सोमवार, 16 सितंबर 2024

आया मौसम रोने-धोने का


    ड़ोसी राज्य में रोने-धोने का मौसम फिर से आ चुका है। जगह-जगह रोने-धोने के विधिवत कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। पड़ोसी राज्य में चुनावी घोषणा होने के बाद से ही रोने-धोने के कार्यक्रमों की आशंका सभी को थी। विधायक जी जो सत्ता का मजा सालों से लूट रहे थे, उन्हे इस बार उनकी पार्टी ने टिकट से बेदखल कर दिया। ये बेदखली उनसे बर्दाश्त नहीं हुई और उनकी आंखों से आंसुओं का सैलाब फूट पड़ा, जिसमें उनके भविष्य में अय्याशी करने के सारे सपने डूब कर बेमौत मर गए। उनके जैसे कई विधायक पूर्व विधायक होने की बात को सोच-सोच कर सुबक रहे हैं। कभी वे पार्टी हाईकमान के पैर पकड़ कर रो रहे हैं, कभी अपनी पत्नी के पल्लू में दुबक कर रो रहे हैं तो कभी प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए सार्वजनिक रूप से रो रहे हैं। विधायक जी के साथ-साथ सालों से विधायक बनने का सपना पाले हुए पुराने और वरिष्ठ कार्यकर्ता भी रो रहे हैं। पार्टी की नीव को अपने खून-पसीने से सींचने के बावजूद उन्हें अपनी पार्टी से आश्वासन के सिवा कुछ भी हासिल नहीं हुआ। हर बार चुनावी बेला पर वरिष्ठ कार्यकर्त्ता अपने इलाके को स्वयं को भावी विधायक घोषित करने वाले बड़े-बड़े और भारी-भरकम बैनरों व पोस्टरों से पाट देते हैं, लेकिन इन ठठकर्मों से हाईकमान नहीं पट पाता और वे बेचारे मन मसोस कर रह जाते हैं। कभी मंत्रियों के बेटा-बहू, बेटी-दामाद और नाते-रिश्तेदार उनकी योजना को पलीता लगाते हैं तो कभी बैलून कैंडिडेट आकर उनके प्लान को चौपट कर डालते हैं। वे भरकस प्रयत्न करते हैं कि पार्टी हाईकमान और पार्टी के वरिष्ठों के समक्ष स्वयं को पार्टी रत्न साबित कर सकें, पर ऐसा कुछ नहीं हो पाता और अंततः वे दहाड़े मार-मार कर रोने लगते हैं। जनता इस पूरे घटनाक्रम को देख कर मुस्कुराती है और जी भर कर खिलाती है। हालांकि उसकी ये खुशी ज्यादा दिन तक नहीं टिक पाती और चुनाव समाप्त होते ही पूर्व विधायकों और वरिष्ठ कार्यकर्ताओं से रोने-धोने की जिम्मेदारी लेकर अगले पांच सालों के लिए वो रोने-धोने के लिए विवश हो जाती है।

लेखक - सुमित प्रताप सिंह

सोमवार, 19 अगस्त 2024

नॉस्टैल्जिया का गुलदस्ता है सिक्स ऑफ कप्स


    युवा कवयित्री सुश्री नेहा बंसल के हाल ही में प्रकाशित दूसरे अंग्रेजी कविता संग्रह 'सिक्स ऑफ कप्स' को पढ़ने का अवसर मिला। इससे पहले कवयित्री साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित अंग्रेजी कविताओं के संग्रह 'हर स्टोरी' के माध्यम से पाठकों के लिए उन नारियों की कहानियाँ लेकर आयीं थीं, जिनके बारे में समाज ने लिखना उचित नहीं समझा और यदि लिखा भी है तो उसे नगण्य की श्रेणी में ही रखा जाएगा। दूसरे कविता संग्रह में उन्होंने अपनी भूली-बिसरी यादों को स्थान दिया है। इस पुस्तक को कवयित्री ने अपने बाबा और अपने आईपीएस अधिकारी पति श्री दीपक यादव को समर्पित किया है। पुस्तक की भूमिका में कवयित्री ने इस कविता संग्रह को पाठकों के बीच लाने के उद्देश्य को बताने के लिए पत्रकार डौग लार्सन के कथन का उल्लेख किया है कि नॉस्टैल्जिया एक फाइल है जो अच्छे पुराने दिनों की खुरदरी धारों को हटा देती है। कवयित्री पुस्तक का शीर्षक सिक्स ऑफ कप्स रखने के प्रति पाठकों की जिज्ञासा का समाधान करते हुए बतातीं है, कि इसका शीर्षक एक छोटे आर्काना टैरो कार्ड के नाम पर रखा गया है।  भूमिका के उपरांत दो पृष्ठों में कवयित्री ने इस कविता संग्रह के प्रकाशित होने तक सहयोगी रहे मित्रो, बंधुओं व सहकर्मियों का आभार प्रकट किया है।

