्यंग्य : मुस्कुराइए फिर से इलेक्शन हैं


   कूंचे, गलियां और मोहल्ले फिर से गुलज़ार होने लगे हैं। वो फिर से टोली बनाकर दरवाजे-दरवाजे जाकर अपनी हाजिरी दर्ज करवा रहे हैं। पाँच साल पहले चोट खाए हुए लोग नज़रें उठाकर खोज रहें हैं कि शायद कोई जाना-पहचाना चेहरा मिल जाए तो उसे कुछ पलों के लिए गरियाकर अपने दिल की भड़ास निकाल लें। पर उन्हें जाना-पहचाना कोई चेहरा नहीं दिखता बल्कि उन्हें दीखता है एक बिलकुल ताज़ा-तरीन चेहरा जो न तोड़नेवाले अनेकों वादे अपने संग लिए हुए नमस्कार मुद्रा में सामने खड़ा हुआ है। पहली बार तो नज़र उठाकर उसे एक पल को देखा तो वो चेहरा अनजाना सा लगा था लेकिन फिर गौर से देखने पर उनकी सूरत कुछ जानी-पहचानी सी लगने लगती है। अचानक याद आता है कि ये सूरत तो उनसे मिलती-जुलती है जिन्होंने पाँच साल पहले इसी प्रकार अपने दिव्य दर्शन दिए थे और उसके बाद ऐसे गायब हुए जैसे गधे के सिर से सींग। पाँच सालों तक उन्होंने ‘उल्लू बनाओ अभियान’ को सुचारू रूप से चलाया। इस बार जब उन्हें इस अभियान की कमान नहीं सौंपी गई तो वे अपने भतीजेभांजे या फिर कुछ दूर के रिश्तेदार के माध्यम से इस अभियान को सुचारू रूप से चालू रखने के लिए लोगों के बीच फिर से मौजूद हैं। ‘उल्लू बनाओ अभियान’ का वर्तमान प्रतिनिधि और उनके सगे-संबंधी काफी जुझारू हैं। ये उनका जुझारूपन ही जो इतने सिर-फुटव्वल के बाद भी प्रतिनिधित्व प्राप्त करने का जुगाड़ कर लिया । हम उन्हें सम्मानपूर्वक ‘जुगाड़ी’ शब्द से भी सुशोभित कर सकते हैं। वो लुटे-पिटे जनों की चरण वंदना कर उनको देव होने की फिर से अनुभूति कराते हैं और इस अनुभूति के बदले में उनका आशीर्वाद प्राप्त करने की तीव्र इच्छा रखते हैं। जब उन्हें लगता है कि इस बार देव हठ करने पर उतारू हैं तो वो उनके समक्ष सुरा सहित विभिन्न मनभावन उपहार चढ़ावे के रूप में प्रस्तुत करते हैं। इतना सब पाकर देव एकदम से खिल उठते हैं। वो आशा और विश्वास के साथ मुस्कुराते हैं। उनके संग कूंचों, गली-मोहल्लों और नाले-नालियों के इर्द-गिर्द सड़ांध मारता हुआ कूड़ा-करकट भी मुस्कुराता है। मच्छर और मक्खियाँ झूमते हुए नृत्य करते हैं। बीमारियाँ उम्मीद भरी निगाहों संग अंगड़ाई लेते हुए मुस्कुराती हैं। आस-पास का वातावरण भी गंधाते हुए मुस्कुराता है। तभी बिजली कड़कती है और आसमान से लखनवी अंदाज में आवाज गूँजती है 'मुस्कुराइए फिर से इलेक्शन हैं।" 

लेखक : सुमित प्रताप सिंह 


कार्टून गूगल से साभार 

शनिवार, 1 अप्रैल 2017

व्यंग्य : रोमियो तुम कब आओगे




     जकल बहुत परेशान हैं वो और काफी नाराज भी। वो चिंता में डूबकर विचार कर रहे हैं कि आखिर क्यों उन्हें शिकार बनाकर उन पर शिकंजा कसा रहा है। अभी तक तो कितने निश्चिन्त थे वे सब। न कोई रोक-टोक थी और न ही कोई बंधन था। बस उनकी मनमर्जी चलती थी। प्यार के नाम पर एक तो अय्याशी करने का मौका मिलता था ऊपर से ये सब करने के बदले जन्नत का दरवाजा खुलने का वादा भी। इस नेक काम में उन्हें बड़े-बड़ों का पूरा समर्थन और संरक्षण भी प्राप्त था। जिंदगी कितने मजे से बीत रही थी और अचानक यूँ मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। उन्हें रोमियो बता उनके खिलाफ बाकायदा अभियान चलाकर उनके प्रेम के धंधे को दफ़न करने की गहरी साजिश रची गयी। इस बार उनके आकाओं की चिल्ल-पौं भी कुछ काम न आ सकी। उनके शुभचिंतक चीखते रहे, चिल्लाते रहे और वो रोमियो को अपने  जाल में फँसाते रहे। वैसे तो ये लोग पश्चिमी संस्कृति को पानी पी-पीकर कोसते रहते हैं, पर अभियान चलाया तो पश्चिम के प्रेमी रोमियो के नाम पर। क्या मजनू और राँझे के प्यार में कोई कमी थी? क्या उन्होंने प्यार की खातिर क़ुरबानी नहीं दी थी? कम से कम मजनू और राँझे के नाम पर अभियान चलता तो उन पर सांप्रदायिक होने का दोष तो मढ़ा जा सकता था। पर नहीं उनके आदर्श तो पश्चिमवाले जो ठहरे। ये सोचते हुए वो अपने माथे पर चन्दन का तिलक लगाते हैं, अपने हाथों में पवित्र कलावा बाँधते हैं, हिन्दू देवी-देवताओं के लॉकेट गले में टाँगते हैं और पूरी तैयारी के साथ मँहगे कपड़े पहनकर अपनी फंडेड चमचमाती बाइक पर किक मारकर अपने इश्क़ मिशन पर रवाना हो जाते हैं। ये देखकर रोमियो-जूलियट, लैला-मजनू, हीर-राँझा प्रेम में क़ुर्बान हुए बाकी प्रेमी-प्रेमिकाओं संग मुस्कुराते हैं। पर उनकी मुस्कराहट में दुःख भरी उदासी है। वो आधुनिक रोमियो को धिक्कार रहे हैं। पर आधुनिक रोमियो इन सब बातों से बेपरवाह हैं। उन्हें तो बस उनके प्यार में फँसी हुईं मुर्गियाँ दिखाई दे रही हैं जिनको हलाल करना ही उनका मकसद है। उनका इंतज़ार उनके मकड़जाल  में फँसी हुईं अकलमंद आधुनिक जुलियटें पलकें बिछाकर कर रही हैं। उनके संग-संग अपने-अपने लट्ठ को तेल पिलाकर तैयार कर रोमियो की राह तकते हुए एंटी रोमियो स्क्वैड के सभी जवान बार-बार एक ही सवाल कर रहे हैं 'रोमियो! तुम कब आओगे?"
लेखक : सुमित प्रताप सिंह
कार्टून गूगल से साभार 

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