दिनांक 27 अगस्त, 2012 को राय उमानाथ बली प्रेक्षागृह, कैसरबाग, लखनऊ (उ.प्र.) में तसलीम एवं परिकल्पना समूह संयुक्त प्रयास से अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉगर सम्मेलन का आयोजन किया गया । इस सम्मेलन में दिल्ली गान के लेखक सुमित प्रताप सिंह को उनके व्यंग्य लेखन के लिए वर्ष 2011 का श्रेष्ठ युवा व्यंग्यकार का सम्मान प्रदान किया गया । इस अवसर पर देश के कोने-कोने से आए 200 से अधिक ब्लॉगर, लेखक, संस्कृतिकर्मी और विज्ञान संचारक भी उपस्थित रहे ।
मंगलवार, 28 अगस्त 2012
सुमित को मिला श्रेष्ठ युवा व्यंग्यकार सम्मान
दिनांक 27 अगस्त, 2012 को राय उमानाथ बली प्रेक्षागृह, कैसरबाग, लखनऊ (उ.प्र.) में तसलीम एवं परिकल्पना समूह संयुक्त प्रयास से अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉगर सम्मेलन का आयोजन किया गया । इस सम्मेलन में दिल्ली गान के लेखक सुमित प्रताप सिंह को उनके व्यंग्य लेखन के लिए वर्ष 2011 का श्रेष्ठ युवा व्यंग्यकार का सम्मान प्रदान किया गया । इस अवसर पर देश के कोने-कोने से आए 200 से अधिक ब्लॉगर, लेखक, संस्कृतिकर्मी और विज्ञान संचारक भी उपस्थित रहे ।
रविवार, 29 जुलाई 2012
दिल्ली गान है युवाओं का प्रिय गीत : डॉ. अशोक चक्रधर
दिल्ली गान के लेखक सुमित प्रताप सिंह ने प्रसिद्द हास्य कवि डॉ. अशोक चक्रधर को उनके निवास पर जाकर दिल्ली एंथम की सी. डी. भेंट की. डॉ. अशोक चक्रधर ने कहा कि दिल्ली शहर पर लिखा सुमित का गीत आज युवाओं का प्रिय गीत है. उन्होंने सुमित प्रताप सिंह को इस उपलब्धि के लिए बधाई दी और उज्जवल भविष्य हेतु शुभकामनाएँ दीं.
रविवार, 1 जुलाई 2012
सुमित प्रताप सिंह हुए आर्य रत्न से सम्मानित
श्री निवासपुरी,दिल्ली में दिनाँक- 30.06.2012 को आयोजित एक कार्यक्रम में युवा कवि, लघुकथाकार, व्यंग्यकार व दिल्ली गान के लेखक सुमित प्रताप सिंह को आर्य ट्रस्ट ने आर्य रत्न सम्मान-2012 से सम्मानित किया. इस अवसर पर सुमित प्रताप सिंह ने अपनी व्यंग्य रचनाओं का पाठ किया व दिल्ली गान सुनाकर वहाँ उपस्थित जनसमूह का मन मोह लिया. आर्य ट्रस्ट के चेयरमैन व ट्रस्टी वेद प्रकाश शास्त्री ने सुमित प्रताप सिंह को दिल्ली की विशेषताएं समेटे हुए दिल्ली गान लिखने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद दिया.उन्होंने कहा कि दिल्ली गान को सुनने के बाद उन्हें यह अहसास होता है कि वह इतने सुंदर शहर में रह रहे है. उन्होंने सुमित प्रताप सिंह को ऐसी ही शानदार रचनायें लिखते रहने के लिए शुभकामनायें दी. इस अवसर पर बी.के.सिंह, गोपी कान्त डे, प्रेम चंद कुकरेजा, विवेक झा, प्रवीन झा, विपिन छाबड़ा, बॉबी कुमार व अन्य लोग उपस्थित थे.
दैनिक समाचार पत्र भेदी नज़र, सोमवार, 2 मई, 2012 |
रविवार, 10 जून 2012
सुमित प्रताप सिंह ने डॉ. किरण बेदी को भेंट की दिल्ली गान की सी.डी.
कल 9 जून, 2012 को डॉ. किरण बेदी ने अपना जन्मदिन दिल्ली के गुरुद्वारा बंगला साहिब में मनाया. उनके सभी सगे-सम्बन्धियों व शुभचिंतकों ने उन्हें जन्मदिन की शुभकामनाएँ दीं. इस अवसर पर डॉ. किरण बेदी के विशेष निमंत्रण पर पहुँचे दिल्ली गान के रचयिता सुमित प्रताप सिंह ने जन्मदिन शुभकामनाएँ देते हुए डॉ. किरण बेदी को ओउम् तथा दिल्ली गान की सी.डी. भेंट की.