    इस कविता संग्रह में कुल 49 कविताएं एवं 3 हाइकु संकलित हैं। कवयित्री ने जहां इस पुस्तक की पहली कविता अपने दादा जी पर लिखी है, वहीं उनकी दूसरी कविता पुरानी दिल्ली में स्थित नानी जी के घर पर केंद्रित है, जो कि उनके अपने बड़े-बुजुर्गों के प्रेम व आदर तथा अपनी जड़ों से जुड़ाव को दर्शाती है। कवयित्री का अपने दादा जी से लगाव का ही परिणाम है कि उनकी उपस्थिति इस कविता संग्रह की कई कविताओं में दर्ज हुई है।  कवयित्री ने  विभिन्न त्योहारों, दूरदर्शन, जीवन में पहली बार खाए डोसे, गुड़िया, पिकनिक, भौतिकी विषय, प्रेम गीत, कलकत्ता में साड़ी खरीदने, बचपन की रामलीला, चंडीगढ़ के रॉक गार्डन, मूंग दाल के हलवे, घर के माली शिवचरण, सांची स्तूप, जन्मदिन की पार्टी, अंधविश्वास, पुदीना की चटनी, कागज की नाव इत्यादि विभिन्न विषयों पर बहुत सुंदर तरीके से अपनी कलम चलाई है। इस कविता संग्रह की कविताओं में कवयित्री द्वारा बीते हुए दिनों को फिर से जीवंत करने का प्रयास किया गया है। संवेदना, भावुकता एवं मार्मिकता से परिपूर्ण कविताएं हृदय को गहराई से छू लेती हैं। इस कविता संग्रह की माय ग्रैंड पा, नानी हाउस इन देल्ही-6, सिक्स ऑफ कप्स और महाशिवरात्रि इत्यादि कविताएं तो बहुत ही प्रभावशाली बन पड़ी हैं। इस कविता संग्रह की अंतिम कविता वीकेंड इन कार निकोबार को पढ़कर समाप्त करने के पश्चात ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे पाठक को कवयित्री के बचपन से युवावस्था के सफर में साथ यात्रा करते हुए शरारत से भरे, मनोरंजक, भावपूर्ण, उत्साह से भरपूर और संघर्षमय जीवन से साक्षात्कार करने का अवसर प्राप्त हुआ हो। दूसरे शब्दों में कहें तो सिक्स ऑफ कप्स नॉस्टैल्जिया का गुलदस्ता है।

    प्रशासनिक सेवा में रहते हुए भी कवयित्री का संवेदना, भावुकता और समाज के प्रति कर्तव्य की भावना दर्शाता लेखन साहित्य जगत के लिए सुखद अनुभूति का आभास करवाता है। आशा है कि अंग्रेजी काव्य जगत कवयित्री की पिछली पुस्तक हर स्टोरी की भांति उनकी दूसरी पुस्तक सिक्स ऑफ कप्स को भी प्रसन्नता व उत्साह के साथ स्वीकार करेगा। मेरी ओर से सिक्स ऑफ कप्स की लेखिका सुश्री नेहा बंसल को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं!

पुस्तक - सिक्स ऑफ कप्स

लेखिका - नेहा बंसल, नई दिल्ली

प्रकाशक - हवाकाल प्रकाशन, दिल्ली

पृष्ठ - 107

मूल्य - 400 रुपये

समीक्षक - सुमित प्रताप सिंह, नई दिल्ली

शनिवार, 27 जुलाई 2024

सिक्स ऑफ कप्स का हुआ लोकार्पण


     नई दिल्ली। आईएएस अधिकारी एवं युवा कवयित्री सुश्री नेहा बंसल की अंग्रेजी कविताओं की दूसरी पुस्तक 'सिक्स ऑफ कप्स' का लोकार्पण नई दिल्ली के लोधी एस्टेट क्षेत्र में स्थित इंडिया हैबिटेट सेंटर के टैमरिंड सभागार में आज दिनांक 27 जुलाई, 2024 को किया गया। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि प्रख्यात शिक्षाविद, कवयित्री एवं आलोचक प्रो. मालाश्री लाल थीं। कार्यक्रम के मंच पर सुपरिचित कवि, अनुवादक एवं आलोचक श्री राजोर्षी पत्रनबीस एवं कवि, अनुवादक, संपादक एवं प्रकाशक श्री कीर्ति सेनगुप्ता की गरिमामयी उपस्थिति रही। कार्यक्रम का सफल संचालन श्री गौरव श्रीवास्तव ने किया। पुस्तक लोकार्पण के उपरांत मुख्य अतिथि एवं मंचासीन विद्वजनों ने पुस्तक पर अपने-अपने विचार प्रकट किए। एक सत्र पुस्तक की लेखिका से संवाद का भी रखा गया, जिसमें पुस्तक की लेखिका ने इस पुस्तक को लिखने की प्रक्रिया के विषय में सभागार में उपस्थित जनों को विस्तार से बताया। उन्होंने भावुक मन के साथ अपने बाबा को याद किया और कहा कि उनकी लेखन यात्रा में उनके पति आईपीएस अधिकारी श्री दीपक यादव का सदैव सहयोग प्राप्त हुआ है।

