बुधवार, 13 मई 2015

हम पापी पुलिसवाले

‘भाई जिले
“हाँ बोल भाई नफे
“घणा करड़ा ध्यान दे रया सै अख़बार पढ़न में के कलक्टर बनण का इरादा सै?”
(बहुत ध्यान दे रहा है अख़बार में। क्या कलक्टर बनने का इरादा है?) 
“अरे भाई ऐसी गुस्ताखी करना अपने बस की बात नहीं है मैं तो बस अपने महकमे के साथी की खबर पढ़ रहा था
“के खबर सै?”
(क्या खबर है?)
“खबर का टाइटल है पत्थर बरसाती पुलिस
रै हम पुलिसआले कद तै पत्थर बरसाण लागे, यो काम तो काश्मीरियों का सै, पर खबर नै पूरी खोलकी बता
(अरे हम पुलिसवाले कबसे पत्थर बरसाने लगे, ये काम तो कश्मीरियों का है, पर खबर को खोलके बता।)
“क्यों क्या तूने अख़बार नहीं पढ़ा?”
 “रै याड़अ मरण की फुर्सत तो है नी, तू अख़बार पढ़ण की बात कर रया सै पुलिस की नौकरी में इसे फंसरे हाँ कि पूछएं ना।“
(अरे यहाँ मरने की फुर्सत तो है नहीं, तू अख़बार पढने की बात कर रहा है। पुलिस की नौकरी में ऐसे फँस रहे हैं कि पूछ मत।) 
 “चलो मैं ही बता देता हूँ कि क्या खबर है
“हाँ भाई बड़ी मेहरबानी होगी तेरी
“हुआ कुछ यूँ था कि एक ट्रेफिक का हवलदार एक महिला का चालान करने का पाप कर रहा था
“चालान करण का पाप भाई कोई क़ानून तोड़गा तो चालान तो करणा ए पड़ेगा पर उस औरत ने के जुर्म करया सै?”
(चालान करने का पाप? भाई कोई क़ानून तोड़ेगा तो चालान तो करना ही पड़ेगा। पर उस औरत ने जुर्म क्या किया था।)
“उसने तीन सवारियाँ बिना हेलमेट के बिठा रखी थीं और तेज़ रफ़्तार से स्कूटी चलाते हुए रेड लाइट भी जम्प कर ली थी
“तो उसका चालान होया फेर?”
(तो उसका चालान हुआ फिर?)
“चालान तो नहीं हुआ बल्कि पहले तो महिला ने हवलदार को टुच्चा कहा और फिर उसके ऊपर ईंटें उठाकर दे मारीं
“मतलब कि उस औरत न सरकारी सेवक के काम में बाधा डालण की कोशिश करी अच्छा फेर के होया?”
(मतलब कि उस औरत ने सरकारी सेवक के काम में बाधा डालने की कोशिश की। अच्छा फिर क्या हुआ?)
“हुआ क्या उस हवलदार ने भी बदले में उस महिला के ईंट दे मारी
“मतलब कि उसनै अपने आत्मरक्षा के अधिकार का पालण किया सै
(मतलब कि उसने अपने आत्मरक्षा के अधिकार का पालन किया था।)
“हाँ पर ये काम उसे मँहगा पड़ गया
“वो कूकर?”
(वो कैसे?)
“कोई भला मानव अपने मोबाइल से इस घटना को कैद कर रहा था यही वीडियो सारे चैनलों पर वायरल हो गया
“फेर के होया?”
(फिर क्या हुआ?)
“हुआ ये कि पहले तो हवलदार पर रिश्वत माँगने का इल्जाम लगाया गया फिर उसे बर्खास्त कर जेल की हवा खाने को भेज दिया गया। हालाँकि ये और बात है कि उसने रुपए चालान के एवज में माँगे थे।
“तो वा औरत भी जेल में होगी न
(तो वो औरत भी जेल में होगी न।)
“नहीं वो तो टी.वी. चैनलों पर इंटरव्यू देने में व्यस्त है
“पर यो जुल्म हवलदार के साथ ही क्यूं? ईंट मारण की शुरुआत तो औरत नै ही करी थी
(पर ये जुल्म हवलदार के साथ ही क्यों? ईंट मारने की शुरुआत तो औरत ने ही की थी।)
“हाँ शुरुआत तो महिला की ओर से ही हुई इसके अलावा उसने तेज रफ़्तार से गाड़ी चलाते हुए अपनी और अपने बच्चों की जिंदगी दाव पर लगाने का भी अपराध किया था, लेकिन इन ख़बरों को दिखाकर समाचार चैनलों का भला थोड़े ही होता उनकी टी.आर.पी. बढ़ाने के लिए तो पुलिसवाले की बलि चढ़ानी जरुरी थी
“यो टी.आर.पी. के बला सै?”
(ये टी.आर.पी. क्या बला है?)
“टी.आर.पी. का अर्थ है टेलीविज़न रेटिंग पॉइंट ये वो बला है जिसके पीछे हर चैनल पागल हो रखा है और इसको बढ़ाने के लिए उलटे-सीधे हर तरह के उपाय आजमाने को तत्पर रहता है अपनी देशी भाषा में इसका मतलब है ऐसे-वैसे-जैसे भी तने रहणा प्रथम
“मतलब कि या कमबख्त टी.आर.पी. ही आपणे साथी के जेल जाण की जिम्मेवार सै।”
(मतलब कि ये कमबख्त टी.आर.पी. ही अपने साथी के जेल जाने की जिम्मेवार है।)
“हाँ भाई वैसे भी हम पुलिसवाले मानव की श्रेणी में तो आते नहीं जो कोई मानव हमारे लिए आवाज भी उठाता वैसे भी जनता तो हमसे खार खाए ही बैठी रहती है। हमारी न तो क़ानून सुनता है, न सरकार और न ही हमारे अधिकारी।
“भाई तू ठीक क रया सै जनता की बद्दुआयें असर ल्यावैं तो हम पुलिसआणे तो सांझ भी ना पकडां और सीधे नरक में जावां
(भाई तू ठीक कह रहा है। जनता की बददुआयें असर लाएँ तो हम सांझ के दर्शन भी न कर पाएँ और नर्क में जाएँ।)
“नहीं हम पुलिसवाले नर्क नहीं स्वर्ग जायेंगे
“नू कूकर?”
(वो कैसे?)
“भाई नर्क से नर्क में नहीं जाते नर्क के बाद एक अवसर तो स्वर्ग में जाने का भी मिलता है अब बता कि मेरी बात को समझा कि नहीं?”
“हा हा हा कतई समझ गया
(हा हा हा बिलकुल समझ गया।)

लेखक : सुमित प्रताप सिंह
इटावा, नई दिल्ली, भारत  




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