गुरुवार, 7 जून 2012
सुमित प्रताप सिंह को मिला शब्द साधक सम्मान
बायें से श्री सुमित प्रताप सिंह, डॉ. हरीश अरोड़ा, श्री हवलदार सिंह शास्त्री एवं आचार्य श्री कृष्णानंद वर्मा |
नई दिल्लीः लाल कला,सांस्कृतिक एवं सामाजिक चेतना मंच (रजि.) द्वारा विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर विश्व में बिगडते हुए पर्यावरण के संरक्षण में युवाओं की भूमिका पर एक चर्चा एवं काव्य गोष्ठी व सम्मान समारोह का आयोजन अल्फा शैक्षणिक संस्थान स्कूल रोड, मीठापुर में किया गया। जिसमें वक्ता के रुप में डा. हरीश अरोडा प्रो. सान्ध्य डी.ए.वी. कालेज श्री निवासपुरी, नई दिल्ली एवं बल्लवगढ कालेज के पूर्व प्रो.(आचार्य) हवलदार सिंह शास्त्री ने भाग लिया।
पर्यावरण पर आधारित रचनाओं का काव्य पाठ भी किया गया, जिसमें भाग लेने वाले कवि थे-डा.ए.कीर्तिवर्धन, श्री प्रदीप गर्ग पराग, पर्यावरणप्रेमी लाल बिहारी लाल, श्री प्रकाश लखानी,श्री एल.एन.गोसाई, श्री दीपक शर्मा कुल्लवी, श्री शिव कुमार ओझा, श्री शिव कुमार प्रेमी, सुश्री महिमा श्री, मो. अब्दुल रहमान, श्री सुरेन्द्र साधक, श्रीमती रेखा रानी, श्री वीरेन्द्र क़मर, श्री भुवनेश सिंघल, श्री भवानी शंकर शुक्ल इत्यादि। इसके अतिरिक्त श्री अर्श अमृतसरी के गज़ल संग्रह ज़िंदगी गज़ल है तथा लाल बिहारी लाल सहित अन्य दस कवियों की रचनाओं पर आधारित काव्य संग्रह “बस इसी एक आस में” का भी लोकार्पण किया गया।
इस कार्यक्रम के विशेष आकर्षण थे दिल्ली गान के रचयिता श्री सुमित प्रताप सिंह। जिन्होंने दिल्ली गान को सुना कर वहाँ उपस्थित जनसमूह का मन मोह लिया । डॉ. हरीश अरोड़ा की गज़ल "बेटियाँ" को भी खूब वाहवाही मिली। इस अवसर पर सुमित प्रताप सिंह को लाल कला, सांस्कृतिक एवं सामाजिक चेतना मंच (रजि.) ने उनके द्वारा साहित्य सृजन में योगदान देने हेतु विशेष रूप से “शब्द साधक सम्मान” से सम्मानित किया। श्रीमति ममता श्रीवास्तव एवं श्री मोहन कुमार को भी क्रमशः सुर साधक सम्मान व स्वास्थ्य श्री सम्मान प्रदान किये गए। इस कार्यक्रम का संयोजन श्री लाल बिहारी लाल, अध्यक्षता आचार्य श्री कृष्णानन्द वर्मा तथा संचालन डा. कीर्तिवर्धन ने किया।
रविवार, 29 अप्रैल 2012
मंगलवार, 20 मार्च 2012
देश के दिल दिल्ली को मिला अपना गान
दैनिक जागरण 18 मार्च 2012 में दिल्ली गान |
आपको यह जानकर बहुत खुशी होगी कि देश के दिल दिल्ली को अपना गान (दिल्ली एंथम) मिल गया है। दिल्ली गान के रचयिता हैं सुमित प्रताप सिंह. इटावा में जन्मे सुमित प्रताप सिंह का पैतृक गाँव लालपुरा है । स्वर्गीय श्री महाराज सिंह तोमर के पोते, श्री सुरेश सिंह तोमर व श्रीमति शोभना तोमर के सुपुत्र ने यह इतिहास रचा है । इनकी ननिहाल मूसेपुरा, इटावा में है । इनके नाना का नाम श्री विश्वनाथ सिंह चौहान है । सुमित प्रताप सिंह दिल्ली में ही पढ़े-लिखे । इन्होंने इतिहास में बी.ए.भगत सिंह कॉलेज से किया व दिल्ली पुलिस में भर्ती हो गये । इन्हें बचपन से ही लेखन का शौक है तथा इन्हें युवा हास्य कवि पुरस्कार, प्रहरी अवार्ड व व्यंग्य सम्राट जैसे अनेक पुरस्कार मिल चुके हैं । यह करीब चार साल से सुमित के तड़के नाम से ब्लॉग लिख रहे हैं । सुमित प्रताप सिंह का गीत दिल्ली गान बन गया है ।
दैनिक जागरण 19 मार्च पेज 5 दिनांक 19 मार्च 2012 में छाए हुए सुमित प्रताप सिंह |
बीते रविवार (दिनांक-18.03.12) को दिल्ली के साकेत डीएलफ मॉल में 'मेरा शहर मेरा गीत' की सीडी लांच करके दिल्ली की मेयर रजनी अब्बी ने इस पर अपनी मोहर लगा दी है और इस गीत की प्रशंसा में अपना वक्तव्य देकर माननीया मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने इस गीत को अक्टूबर,2010 में आयोजित राष्ट्रमंडल खेल के दौरान जारी किए गए 'मेरी दिल्ली मेरी शान' गीत से बेहतर बतलाया है।