     कार्यक्रम के अंत मे सुश्री नेहा बंसल ने धन्यवाद ज्ञापन देते हुए वहां उपस्थित सभी साहित्यप्रेमियों शुभचिंतकों एवं प्रियजनों का आभार प्रकट किया। कार्यक्रम के अंत में वहां उपस्थित सुधीजनों के लिए जलपान की व्यवस्था की गयी। ध्यातव्य है कि लेखिका की पहली पुस्तक 'हर स्टोरी' को साहित्य अकादमी ने प्रकाशित किया था तथा उनकी दूसरी पुस्तक 'सिक्स ऑफ कप्स' को हवाकाल प्रकाशन ने प्रकाशित किया है।

रिपोर्ट - सुमित प्रताप सिंह 

शनिवार, 6 जुलाई 2024

बाबूलाल मिठारवाल की दिल्ली पुलिस से अंतिम विदाई

    सूचना मिली कि दिल्ली पुलिस कर्मियों की बेहतरी के लिए संघर्ष करने वाले साथी बाबूलाल मिठारवाल ने दिल्ली पुलिस से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली है और 30 जून, 2024 को उन्हें विदा करने के लिए दिल्ली पुलिसकर्मी पुराने पीएचक्यू में इकट्ठे होने वाले हैं। मैने भी इस आशा से पुराने पीएचक्यू में जाने की योजना बनाई कि बाबूलाल की विदाई में होने वाली पुलिस कर्मियों की ऐतिहासिक भीड़ को देखने का सुनहरा अवसर प्राप्त होगा। सुबह लगभग 11 बजे पीएचक्यू पहुंचा तो देखा वहां कुछ गिने-चुने लोग ही उपस्थित थे। सबने घंटा भर इस आस के साथ प्रतीक्षा कि बाकी आने वाले साथी भी आ जाएं तभी बाबूलाल की विदाई की प्रक्रिया आरंभ की जाए। अंत में थोड़े-बहुत जितने भी साथी वहां एकत्र हुए थे उन्होंने ने ही मिलकर इस विदाई का कार्यभार संभाला। पुष्पगुच्छ व उपहार भेंट के पश्चात् पुष्पवर्षा के साथ बाबूलाल की विदाई को अंजाम दिया गया। इस अवसर पर मैने भी उपहार स्वरूप अपनी पुस्तक जैसे थे बाबूलाल को भेंट की। सुना है कि बाबूलाल अब राजनीति में कदम रखने की योजना बना रहे हैं। अब ये तो भविष्य ही बताएगा कि बाबूलाल राजनीति की कीचड़ को साफ करेंगे या स्वयं ही कीचड़ में सन जायेंगे। अंततः हमारी ओर से मित्र बाबूलाल मिठारवाल को उज्जवल भविष्य हेतु हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।





गुरुवार, 13 जून 2024

वरिष्ठ कार्यकर्ता की सौगंध


     ब तक इलेक्शन थे तब तक भागजा पार्टी के वरिष्ठ कार्यकर्ता जिले सिंह को सांस लेने की फुर्सत नहीं थी। अपनी पार्टी के हर टुच्चे से टुच्चे काम की जिम्मेवारी उनके ही जिम्मे थी। उनका सिद्धांत है घर का जरूरी से जरूरी काम चाहे हो न हो पर पार्टी का कोई काम नहीं छूटना चाहिए। सालों-साल से वे इसी सिद्धांत का कड़ाई से पालन करते आ रहे थे। पार्टी का हर छोटा बड़ा नेता उनकी पार्टी भक्ति से बहुत प्रभावित था और इसी कारण उनका बहुत सम्मान करता था। उनके मन-मस्तिष्क पर पार्टी भक्ति इतनी अधिक हावी थी कि एक बार उनके बचपन के लंगोटिया यार व सफा पार्टी के जिला संयोजक नफे सिंह ने उनसे उनकी पार्टी की बुराई करते हुए कह दिया कि कब तक अपनी पार्टी के लिए दरी बिछाते रहोगे कभी पार्टी किसी छोटे-मोटे चुनाव में अपने लिए टिकट का जुगाड़ भी कर लो। बस इतनी सी बात पर जिले सिंह का खून खौल उठा। हालांकि उन्होने अपने लंगोटिया यार का खून तो नहीं किया पर उससे हमेशा के लिए कट्टी कर की। 

