बुधवार, 4 नवंबर 2020

व्यंग्य : पर्यावरण के लिए युद्ध


   देश की राजधानी में पर्यावरण एक बार फिर से खतरे में है। इसलिए फिर से पर्यावरण के लिए युद्ध लड़ने का समय आ गया है। युद्ध की तैयारी के लिए पर्यावरण से चले पिछले युद्धों की फाइलों को जल्दबाजी में टटोला जा रहा है। उन फाइलों का अध्ययन कर पीछे देख आगे चल का फार्मूला अपना कर आरोप-प्रत्यारोप का दौर चला कर पराली जलाने के लिए पड़ोसी राज्यों के किसानों को पानी पी-पी कर कोसा जा रहा है। इसके साथ ही साथ राजधानी के निवासियों द्वारा निजी वाहनों का प्रयोग करने के लिए उनकी कड़ी निंदा करने की प्रक्रिया चल रही है। उन्हें सलाह की वेशभूषा में आदेश दिए जाने की तैयारी की जा रही है कि वे सभी सार्वजनिक यातायात व्यवस्था का सदुपयोग कर अपनी यात्रा करने की तैयारी आरंभ करें। ये सुनते ही पहले से ही भीड़ से भयभीत सार्वजनिक यातायात व्यवस्था का दम फूलने के संग-संग डर के मारे उसके पसीना छूटने लगा है। राजधानी वासियों ने अपनी आदतानुसार सुझाव रुपी आदेश का पालन करने के लिए भली-भांति तैयारी करनी शुरू कर दी है और इस तैयारी के अंतर्गत सार्वजनिक वाहनों की भीड़ में घुसने और उस भीड़ में से सकुशल बाहर निकलने का अभ्यास करना आरंभ कर दिया है। एक घर से आरंभ हुआ ये अभ्यास धीमे-धीमे पूरी राजधानी में फैलता जा रहा है। राजधानी में वास करने वाली भेड़ें राजधानी वासियों की इस कार्यवाही को देख कर शंका कर रही हैं कि उनके झुंड में से गायब हुई भेड़ों ने कहीं इंसान की खाल पहननी शुरू तो नहीं कर दी है।

लंबे समय तक सोने के बाद जागे ऑड-इवन बंधुओं ने बुलावे का अंदेशा जानकर तैयार होने की प्रक्रिया आरंभ कर दी है। स्लोगनों से सजी तख्तियों संग प्रदूषण से युद्ध करने के लिए अप्रशिक्षित सैनिकों ने रेड लाइटों पर मोर्चा संभाल लिया है और अपने एक हाथ में स्लोगनों की तख्तियाँ पकड़े तथा दूसरे हाथ में स्मार्ट फोन पकड़ कर उसमें खोते हुए स्मार्ट तरीके से अपना टाइम पास करने में मस्त हो चुके हैं। लंबे-चौड़े होर्डिंग राजधानी की हर रेड लाइट पर युद्ध की घोषणा करते दीख रहे हैं। विज्ञापनों के पेट में जितना भी धन रूपी भोजन डाला जा रहा है, उनकी भूख उतनी ही अधिक बढ़ती जा रही है तथा वे सब कुएँ से खाई का रूप धारण करते जा रहे हैं। जैसे-जैसे विज्ञापनों का आकार बढ़ रहा है वैसे ही युद्ध का नेतृत्व कर रहे महायोद्धा के पेट का आकार भी बढ़ता जा रहा है। प्रदूषण ये सब देख कर अपने पुरखों खर-दूषण को साष्टांग प्रणाम करने के उपरांत दंड पेलना आरंभ कर देता है। पर्यावरण एक बार को इस युद्ध का नेतृव कर रहे महायोद्धा और उनके कथित युद्ध को श्रद्धापूर्वक नमन करता है और फिर राजधानी के दमघोंटू वातावरण में साँस लेने का भरकस प्रयत्न करते हुए अपनी अंतिम घड़ी की राह तकना शुरू कर देता है। तभी वह बुझती आँखों से देखता है कि उस कथित युद्ध का नेतृत्व कर रहे महायोद्धा के बगल में पर्यावरण का वेश धारण किए हुए कोई बहुरुपिया खड़ा हुआ मुस्कुराते हुए हाथ जोड़कर राजधानी वासियों का अभिवादन स्वीकार कर रहा है। महायोद्धा के अकुशल सैनिक उस कथित युद्ध की कथित जीत के उपलक्ष में य घोष करते हुए दिखाई देते हैं। पर्यावरण अपनी भूल पर पछतावा करता है कि उसने स्वयं को असली पर्यावरण समझने की भारी भूल की। इसी पछतावे में उस बेचारे के प्राण पखेरू उड़ जाते हैं।

लेखक - सुमित प्रताप सिंह

शुक्रवार, 21 अगस्त 2020

हास्य व्यंग्य : डिसलाइक दिव्यास्त्र

     क्षीर सागर में ध्यानमग्न विष्णु जी ने नारद मुनि के 'नारायण-नारायण' जाप को सुनकर अपनी आँखें खोलीं।

- नारद, कहो कैसे पधारे?