दैनिक जागरण 19 मार्च 2012 में संगीतकार आदेश श्रीवास्तव के विचार |
दिल्ली गान को स्वर व गीत से सुसज्जित करने वाले आदेश श्रीवास्तव ने कार्यक्रम के दौरान सुमित प्रताप सिंह की भूरी-भूरी प्रशंसा की तथा सुमित प्रताप सिंह ने भी उनके गीत को अपनी आवाज व संगीत देकर इतना मधुर बनाने के लिए आदेश श्रीवास्तव को धन्यवाद दिया। सुमित प्रताप सिंह के माता-पिता, भाई अमित प्रताप सिंह, बहन संगीता सिंह तोमर (आपकी कलम घिस्सी), सुरेश यादव (चिमनी पर टंगे चाँद वाले अंकल), अविनाश वाचस्पति (अपने अन्ना चाचू) व संतोष त्रिवेदी इत्यादि जाने-माने ब्लॉगर इस ऐतिहासिक क्षण के गवाह बनने को वहाँ उपस्थित थे।
दैनिक जागरण 20मार्च, 2012 में दिल्ली गान गाते सुमित प्रताप सिंह |
शुक्रवार, 16 मार्च 2012
दिल्ली गान के रचयिता सुमित प्रताप सिंह
आदरणीय ब्लॉगर साथियो
सादर ब्लॉगस्ते!
आपको पता है कि दिल्ली की स्थापना किसने की थी? नहीं पता? किताब-विताब नहीं पढ़ते है क्या? चलिए चूँकि मैंने इतिहास में एम.ए.किया है, तो कम से कम इतना तो मेरा फ़र्ज़ बनता
ही है, कि आप सभी को इतिहास की थोड़ी-बहुत जानकारी दे सकूँ। आइए इतिहास के पन्नों की तलाशी लेते हैं। महाभारत युद्ध की पृष्ठ भूमि तैयार हो रही है। कौरवों ने पांडवों को चालाकी से खांडवप्रस्थ देकर निपटा दिया है। कौरवों के अन्याय को सहते हुए पांडवों ने अपने कठिन परिश्रम से खांडवप्रस्थ
को इंद्रप्रस्थ बना दिया है। इस प्रकार
इन्द्रप्रस्थ के रूप में दिल्ली के पहले शहर की स्थापना हो चुकी है। महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका है और अश्वत्थामा अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा
के गर्भ पर ब्रह्मास्त्र छोड़कर अट्ठाहास कर रहा है, किन्तु जिस पर
प्रभु श्री कृष्ण का आशीष हो, तो भला उसका कोई क्या बिगाड़ सकता है। श्री कृष्ण के आशीर्वाद से उत्तरा के गर्भ से उत्पन्न मृत बालक जीवित हो उठता
है. बालक का नाम रखा जाता है परीक्षित (दूसरे की इच्छा से जीवित होने वाला)। आगे बढ़ते हैं। मध्यकाल का समय है। उन्हीं राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय के वंशज अनंगपाल तोमर के स्वप्न में
माता कुंती आती हैं और इंद्रप्रस्थ या कहें दिल्ली को राजधानी बनाकर अपने पूर्वजों
का गौरव फिर से लौटाने का उनसे आग्रह करती है। आइए वापस आधुनिक काल में लौट आते हैं। उसी तोमर वंश का एक
युवा अपने पूर्वजों की कर्मभूमि दिल्ली के लिए दिल्ली गान की रचना करता है। जी हाँ मैं बात कर रही हूँ सुमित प्रताप सिंह की। सुमित प्रताप सिंह एक छोटे-मोटे हिन्दी ब्लॉगर हैं (मैं उनसे भी छोटी-मोटी
हिन्दी ब्लॉगर हूँ) और हाल ही में दैनिक जागरण की "मेरा शहर मेरा गीत" नामक
प्रतियोगिता में सुमित प्रताप सिंह का गीत “कुछ खास है मेरी दिल्ली में” चुना गया है
और दिल्ली गान बन गया है।
सुमित प्रताप सिंह का जन्म उत्तर प्रदेश के इटावा
जिले में हुआ। इनकी प्राथमिक शिक्षा दिल्ली में ही हुई व दिल्ली विश्व विद्यालय से इन्होनें इतिहास से स्नातक किया तथा कॉलेज की पढ़ाई के दौरान ही दिल्ली पुलिस में भर्ती हो गये। यह कवि तो बचपन से ही थे, किन्तु पुलिस की कठिन ट्रेनिंग ने इन्हें हास्य कवि
बना दिया। मई, 2008 से इन्होंने 'सुमित के तड़के' नामक ब्लॉग पर शब्दों
के तड़के लगाने आरंभ कर दिये। 2012 का साल इनके लिए सौभाग्य लेकर आया और इनका गीत "कुछ ख़ास है मेरी दिल्ली
में" दिल्ली गान चुना गया। आइए बाकी बचा-खुचा
इन्हीं से पूछ लेते है।
संगीता सिंह तोमर- सुमित प्रताप सिंह जी नमस्कार! कैसे हैं आप?