     एक रात जिले सिंह राजनैतिक रैली में पूरे दिन मेहनत करने के बाद अधिक थकान होने के कारण बिस्तर पर लेटे हुए कराह रहे थे कि तभी उनकी धर्मपत्नी ने उनसे शिकायती लहजे में कहा, "लगता है आपकी ज़िंदगी अपनी पार्टी के लिए मुफ्त में ही शरीर तोड़ने में कटेगी।" जिले सिंह गुर्रा कर उससे बोले, "क्या फालतू बकवास कर रही है?" "फालतू बकवास नहीं कर रही बल्कि सही बोल रही हूँ। अब तो आस-पड़ोस के लोग भी ताने मारने लगे हैं।" पत्नी उदास होते हुए बोली। जिले सिंह ने मामले की गंभीरता को समझा और गुर्राना छोड़ अपनी पत्नी को पुचकारते हुए उससे पूछा, "क्या ताना मारा? हमें भी तो बता।" "लोग कहते हैं नालायक से नालायक कार्यकर्ताओं ने भी पार्टी से टिकट लेकर अपनी किस्मत बना ली पर आप के हिस्से में तो बस पार्टी के काम का बोझ आया।" पत्नी तुनक कर बोली। पत्नी की बात सुनकर जिले सिंह का खून खौल उठा पर उन्होंने समझदार पतियों द्वारा बनायी कहावत 'पत्नी से बहस, जीवन तहस-नहस' को याद किया और फिर उन्होंने नाजुक स्थिति को ठंडा पानी पीकर भली-भाँति संभाला। पत्नी तो अपनी बात कहकर शांति के साथ सो गयी लेकिन शांति की सखी अशांति जिले सिंह के मस्तिष्क में घर कर गयी और उन्हें उस रात नींद नहीं आयी। पूरी रात उनके मन-मस्तिष्क में पत्नी द्वारा कही गयी बातें ही गूँजती रहीं।  

     अगले दिन जिले सिंह ने बिना ये सोचे-समझे कि उनके जैसे कार्यकर्ताओं का काम केवल पार्टी की सेवा करना है और टिकट पाने का अधिकार सिर्फ पार्टी के नेताओं के पुत्र-पुत्री और सगे-सबंधियों तथा सिनेमा व खेल जगत के चर्चित सितारों को ही है, जाकर अपनी पार्टी के कार्यालय में जाकर घोषणा कर दी कि अब वे पार्टी के कार्यक्रमों में दरी बिछाने के कार्य तक ही सीमित नहीं रहेंगे। अब उन्हें भी अब तक पार्टी के लिए किए गए कार्यों का ईनाम चाहिए। इस संबंध में उन्होंने पार्टी के जिलाध्यक्ष से संपर्क साधा और निगम पार्षद के होने वाले चुनाव के लिए टिकट की मांग कर डाली। जिलाध्यक्ष ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा कि अभी उनसे वरिष्ठ कार्यकर्त्ता कतार में हैं। उनका नंबर आएगा तो उन्हें उनके परिश्रम का फल अवश्य दिया जायेगा। जिले सिंह ने सोचा कि निगम पार्षद का टिकट तो बाद में मिलता रहेगा क्यों न अपने लड़के के लिए कोई छोटी-मोटी ठेकेदारी का ही जुगाड़ कर लिया जाये। इस इच्छा के साथ उन्होंने स्थानीय विधायक से भेंट की पर विधायक अपने सगे-संबंधियों और चमचों के बीच सरकारी ठेकों की बन्दर बाँट पहले ही कर चुका था। अब जिले सिंह ने अपने जिले के सांसद से गुहार लगाई और अपने बेटे के लिए किसी छोटी-मोटी सरकारी नौकरी के लिए उनका चरण वंदन करते हुए निवेदन कर डाला। पर सांसद के यहाँ से भी उनके हिस्से में निराशा ही हाथ आयी। सभी ओर से निराश होने के पश्चात् जिले सिंह ने अपनी पार्टी के विरुद्ध विद्रोह की पताका लहरा दी। जिले सिंह का यह विद्रोह पार्टी के पदाधिकारियों को रास न आया और उन्हें तत्काल विधिवत लात मार कर पार्टी से निष्काषित कर दिया गया। इस घटना के बाद जिले सिंह के ज्ञान चक्षु ऐसे खुले कि उन्होंने राजनीति से एक कोस की दूरी बना ली। इसके बाद सबसे पहले उन्होंने अपने लंगोटिया यार नफे सिंह के घर जाकर उससे हाथ जोड़कर अपनी गलती के लिए माफ़ी मांगी और उसके बाद अपने घर पहुंच कर अपनी पत्नी के सिर पर हाथ रखकर सौगंध खायी कि भविष्य में उनके लिए उनके परिवार और परिवार के सदस्यों से महत्वपूर्ण कोई और नहीं होगा।

