शनिवार, 5 मई 2018

लघुकथा - नेक बदला


    जिले ने नफे से पूछा - नफे उस दिन फतेह ने तेरी जो बेइज्जती की थी, उसका तूने बदला लिया कि नहीं?
इससे पहले कि नफे कुछ कहता सूबे बोल पड़ा - भाई इसने तो ऐसा बदला लिया है कि फतेह उसे जिंदगी भर नहीं भूल पाएगा।
जिले ने हैरानी से पूछा - ऐसा कैसा बदला ले लिया, जो भुलाया न जा सके?
सूबे मुस्कुराते हुए बोला - नफे से ही पूछ ले न।
जिले - भाई नफे आखिर क्या बदला लिया तूने?
नफे मंद-मंद मुस्कुराया - ये तो तू सूबे से ही पूछ।
जिले बेचैन हो बोला - अरे भाइयो काहे को तड़पा रहे हो? सीधे-सीधे बता क्यों नहीं देते कि आखिर हुआ क्या था?
सूबे ने बताया - फतेह नफे से जिस दिन लड़ा था, उसके अगले दिन ही उसका सड़क पर एक्सीडेंट हो गया। एक्सीडेंट में फतेह के शरीर से काफी खून बह गया था और जब उसे खून की जरूरत पड़ी तो हमेशा उसके साथ रहने वाले उसके सारे संगी-साथी कोई न कोई बहाना कर उसे पीठ दिखा गए।
सूबे की बेचैनी कुछ और बढ़ गई। उसने बेचैन हो पूछा - अच्छा फिर क्या हुआ?
सूबे बोला - फिर क्या होना था। जब ये बात अपने नफे को पता चली तो ये झट से हॉस्पिटल जा पहुँचा और फतेह के लिए रक्तदान कर डाला। 
सूबे ने आगे पूछा - जब फतेह को ये पता चला तो उसने क्या किया?
सूबे बोला - करना क्या था। वह अपने दोनों हाथ जोड़कर रोते हुए नफे से अपने कर्मों के लिए माफी माँगने लगा। उसके ऐसा करने पर नफे ने उससे कहा कि ये नफे का बदला लेने का तरीका है। अब फतेह की रगों में फतेह के संग-संग नफे का खून भी दौड़ा करेगा।
जिले नफे को अपने सीने से लगाते हुए बोला - मेरे यार बहुत ही नेक बदला लिया है तूने।
लेखक - सुमित प्रताप सिंह, नई दिल्ली

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