सुमित प्रताप सिंह- नमस्कार कलम घिस्सी जी! मैं ठीक हूँ। आप कैसी हैं?
(आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि मेरे ब्लॉग का नाम “कलम घिस्सी” है। वैसे आप मुझे इस नाम से संबोधित करें तो कोई दिक्कत नहीं।)
संगीता सिंह तोमर- जी आपकी कृपा से बिलकुल ठीक हूँ। कुछ प्रश्न लाई हूँ आपके लिए।
सुमित प्रताप सिंह- अभी तक तो अपन ही प्रश्नों की पोटली टाँगे फिरते रहते थे। अब आपने यह संभाल ली. चलिए जो पूछना है पूछ डालिए।
(आखिर छोटी बहन हूँ और इतना समझ सकती हूँ कि भैया जी को भी थकान होती हैं। वैसे भी जिस प्रकार डॉक्टर अपना इलाज खुद नहीं कर पाता, उसी प्रकार अपना
साक्षात्कार अब ये तो ले नहीं पाते, सो मैंने ही यह ज़िम्मेदारी संभाल ली। वैसे भी सुमित भैया की कार्बन कॉपी यानि कि आपकी कलम घिस्सी से बेहतर उनका
साक्षात्कार कौन ले पाएगा....खैर आगे बढ़ें?)
संगीता सिंह तोमर- सबसे पहले तो आपको दिल्ली गान लिखने के लिए बधाई। आपका गीत दिल्ली गान बन चुका है। अब आपको कैसा
अनुभव हो रहा है?
सुमित प्रताप सिंह- शुक्रिया कलम घिस्सी बहना। मुझे बहुत अच्छा अनुभव हो रहा है। मैं अपनी दिल्ली
के लिए कुछ कर पाया, इस बात का मुझे संतोष है।
(धर्मराज युधिष्ठिर अपने वंशज अनंगपाल तोमर के संग सूरज कुंड में स्नान करते
हुए दिल्ली गान गा रहे हैं।)
संगीता सिंह तोमर- आप लिखते क्यों हैं?
सुमित प्रताप सिंह- लोग अक्सर पूछते हैं कि मैं क्यों लिखता हूँ। लिखना मेरे जीवन जीने का तरीका है और मैं जीने के लिए लिखता हूँ। सोचता हूँ यदि मैं लिखता नहीं होता, तो शायद मैं अब तक नहीं होता। अपने जीवन में मिली निराशा और असफलता से जूझने का हथियार है मेरा लेखन। मैं विवशता में नहीं लिखता। जब मन करता है तो
लिखता हूँ और मन लिखने को मना करे तो बिल्कुल नहीं लिखता। मैं उस भीड़ का हिस्सा बनने से बचता हूँ, जो बिना बात में निरंतर लिखती रहती
है। मेरे मन से जब आवाज आती है, तभी मैं लिखता हूँ। मुझमें भी छपास की चाहत है, किन्तु यह दीवानगी की हद तक नहीं है। मेरे लिखने का मकसद है, कि मेरे लिखने से समाज को कुछ मिले। जब समाज मेरे लिखने से कुछ पा सकेगा तभी समझूंगा कि मैं वास्तव में लिखता हूँ।
(महाबली
भीम अपने पोते परीक्षित के साथ इन्द्रपस्थ किले या कहें कि दिल्ली के पुराने किले
के पीछे स्थित प्राचीन भैरव मंदिर में दिल्ली गान गाने में मस्त हैं।)
संगीता सिंह तोमर– आपको ब्लॉग लेखन का रोग
कब और कैसे लगा?
सुमित प्रताप सिंह– ब्लॉग लेखन का रोग एक कन्या के माध्यम से लगा। आज चार वर्ष होने को हैं। वह कन्या तो जाने
किस लोक में लोप हो गई, किन्तु मुझ पर यह रोग पूरी तरह अधिकार जमा चुका है।
(धनुर्धर
अर्जुन अपने पड़पोते जनमेजय के संग इन्द्रप्रस्थ किले की प्राचीर पर खड़े हो अपने
बाणों से आकाश में “कुछ खास है मेरी दिल्ली में” लिख रहे हैं।)
संगीता सिंह तोमर– आपकी लेखन में सर्वाधिक प्रिय विधा कौन सी
है?