लेखक : सुमित प्रताप सिंह

कार्टूनिस्ट: श्याम जगोता 

गुरुवार, 6 जून 2024

नटबंधन का दौर


    लोकतंत्र के महाभारत की समाप्ति हो चुकी है। अब समय है गठजोड़ कर सरकार बनाने का। किसी भी राजनैतिक दल को जनता ने इतनी शक्ति प्रदान नहीं की कि वो केवल अपने दम पर सरकार बना सके। अब सरकार बनाने का पथ उस रस्सी का रूप धर चुका है जिस पर मुख्य राजनीतिक दल को नट बनकर करतब दिखाते हुए लोकतंत्र की चाबी हासिल करने जाना है। दूसरे राजनीतिक दल भी नट बनकर उस रस्सी पर करतब दिखाना चाहते हैं। किंतु ये तभी संभव है जब रस्सी पर पहले से करतब दिखा रहा नट अपना संतुलन खोकर नीचे आ गिरे। इसके लिए रस्सी के दोनों ओर खड़े छोटे नटों को प्रलोभन दिया जाता है कि वह बड़े नट को दिए गए अपने वचन से नट जाएं तो उन्हें सुनहरा अवसर प्रदान किया जाएगा। छोटे नट विचारमग्न हो अपने नफे-नुकसान का गुणा-भाग करने में व्यस्त हो जाते हैं कि कहीं सबसे बड़े नट का साथ छोड़कर कम बड़े नट के साथ मिल गए और वहां उतना सम्मान नहीं मिला तो उनके नटने के परिणामस्वरूप उनके राजनीतिक भविष्य की तो खाट ही खड़ी हो जाएगी। छोटे नटों के उत्तर की प्रतीक्षा में कम बड़े नट रस्सी पर चल रहे सबसे बड़े नट के साथ-साथ नीचे ही इस आस के साथ करतब दिखाना आरंभ कर देते हैं कि कब उनके भाग्य का छींका टूटे और सबसे बड़ा नट अपने-आप ही रस्सी से फिसल कर नीचे धरती पर ऐसा गिरे कि भविष्य में उठकर अपने पैरों पर चल ही न पाए। फिर तो रस्सी भी उनकी होगी और छोटे नटों का साथ भी रहेगा। जनता दर्शक बनी उन नटों के करतबों को देखकर सोचने लगती कि देश में अब गठबंधन की अपेक्षा नटबंधन का दौर आ चुका है।

रचना तिथि - 6 जून, 2024

लेखक: सुमित प्रताप सिंह

कार्टून - श्याम जगोता

 

रविवार, 26 मई 2024

अभिभावक-शिक्षक भेंटवार्ता


     जिस प्रकार की इन दिनो गंभीर अभिभावक-शिक्षक भेंटवार्ता होती है, ऐसी भेंटवार्ता हमारे भाग्य में कभी थी ही नहीं। सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले हम भोले-भाले विद्यार्थी विद्या का अर्थ ग्रहण करने की अपेक्षा विद्या की अर्थी निकालने का अधिक चाव रखते थे। हमारे माता-पिता को अपने-अपने काम से ही फुर्सत नहीं मिला करती थी, जो हम और हमारी पढ़ाई पर ध्यान दे पाते। पिताजी अपनी नौकरी के भंवर में ऐसे फंसे हुए थे कि उससे निकलना बहुत कठिन था और माँ को घर के काम से ही पल भर का चैन नहीं मिलता था रही सही कसर हमारे शिक्षक महोदय पूरी कर दिया करते थे। उनको अपने छात्रों को पढ़ाने से अधिक प्राइवेट ट्यूशन से दो पैसे की ऊपरी कमाई करने में अधिक आनंद आता था। जब कभी उन्हें कक्षा में पढ़ाने को विवश होना पड़ता था तो वह ब्लैक बोर्ड पर कुछ लिखने के बजाय अपने डंडे से छात्रों के शरीर पर लिखाई अधिक किया करते थे। न तो शिक्षकों ने हमारे अभिभावकों को किसी भेंटवार्ता के लिए बुलाया न ही किसी छात्र ने अपने अभिभावकों को शिक्षक से मिलने का सुझाव देने का साहस किया। सभी छात्र चुपचाप शिक्षकों के मजबूत डंडों की भेंटवार्ता अपने-अपने शरीर से इस आस के साथ करवाते रहते थे, कि चाहे बुद्धि का विकास हो न हो लेकिन डंडे खा-खाकर उन सबके शरीर में सहनशक्ति और मजबूती का विकास तो होकर ही रहेगा।