- प्रभु, बस आपके दर्शन की इच्छा हुई तो आ गया।

- इस इच्छा के साथ कुछ न कुछ तो और भी बात है।

- प्रभु, आप तो अंतर्यामी हैं। मेरे बिना कुछ कहे ही सब जान गए होंगे।

- पर तुम अपने श्रीमुख से बताओगे तो पाठकों का भी कुछ ज्ञानवर्धन होगा।

- प्रभु, पृथ्वी पर मायानगरी में एक नए दानव ने उत्पात मचा रखा है।

- कौन है वह दानव?

- उसका नाम नेपोटिज्म है।

- नेपोटिज्म?

- हाँ प्रभु, नेपोटिज्म दानव बहुत शक्तिशाली और बड़ा ही निर्दयी है। नई-नई प्रतिभाओं को हजम करके डकार भी नहीं लेता है।

- नेपोटिज्म दानव को इतना शक्तिशाली होने का वरदान ब्रम्हा जी से प्राप्त हुआ है अथवा महादेव से।

- प्रभु, दोनों में से किसी ने उसे कोई भी वरदान नहीं दिया है।

- फिर उस पर किसकी कृपा है?

- उस पर माफिया नामक महादानव की कृपादृष्टि है। 

- अच्छा, नेपोटिज्म की सेना भी है अथवा नहीं?

- मायानगरी में वास करने वाले महादानव माफिया के भक्त नेपोटिज्म की सेना के अभिन्न अंग हैं।   

- तो फिर नेपोटिज्म अपनी सेना का तो ध्यान रखता होगा।

-  हाँ प्रभु, नेपोटिज्म की कृपा से ही उसके सैनिक और उनके परिवार मायानगरी पर कब्जा जमाए हुए हैं। ये सब मिलकर नेपोटिज्म की थाली में नई-नई प्रतिभाओं को नियमित रूप से परोसकर उनका सफाया करने के अभियान में सक्रिय हैं।

- इसका अर्थ है कि मायानगरी विकट समस्या से जूझ रही है।

- हाँ प्रभु, अब आप ही इस संकट से मुक्ति दिला सकते हैं।

- इस संकट से मुक्ति प्राप्त करने के लिए मानवों को स्वयं प्रयास करना पड़ेगा।

- प्रभु, वैसे इस संकट से मुक्ति का उपाय क्या है?

- डिसलाइक नामक दिव्यास्त्र!

- डिसलाइक दिव्यास्त्र?

- हाँ नारद, ये ऐसा अचूक दिव्यास्त्र है जो नेपोटिज्म दानव और उसकी सेना का पूर्ण रूप से नाश कर देगा।  

- प्रभु, इस दिव्यास्त्र को कैसे प्राप्त किया जा सकता है?

- स्मार्ट फोन पर सोशल मीडिया यज्ञ करके डेटा की आहुति देने के उपरांत इस दिव्यास्त्र की प्राप्ति होगी। सजग रहते हुए जब भी मानवों को इस बात का भान हो कि नेपोटिज्म और उसकी सेना मोह का कोई नया जाल फैंकने वाली है उसी समय उन पर डिसलाइक दिव्यास्त्र चला दिया जाए। फिर देखो नेपोटिज्म अपनी सेना के साथ समाप्त होता है कि नहीं।

- नारायण-नारायण, प्रभु मैं अभी पृथ्वी पर जाकर नेपोटिज्म से भयभीत मानवों को ये उपाय बताता हूँ।

इतना कहकर नारद मुनि पृथ्वी की ओर दौड़ लिए और विष्णु जी फिर से ध्यानमग्न हो गए।

लेखक - सुमित प्रताप सिंह

चित्र गूगल से साभार  

गुरुवार, 13 अगस्त 2020

बिनोद हमारे दिलों में है


      ये ज़माना ट्रेंडिंग का है। सोशल मीडिया पर कब क्या ट्रेंड हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। इन दिनों ट्विटर पर ट्रेंडिंग की जिम्मेवारी बिनोद ने संभाल रखी है। देश की अधिकांश ट्विटरी जनता इस बात को जानने की इच्छुक है कि आखिकार बिनोद को क्यों ट्रेंड किया जा रहा है।

असल मे यह सब एक यू-ट्यूब चैनल Slayy Point से शुरू हुआ, जब उसके क्रिएटर अभ्युदय और गौतमी ने अपने वीडियो पर आने वाले कमेंट पर एक वीडियो बनाने का सोचा। 15 जुलाई को उन्होंने अपने चैनल पर ‘Why Indian Comments Section is Garbage (BINOD)’ नाम से एक वीडियो शेयर किया। जिसमें उन्होंने लोगों के कुछ अजीबोगरीब कमेंट्स दिखाए। इस वीडियो में बिनोद थारू नाम के एक शख्स ने हर कमेंट में सिर्फ बिनोद लिखा था। वीडियो के सामने आने के बाद से ही लोगों ने हर यू-ट्यूब वीडियो पर कमेंट में बिनोद लिखना शुरू कर दिया।