सुमित प्रताप सिंह -लेखन में मेरी सर्वाधिक प्रिय विधा व्यंग्य है, किन्तु गीत, कविता
व लघुकथा लेखन भी प्रिय विधाएँ हैं, जो कि मेरे हृदय में बसती हैं।
(माता
कुंती नकुल और सहदेव संग इन्द्रप्रस्थ किले में स्थित कुंती मंदिर में बैठी हुईं
दिल्ली गान गुनगुना रही हैं।)
संगीता सिंह तोमर– आप अपनी रचनाओं से समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं?
सुमित प्रताप सिंह- संदेश? इस देश में भला कोई
संदेश पर ध्यान देता है क्या? फिर भी मैं इस कोशिश
में रहता हूँ, कि मेरी रचनाओं से समाज को संदेश मिले, कि जीवन छोटा सा है इसलिए
इसे हँसते-मुस्काते बिताया जाये। समाज में फैली
कुरीतियों को सोटा जमाने के लिए अब तो उठ कर खड़ा हो लिया जाए। हर इंसान एक बात सोचे, कि उसने इस देश व समाज से जितना लिया है, कम से कम
उसका 10 प्रतिशत तो लौटाने का प्रयास करें।
(तोमर वंश के कुल देवता श्री कृष्ण अपनी बांसुरी पर दिल्ली गान की धुन बजा रहे
हैं। अरे देखिए उनके साथ आकाश में तोमरों के सभी पूर्वज
एकत्र हो, अपने वंशज सुमित प्रताप सिंह को अपना आशीष दे रहे हैं।)
संगीता सिंह तोमर– एक अंतिम प्रश्न “क्या हिंदी कभी विश्व की बिंदी बनेगी?”
सुमित प्रताप सिंह- हिंदी अवश्य ही विश्व की बिंदी बनेगी और एक न एक दिन
स्वाभिमान से तनेगी। हम सभी हिंदीपूत
ब्लॉगर तब तक चैन से नहीं बैठेंगे जब तक इसे इसका हक न दिला दें .....जय हिंद, जय
हिंदी और जय दिल्ली!
(इतना कहकर सुमित प्रताप सिंह दिल्ली गान "कुछ ख़ास है मेरी दिल्ली में" गाने लगे और मैं भी उनके साथ सुर में सुर मिलाने लगी।)
बुधवार, 14 मार्च 2012
ग्रुप नोटिफिकेशन से परेशान के लिए है समाधान
दोस्तो
आपके दुःख को मैं समझ सकता हूँ. आपका कोई न कोई दोस्त आपको किसी ग्रुप में भर्ती
करवा देता है और आप उस ग्रुप में होने वाली प्रत्येक गतिविधि की खबर पाते रहते हैं और
आपका ई मेल खचाखच भर जाता है. नीचे उपाय बता रहा हूँ उसे अपनाइए और सभी ग्रुपों
में मस्त होकर बैठे रहिए.
सबसे पहले दायीं ओर ऊपर स्थित नोटिफिकेशन पर क्लिक करे
इसके बाद सेटिंग पर क्लिक करें
अब आपको काले घेरे में कुछ दिख रहा है आपको? यदि नहीं दिख रहा है तो या तो फोटो पर क्लिक करें या फिर Ctrl के साथ + की बटन दबाएँ और तस्वीर को बड़ा करके देखें. दोबारा उसी स्थिति में आने के लिए Ctrl के साथ - की बटन दबाएँ.
इसी काले घेरे में एक बक्सा(Box) है उसे अचिन्हित (unmark) कीजिए.
अब पर save changes पर क्लिक कर मुक्त हो जाइए नोटिफिकेशन की परेशानी से.
देखा कितना आसान है नोटिफिकेशन से आज़ादी पाना. अब हमारी संस्था के ग्रुप शोभना वैलफेयर सोसाइटी रजि. को छोड़ने के बारे में कभी सोचना भी मत.
गुरुवार, 8 मार्च 2012
एक पत्र होली के नाम
प्यारी होली
सादर रंगस्ते!
उस दिन ड्यूटी समाप्त कर घर वापस लौट रहा था कि अचानक पीठ पर पानी का गुब्बारा किसी ने दे मारा. पीछे मुड़कर देखा तो एक छोटा बच्चा मनमोहक मुस्कान के साथ तोतली आवाज में बोला, “ओली है”. तब जाना कि आपका आगमन होने वाला है. नौकरी की व्यस्तता इतनी अधिक हो जाती है कि कोई त्यौहार अथवा कोई विशेष दिन याद ही नहीं रह पाता. त्यौहार के दिन ही सुबह-सवेरे आने वाले एस.एम्.एस. द्वारा पता चलता है की आज ये त्यौहार है तथा त्यौहार का आधा दिन तो एस.एम्.एस. पढने व उनके जवाब देने में ही चला जाता है बाकि जो समय बचता है तो एक प्रकार की रस्म अदायगी ही हो पाती है.
आगे पढ़ें...
आगे पढ़ें...
सोमवार, 5 मार्च 2012
अपने ब्लॉग पर हिन्दी का बॉक्स लगाएँ
प्यारे साथियो
सादर ब्लॉगस्ते!