     आज के समय की बात ही कुछ और है। अब अभिभावक स्कूल की फीस भी भरते हैं और अपने बच्चे की हर छोटी-मोटी गलतियों के लिए शिक्षक की फटकार भी सहते हैं। असल में देखा जाए तो स्कूल में भारी भरकम फीस भरने के बावजूद पढ़ाने की नैतिक जिम्मेवारी अभिभावकों के जिम्मे ही है। वे बेचारे नौकरी और घर की जिम्मेदारी निभाने के साथ-साथ अपने नौनिहालों को पढ़ाने के नाम पर स्वयं बचपन को न चाहते हुए भी जीते हुए फिर से अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए विवश हैं। शिक्षकों की भी विवशता है वे बेचारे पूरी कक्षा के विद्यार्थियों पर भला एक साथ कैसे ध्यान दे सकते हैं। इसलिए अभिभावकों को शिक्षकों द्वारा ये जिम्मेवारी सौंप दी जाती है, कि या तो अपने बच्चों को ढंग से पढ़ाओ या फिर उनका बेकार रिजल्ट भुगतने को तैयार रहो। ऐसे सभी कड़े निर्देश देने के लिए प्रत्येक स्कूल में समय-समय पर अभिभावक-शिक्षक डांटवार्ता का आयोजन किया जाता है   

     अभिभावक-शिक्षक डांटवार्ता के दौरान शिक्षक अपने मुख पर गांभीर्य और दुख का ऐसा आवरण चढ़ा लेते हैं, कि एक बार को तो ऐसा प्रतीत होता है कि भेंटवार्ता से पूर्व वे किसी न किसी भले मानस की चिता को मुखाग्नि देकर आए हों। अपने बच्चे के भविष्य के प्रति चिंतित भयभीत अभिभावक शिक्षक द्वारा बच्चे के विषय में दिए गए आदेशात्मक कड़े निर्देश सिर झुका कर विवशतावश सुनते रहते हैं। बच्चे को पढ़ाई की मशीन बनाने की प्रक्रिया पर इतनी विस्तृत व गंभीर वार्ता होती है कि इस वार्ता के आगे भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाली कश्मीर वार्ता भी अपनी लघुता पर खिन्नता प्रकट करने लगे। भेंटवार्ता में अभिभावकों को बच्चे की शिकायत करते हुए अप्रत्यक्ष रूप से डांट की इतनी अधिक मात्रा प्रदान की जाती है, कि एक बार को तो इच्छा होती है कि अभिभावक-शिक्षक भेंटवार्ता के स्थान पर इसका नाम बदल कर अभिभावक-शिक्षक डांटवार्ता रख दिया जाए।

लेखक : सुमित प्रताप सिंह

शनिवार, 18 मई 2024

लोकतंत्र के नज़रबट्टू


     स बार चुनावी महाभारत में फिर से राजनीतिक दलों द्वारा फिल्म एवं खेल जगत के सितारों को टिकट देकर चुनावी दंगल में जनता के बीच लाया गया है। आशा है कि सदा की भांति जनता फिल्मी पर्दे पर दिखाए गए अभिनेताओं व अभिनेत्रियों के जलवों एवं खेल के मैदान में खेल जगत के सितारों द्वारा किए गए अभूतपूर्व प्रदर्शन पर मोहित हो उन्हें अपना जनप्रतिनिधि चुन ही लेगी। चुने जाने के बाद वे कथित जनप्रतिनिधि अपने चुनावी क्षेत्र से ऐसे लापता हो जायेंगे जैसे गधे के सिर से सींग। वे जनता के दुःख दर्द सुनने, उसकी परेशानियों का समाधान करने व अपने चुनावी क्षेत्र के हाल चाल की खबर रखने के अलावा हर वो काम करेंगे जो उनकी सुख सुविधा और यश को बढ़ाने का कार्य करें। जनता के बीच अंधभक्ति और चमचत्व में सर्वोच्च डिग्री धारक उन जनप्रतिनिधियों के नाकारापन पर आंख बंद किए रहेंगे। यदि कोई भूल से भी उनकी आँखें खोलने का प्रयास भी करेगा तो उस बेचारे पर देशद्रोही अथवा सांप्रदायिक होने की मोहर लगा दी जाएगी।

     उन कथित जनप्रतिनिधियों को अपने क्षेत्र की सुध तब आएगी जब अगले चुनावी रण का बिगुल फिर से बजेगा। इसके बाद कभी वे खेतों में दराती लेकर फसल काटने का ड्रामा करेंगे तो कभी किसी गरीब के जाकर उसके सीने से चिपट कर उसका सच्चा हितैषी बनने का स्वांग करेंगे। जो नौटंकी के मास्टर माइंड होंगे वे किसी गरीब के घर जाकर उसके खून-पसीने से जोड़े गए अन्न को हजम कर उस गरीब व उसके परिवार को अगले कुछ दिनों भूख से दो-दो हाथ करने के लिए छोड़ कर किसी और गरीब के घर भोजन कर गरीबों का हितैषी बनने के अभियान पर निकल पड़ेंगे।

     उनके चुनावी फंड के भाग्य में जनता की भलाई में खर्च होने के बजाय यूं निठल्लेपन पड़े रहते हुए आंसू बहाना ही लिखा होगा। चुनावी फंड को जनप्रतिनिधि द्वारा जनता के कल्याण हेतु खर्च करने के स्वप्न को जनता द्वारा दिन में जागते हुए देखा जाएगा। किन्तु उसका ये स्वप्न कभी भी पूरा नहीं हो पायेगा। कथित जनप्रतिनिधि के कार्यकाल के पूरा होने पर वापिस जमा होना ही उसकी नियति होगी।