अक्सर देखता हूँ, कि नेट जगत पर लोग पूछते मिल जाते हैं कि हिन्दी में आखिर कैसे लिखें. उन सभी की सहायता के लिए नीचे जावा स्क्रिप्ट दी गई. बस आपको करना क्या है, अपने ब्लॉग के Layout पर जाना है और वहाँ Add a Gadget पर क्लिक करके HTML/JavaScript में जाकर नीचे नीले रंग में दिया गया कोड चिपका देना है. इसके बाद ही आपके ब्लॉग पर एक बॉक्स दिखने लगेगा जिसकी सहायता से आप हिन्दी में अपनी रचना को लिख सकते हैं. जय हिंद! जय हिन्दी!
<script src="http://www.google.com/jsapi" type="text/javascript"></script>
<script type="text/javascript">
google.load("elements", "1", {
packages: "transliteration"
});
function onLoad() {
var options = {
sourceLanguage:
google.elements.transliteration.LanguageCode.ENGLISH,
destinationLanguage:
google.elements.transliteration.LanguageCode.HINDI,
shortcutKey: 'ctrl+g',
transliterationEnabled: true
};
// Create an instance on TransliterationControl with the required
// options.
var control =
new google.elements.transliteration.TransliterationControl(options);
// Enable transliteration in the textbox with id
// 'transliterateTextarea'.
control.makeTransliteratable(['transliterateTextarea']);
}
google.setOnLoadCallback(onLoad);
</script>
<div align="left"><textarea id="transliterateTextarea" style="width:100%;height:100px"></textarea></div><p align="right"><a style="font-size:60%;" href="http://www.sumitpratapsingh.com/2012/03/blog-post_5.html">यह विजेट अपने ब्लॉग पर लगाएँ </a></p>
रविवार, 4 मार्च 2012
इश्श्माइल करते अजय कुमार झा
सादर ब्लॉगस्ते!
साथियों अपना जीवन छोटा सा है तो इस छोटे से जीवन को हँसते-मुस्कुराते गुजारा जाए तो कितना अच्छा रहे। अपनी पंक्तियों द्वारा कहूँ तो-
जीवन में दुःख है बहुत
क्यों न ऐसा करें
हँस-हँस जिएँ
मुस्कुरा के मरें...
सुख-दुःख तो जीवन में आते और जाते रहते हैं..वैसे भी जब तक हम दुःख नहीं झेलेंगे तब सुख का आनंद हमें कैसे पता चलेगा। जब भी निराशा आपको हताश व निराश करने आए तो उसकी कमर में हँसी का ऐसा जबर्दस्त लट्ठ मारिए कि फिर कभी आपके सामने आने का वह साहस ही न कर सके। तो इसी बात पर मेरे साथ मुस्कुराइए और एक जोरदार ठहाका लगाइए। अरे वाह खिलखिलाते हुए आपका चेहरा (थोबड़ा बोलूं तो चलेगा) कितना सुंदर लगता है। कुछ-कुछ रश्मि प्रभा जी, रविन्द्र प्रभात जी, सुरेश यादव जी, पवन कुमार भैया व संजीव शर्मा जी जैसा और ठहाका लगाते हुए तो आप इन्दुपुरी जी, पवन चन्दन जी, अविनाश वाचस्पति जी व राजीव तनेजा जैसे लगने लगे। वैसे भी हँसने व मुस्काने से शरीर को कोई हानि तो पहुँचने से रही कुछ न कुछ तो लाभ मिलेगा ही तो अब उतार फैंकिए अपने चेहरे की मुर्दानगी और जी भरकर हँसिए (शिवम मिश्रा भैया जैसे) और खिलखिलाइये (अपन की बहना कलम घिस्सी की तरह)।आइए आज इस कड़ी में मिलते हैं जीवन को हँसते और मुस्कुराते हुए बिताने में यकीन रखने वाले हिन्दी ब्लॉगर बंधु श्री अजय कुमार झा से...
अजय कुमार झा हिन्दुस्तान के एक आम आदमी हैं। पेशे से सरकारी नौकर , तेवर से बागी जनता , मिज़ाज़ से शायर और दोस्त , आदत से लिखने-पढने वाले । बचपन में पिताजी की फ़ौजी घुमक्कडी नौकरी ने पूरे देश की भाषा , लोग , रीति रिवाज़ , त्यौहार सबको अपनाने का मौका दे दिया । किस्मत ने पलटा खाया और तरूणाई से लेकर वयस्कता तक ग्राम्य जीवन को करीब से, बहुत करीब से देखने का मौका मिला, सच कहें तो गांव की मिट्टी ने थोड़ा-थोड़ा इंसान होना सिखाया , बांकी जिंदगी और उसे जीने की लड़ाई ने सिखा दिया । बहुत से अपने दूर चले गए ,हमेशा के लिए भी , बहुत अपरिचित से हो गए । मगर इन सबके बीच जो साथ साथ चलता रहा , वो था लिखना पढ़ना , वेदप्रकाश शर्मा को , कर्नल रंजीत को , चंपक ,नंदन , चंदामामा , बेताल , मैंड्रैक और नागराज को भी , फ़िर कीट्स और शेक्सपीयर को भी, गुरूदेव को भी और बाबा नागार्जुन को भी। चलिए मिलते हैं अजय कुमार झा जी से....
सुमित प्रताप सिंह- अजय कुमार झा जी जय सिया राम! कैसे हैं आप?
अजय कुमार झा जी- जय सिया राम सुमित जी! हम तो ठीक हैं आप अपनी कहें।
(अजय भैया ने जय सिया राम कहा तो शिखा वार्ष्णेय जी के जय श्री कृष्ण याद आ गए)
सुमित प्रताप सिंह- अपन भी बिलकुल ठीक हैं।आपको जानने की इच्छा लिए हुए कुछ प्रश्न लाया हूँ।
अजय कुमार झा जी- पूछो पूछो भैया बेधड़क होकर पूछो।
(अजय भैया ने बोला इस अंदाज में कि दिल धड़कने लगा)
सुमित प्रताप सिंह- ब्लॉग लेखन के झाँसे आप कैसे आ गए?
अजय कुमार झा जी- जी हमें तो बाकायदा कादम्बिनी बहन से सोलह पेज की प्रिंट किलास देकर हमारा दाखिला कराया था ब्लॉगिग में और फ़िर बडे शान से उन दिनों एक पोस्ट के लिंक कुल आठ दस एग्रीगेटर पर चमकते हुए पाते थे , पहले टिप्पणी और फ़ोटो लगाने का पता नहीं था सो इससे भजकल दारम , माने दरमाहा टाईप का भी कुछ मिल सकता है , इत्ता डीपली कभी सोचबे नहीं किए । हमरे लिए तो ई खिटपिट बहुत ही लाभदायक रहा । इसी बहाने से घर में कंप्यूटर और कंप्यूटर में कम से कम बारह तेरह घंटे हिंदी टहलते रहती है , एक से एक , खूबसूरत रंग और तस्वीर में । हां झांसा देकर उलटा एक आध को धर लाए थे , अभी तो औरो बहुत दोस्तों को भी लपेट रहे हैं , देखिए आएंगे तो मिलवाएंगे आप लोगों से भी उनको ।
(मन में उलझन हो रही है कि आज भैया जी ठहाका लगाने से परहेज क्यों कर रहे हैं?)
सुमित प्रताप सिंह- आप इतना इश्माइल करते हैं कि अन्य ब्लॉगर बन्धु आपकी इश्माइल से जलते रहते हैं. इस इश्माइल का आखिर राज़ क्या है?
अजय कुमार झा जी- जी इश्माईल नहीं ..ईईईश्श्श्श्शमाईईईईल कहिए । जी हां , बिल्कुल करता हूं क्योंकि अब तक जो भी जिंदगी बीती या बिताई है एक ही बात सीखी ईश्माईल करते रहिए जिंदगी भी पलट के ईश्माईईईईल करेगी । और आपसे ये किसने कह दिया कि ब्लॉगर बंधु , ईश्माईल से जलते हैं अजी हम हुलस कर ईश्माईल कर दें तो गूगल कनेक्ट हो जाते हैं सबसे । हम उनसे जीते हैं और उन्हें हमारी आदत हो चली है । इसका राज़ वही है ज़िंदगी से जो भी लिया उसे उतना वापस करते जाइए ,देखिए क्या संतुलन बनता है फ़िर आप भी कह उठेंगे ........भईया जी ईईईईईश्श्श्श्माईईईईईल
(इतना कहकर वह किसी के फोन आने का कहकर एक कमरे में घुस गए और कुछ समय बाद फिर से मेरे सामने उपस्थित हो गए)
सुमित प्रताप सिंह- आपकी पहली रचना कब और कैसे रची गई?
अजय कुमार झा जी- पहली रचना ....हा हा हा ..शायद सातवीं कक्षा में था । स्टेज पर प्रार्थना के बाद बच्चों द्वारा समाचार वाचन, और कुछ पढ़ने कहने की परंपरा थी । कविता का नाम था " "बिल्लू का सपना "। हाफ़ पैंट स्टेज पर माईक संभालने के बाद कांपथी थर थर टांगों से बिल्लू का सपना पढी गई । बस इसके बाद जाने कितने पन्नों पर क्या क्या टांकता जा रहा हूं तब से अब तक ।
(उन्होंने फिर से फोन आने की बात कही और उसी कमरे में घुस गए तथा कुछ देर बाद पधारे)
सुमित प्रताप सिंह- लिखना ज़रूरी क्यों है? वैसे आप लिखते क्यों हैं?