    राजनीतिक दलों के कर्मठ कार्यकर्त्ता दलों के कार्यक्रमों में दरी बिछाने या नेताओं की जय- जयकार करने को ही अपना सौभाग्य समझेंगे क्योंकि उनके ज्ञान चक्षु खुलने के बाद उन्हें इस दिव्य ज्ञान की प्राप्ति चुकी है कि चुनावी टिकट के लिए जनता के बीच जाकर उसकी सेवा करने के बजाय चर्चित चेहरा होना अधिक आवश्यक होता है। इसलिए वे कर्मठ कार्यकर्त्ता अंधभक्ति और चमचत्व की मिश्री नींबू पानी में अच्छी तरह घोलने के बाद एक घूँट में उसे पी जायेंगे। इसके बाद अपने-अपने राजनीतिक दल का झंडा उठा कर कथित जनप्रतिनिधियों के अनुगामी बनकर उनकी जयकार से आकाश को गुंजायमान कर देंगे। यह देख कर लोकतंत्र भरपूर स्नेह के साथ लोकतंत्र के नज़रबट्टू कथित जनप्रतिनिधिओं को अपने सीने से लगा लेगा।

लेखक : सुमित प्रताप सिंह

रचना तिथि– 13/05/2024

गुरुवार, 18 अप्रैल 2024

साहित्य का प्रसाद बांटते डॉ.जय शंकर शुक्ल

    पेशे से प्रवक्ता व हृदय से साहित्यकार डॉ जय शंकर शुक्ल राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के शिक्षा निदेशालय में कर्मरत हो साहित्य साधना करते हुए समाज में साहित्य का प्रसाद बांटने में वर्षों से जुटे हुए हैं। अपने मन-मस्तिष्क की भट्टी में समाज के विभिन्न विषय रूपी अन्न को अच्छी तरह भूनकर उसका आटा बना कर व उसमें अपना लेखकीय कौशल रुपी बूरा मिला कर उसकी पंजीरी बना उसे प्रसाद के रूप में देश के हिंदी साहित्य प्रेमियों को बांटने में कई वर्षों से मग्न हैं। शुक्ल जी द्वारा किए साहित्यिक यज्ञ के परिणामस्वरूप इन्हें अनेक साहित्यिक पुत्रों एवं पुत्रियों की प्राप्ति हो चुकी है जो इनके नाम की पताका साहित्य जगत में फहरा रहे हैं। अब तक शुक्ल जी ने लगभग 150 कहानियों की रचना की है, जो अब तक 13 कहानी संग्रहों के रूप में प्रकाशित भी हो चुकी है। साथ ही साथ इनके चार उपन्यास अधूरा सच, पराए लोग, मोरपंखी इंद्रधनुष एवं भावना के स्वर प्रकाशित हो चुके हैं एवं दो उपन्यास प्रकाशन क्रम में है। इसी तरह 14 कविता संग्रह, दो साक्षात्कार संग्रह, समीक्षा और आलोचना की कुल मिलाकर इनकी 40 से अधिक पुस्तकें अब तक प्रकाशित हो चुकी है। हमने कुछ प्रश्नों के माध्यम से इनकी साहित्यिक यात्रा के विषय में जानने का लघु प्रयास किया है।

सुमित प्रताप सिंह - आपको लेखन का रोग कब और कैसे लगा?

डॉ जयशंकर शुक्ल - सुमित जी, जहां तक लेखन की बात है यह मुझमें वंशानुगत है। प्रारंभ से ही अपने साथ घटित घटनाओं को कहीं लिखकर रख लेने की एक प्रवृत्ति रही है। अब यह प्रवृत्ति कितनी सही है अथवा कितनी गलत इसके बारे में तो मैं कुछ नहीं कर सकता। हां इतना जरूर कहूंगा की धीरे-धीरे यह प्रवृत्ति स्थाई होती चली गई। और यह अपने साथ कुछ नए-नए रास्तों को भी बनाती चली गई। यदि आपके प्रश्न के अनुसार लेखन को रोग कहें तो अब यह रोग स्थाई हो चुका है और सुख देने लगा है। 

सुमित प्रताप सिंह - लेखन के प्रारंभिक काल में आपने कौन सी विधा में लेखन किया?

डॉ जयशंकर शुक्ल - मित्र, यदि इसे किसी रचना से केंद्रित करके देखा जाए तो मेरे जीवन की सबसे पहली रचना एक उपन्यास के रूप में रही। लेखक के जीवन में उसकी पहली कृति सबसे महत्वपूर्ण होती है इसलिए नहीं कि वह पहली है बल्कि इसलिए कि वहां से उसकी यात्रा प्रारंभ होती है और इस यात्रा के विभिन्न पड़ावों को जब समीक्षा की दृष्टि से देखा जाए तो ऐसे में जो हालात हमारे सामने उद्घाटित होते हैं वह पहली कृति के आधार भूमि को लेकर ही आगे बढ़ते हैं।

सुमित प्रताप सिंह - लेखन से आप पर कौन सा अच्छा अथवा बुरा प्रभाव पड़ा?