अजय कुमार झा जी- सिर्फ़ ,लिखते क्यों ,मैं तो पढना भी कहता हूं कि क्यों जरूरी है । अरे महाराज एक बात बताइए जो हमें इस दुनिया के बारे में जो नहीं पता वो इसलिए नहीं पता काहे कि पहिलका लोग जादे लिखा पढी नय किए । अगर आज का लोग सब लिखेगा पढेगा नहीं तो आने वाली नस्लों को पता क्या और कैसे चलेगा । सिर्फ़ लिखना हे एनहीं ये सोच और समझ के लिखना कि कि आने वाले समय में ये भविष्य का द्स्तावेज़ बनेगा । मैं क्यों लिखता हूं .....समझिए कि इसी का जवाब तलाशने के लिए लिखे चला जा रहा हूं ..कि आखिर मैं लिखता क्यों हूं ।
(फिर से फोन आने का हवाला देकर उसी कमरे में घुस गए लेकिन मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि ससुरी फुनवा की आवाज़ हमको काहे नहीं सुनाई देती कुछ देर बाद वह सामने हाज़िर हो गए)
सुमित प्रताप सिंह- लेखन में आपकी प्रिय विधा कौन सी है?
अजय कुमार झा जी- विधा ...प्रिय विधा । हर कोई मुझसे अक्सर ये पूछ बैठता है , तो सुनिए कि मुझे विधाओं का ज्ञान और समझ नहीं है । दो दिलचस्प वाकये बताता हूं , शायद भाई राजीव तनेजा जी ने एक दिन हास्य और व्यंग्य का मूल अंतर और उद्देश्य मुझे बता था मेरी जिज्ञासा के बाद । और मोहल्ला वाले अविनाश भाई ने आलेख और विमर्श में फ़र्क बताया था । मैं बस लिखता हूं , पढता हूं , विधा का पता नहीं विद्या सेवा में जो आनंद मिलता है वो और कहां ?
(वह पहले की भाँति उठे और फोन के आने की कहकर फिर उसी कमरे में घुस गए और कुछ देर में फिर मेरे सामने मौजूद थे)
सुमित प्रताप सिंह- अपनी रचनाओं से समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं?
अजय कुमार झा जी- अजी छोडिए हमारे लिखे पे संदेश पहुंचने लगा तो देर सवेर जनता जनार्दन होके सोटा उठा लेगी , अभी लोकतंत्र में सोटे उठाने का उपयुक्त समय आने में बस ज़रा सी कसर रह गई है । मेरे लिखे में सिर्फ़ एक ही बात होती है .......आम आदमी .......एक आम आदमी । बस इसी एक आदमी को दूसरे आदमी से मिलवाता हूं ।
(अजय भैया फिर से उसी कमरे में घुसे तो मन में शंका के कीटाणु उत्पन्न होने लगे...कुछ देर बाद वह आ ही गए)
सुमित प्रताप सिंह- एक अंतिम प्रश्न. "ब्लॉग पर हिंदी लेखन द्वारा क्या हिंदी कभी इश्माइल करेगी?" इस विषय पर आप अपने कुछ विचार रखेंगे?
अजय कुमार झा जी- क्या हिंदी कभी इश्माईल करेगी ...अजी हिंदी तो कुछ यूं है:-
हिंदी तुझसे मुहब्बत हो गई जबसे , हर शाम हसीन और कातिल सी है,
जिंदगी के हर पन्ने पर , उकेरती कई रंग , तू हर पन्ने में शामिल सी है
आ चल हिंदी...आगे बढ चलें। और कमाल तो ये है कि आज जब आपने ये प्रश्न मेरे सामने रख कर पूछा है तो संयोग देखिए कि विश्व की चुनिंदा पुस्तकों की प्ररदर्शनी के बीच हिंदी ब्लॉगरों की पुस्तकों व कृतियों का विमोचन होगा और वे भी हिंदी के ,प्रिंट हिंदी के उस संसार में उतर जाएंगे जिसे को साहित्य कहता है तो कोई इतिहास करार देता है । हिंदी , ब्लॉगिंग और हिंदी ब्लॉगिंग तीनों ही इश्माईल करेंगी वो भी हाईपोडेंट की चमकीली रोशनी वाली ईश्माईल । बस इतना समझ लीजीए कि आज बेशक वर्दी और सत्ता की सेवा की उठाई ने आम आदमी को दबा रखा है , जिस दिन वो फ़ैल गया ..उसकी इश्माईल सल्तनतें हिला देंगी । और हिंदी है तभी हिंदुस्तान है । होली का समय नज़दीक है इसलिए सभी को होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं और मुबारकबाद ।
(अबकी बार वह जैसे ही उस कमरे में गए तो मैं भी चुपचाप उनके पीछे कमरे की ओर चल पड़ा। दरवाजे के सुराख़ से झांककर देखा तो अजय भैया ब्लॉग बुलेटिन परिवार के साथ जोर-जोर से ठहाके लगा रहे थे। मैं भी दरवाजा खोलकर भीतर घुस रहा हूँ । आज कहीं और जाना कैंसिल आज सभी ब्लॉगर बंधुओं के साथ जी भरके अपन भी ठहाका लगाएँगे । चलिए इसी बात पर आप भी दीजिए एक बढ़िया सी इश्श्माइल)
सदस्यता लें
संदेश (Atom)