डॉ जयशंकर शुक्ल - अच्छा प्रभाव पड़ा अथवा बुरा प्रभाव पड़ा यह कहना मेरे लिए कठिन है। लेकिन इतना जरुर कहना चाहूंगा कि लेखन अब जीवन बन गया है। आपाधापी के आज के संसार में समाज के द्वारा मिलने वाले खट्टे-मीठे अनुभवों को लिख पाना व्यक्तिगत रूप से मेरे लिए मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि है। यदि कुछ और साफ लहजे में कहा जाए तो यह एक सात्विक व्यसन बन चुका है। लेखन ने जीवन को परिष्कृत होने में भी मदद की है अपने पूर्व और बाद के जीवन का अवलोकन करने पर मैं कह सकता हूं कि मेरे लेखन ने मैं जो कुछ भी हूं वह मुझे बनाया है। अब यह समाज की तरफ बात जाती है कि वह मुझे अच्छा मानती है तो लेखन का मुझ पर अच्छा प्रभाव पड़ा। और यदि समाज मुझे बुरा मानती है तो लेखन का मुझ पर बुरा प्रभाव पड़ा। मैं समझता हूं इतनी साफगोई के साथ मैं अपना जवाब दे पा रहा हूं।

सुमित प्रताप सिंह - क्या आपको लगता है कि लेखन समाज में कुछ बदलाव ला सकता है?

डॉ जयशंकर शुक्ल - समाज हम सबको साथ लेकर बनता है समाज का परिवर्तन बहुत ही धीमी गति से होता है वास्तव में समाज परिवर्तनशील है और यह परिवर्तन कई कर्म द्वारा संभव हो पता है लेखन इन सब में एक कारण हो सकता है जब हम किसी भी साहित्यिक रचना को आकार प्रदान करते हैं तो उसमें समाज की भूमिका कई रूपों में निश्चित तौर पर होती है और प्रेरणा से लेकर सबक तक यह रचनाएं समाज को निरंतर प्रदान करती रहती है समाज इससे सबक लेकर के स्वयं में सुधार करें तो समाज सुधार जाता है वहीं यदि समाज इसके नकारात्मक पक्षों को अपनाता है तो हम यह कैसे कह पाएंगे कि यह रचनाएं समाज सुधार कर रही है।

सुमित प्रताप सिंह - आपकी अपनी सबसे प्रिय रचना कौन सी है और क्यों?

डॉ जयशंकर शुक्ल - सुमित जी, एक रचनाकार से उसके जीवन में सबसे कठिन प्रश्न यदि कोई है तो वह यही है जो आप पूछ रहे हैं। रचनाकार की सभी रचनाएं उसे प्रिय होती है। उसमें कम प्रिय अथवा अधिक प्रिय का कोई मानक ही नहीं है। रचनाकार जब किसी रचना को आकार देता है तो एक तरह से वह सृजन करता है। और यह सृजन उसके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य होता है, जो उसे संतुष्टि प्रदान करता है। संतुष्ट प्रदान करने वाला कोई भी कार्य किसी भी व्यक्ति के लिए छोटा अथवा बड़ा नहीं हो सकता ऐसा मेरा प्रबल मत है। मैंने अपने अब तक के साहित्यिक जीवन में हिंदी साहित्य के विविध रूपकारों में अपनी रचनाओं को आकार दिया है। सबसे प्रिय रचना अगर कहे तो अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद जी के जीवन पर लिखित 12 सर्गों का महाकाव्य क्रांतिवीर आजाद मुझे सबसे अधिक प्रिय है। और मेरे दिल के करीब है।

सुमित प्रताप सिंह - आप अपने लेखन से समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं?

डॉ जयशंकर शुक्ल - मित्रवर, समाज को संदेश दे सकूं अपने आपको इस लायक मैं नहीं समझ समझता। समाज एक ऐसी इकाई है जो संदेश-निर्देश की परिधि से काफी अलग है। एक व्यक्ति उस समाज रूपी इकाई का एक सदस्य है जो अपने कार्यों के द्वारा अपने समाज में अपना योगदान प्रदान करता है और इस योगदान के आधार पर उसका मूल्यांकन करते हुए सामाजिक संस्थाएं उसका अभिनंदन करती हैं। मेरे अपने विचार से सामाजिक ताने-बाने में व्यक्ति नहीं अपितु उसके कार्य महत्वपूर्ण होते हैं। आपने अपने प्रश्नों के द्वारा मुझे अपने विचार व्यक्त करने का जो अवसर दिया उसके लिए मैं आपका हृदय से आभारी हूं।

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...