जल्द ही यह ट्रेंड Twitter पर भी लोकप्रिय हो गया। विचारणीय प्रश्न ये है कि बिनोद थारू नामक व्यक्ति क्यों सभी जगह बिनोद लिखता फिरता है।

यदि हम इस विचारणीय प्रश्न पर विचार न भी करें तो भी बिनोद के इस बिनोदी व्यवहार का कारण समझा जा सकता है। इस संसार में हर इंसान अपनी रोटी, कपड़ा और मकान इत्यादि आवश्यकताओं के पूरा होने बाद अपने दिल में एक सपना पालना शुरू करता है। उस सपने का नाम है 'जग में नाम कमाना'। नाम कमाने के लिए लोग दान देते हैं, लोगों की सहायता करते हैं और स्कूल, धर्मशाला इत्यादि का निर्माण करते हैं। जो ये सब नहीं कर पाते हैं वे अपने इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए सोशल मीडिया पर बैठ जाते हैं। शायद इसी सपने को साकार करने के लिए बिनोद ने अपना बिनोदी अभियान शुरू किया होगा।

बहरहाल बिनोद को अपने परिश्रम का लाभ मिला और फुरसतिया यूट्यूबरों, ट्विटराओं और ट्विटरियों ने बिनोद को ट्रेंड करना शुरू कर दिया। ये ट्रेंड धीरे-धीरे पूरे सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर फैल चुका है। अब लोग बिनोद को खोज रहे हैं। कुछ लोग उसके ट्रेंड होने का कारण ढूँढ़ रहे हैं।

ऐसा करते हुए लोग ये भूल जाते हैं कि जिस बिनोद की तलाश में वे सब लगे हुए हैं वह तो हम सभी के दिलों में पैठ बनाकर बैठा हुआ है। नाम कमाने की इच्छा रखने वाला हर वो इंसान बिनोद है जो समाज सेवा करके, दान-दक्षिणा देकर या फिर कोई अच्छा और भला कार्य करने के बजाय उल्टे-सीधे और अजीबोगरीब तरीके आजमा कर अपना नाम कामना  चाहता है।

बहरहाल बिनोद का मिशन सफल हो चुका है। अब हर कोई बिनोद की चर्चा में व्यस्त है। कई फर्जी बिनोद इसका क्रेडिट लूटने के लिए सोशल मीडिया पर प्रकट हो चुके हैं। पर असली बिनोद इन सब घटनाओं को देखकर मंद-मंद मुस्कुराता हुए ट्विटराओं के ट्वीटों में, फेसबुक पोस्ट में या फिर यूट्यूब के वीडियो पर कमेंट के रूप में अपना नाम बिनोद दर्ज करने में मस्त हो रखा है।

लेखक - सुमित प्रताप सिंह

मंगलवार, 30 जून 2020

सॉरी ज़िंदगी


ब भी मैं ज़िंदगी से 
बेहद उदास हो जाता हूँ
तब मेरे दिमाग में 
ये ख्याल आता है कि
क्यों न खत्म कर लूँ खुद को 
और चला जाऊं 
इस दुनिया से बहुत दूर
ये सोचते-सोचते मुझे
रास्ते में मिल जाता है
मंदिर पर भीख माँगने वाला 
दुर्घटना में अपनी दोनों टाँगें 
गँवा बैठा कलवा भिखारी
जो चंद रुपयों की भीख पा
समझता है खुद को
इस दुनिया का
सबसे खुशहाल आदमी
कुछ दूर और चलने पर 
मिल जाती है वो लड़की
जो एक सिरफिरे के 
एक तरफा प्यार में
तेजाब से जलवा चुकी है 
अपना खूबसूरत चेहरा
अपने सारे गमों को भुला 
जब वो हँसती है न तो
उसकी हँसी बहुत हसीन लगती है
और मुझे अपनी उदासी पर 
घिन सी आने लगती है
कुछ और आगे चलने पर 
मिलता है बचपन में
अपनी आँखें खो चुका श्यामू
जो मेरी आँखों का सहारा ले
इस दुनिया को देखकर
जी भरके खिलखिलाता है
अचानक जाने मुझे क्या होता है कि 
मैं भागकर अपने 
घर की ओर जाता हूँ
और अपनी माँ की गोद में 
अपना सिर रखकर सो जाता हूँ
माँ ममता भरे हाथों से
मेरे सिर को सहलाती है तो
एक बार फिर से 
जीने का मन करता है
और मैं पछता कर कहता हूँ 
मैंने तुम्हारा मोल न समझा
सॉरी ज़िंदगी।
लेखक - सुमित प्रताप सिंह

बुधवार, 27 मई 2020

व्यंग्य : कोरोना वारियर्स सर्टिफिकेट


    फे गाना गुनगुनाते हुए घर में प्रवेश करता है। ये देखकर उसकी पत्नी उससे पूछती है।
नफे की पत्नी : क्या बात है? आज बड़े खुश लग रहे हो?
नफे : खुश होने वाली बात ही है। ये देखो। (अपने मोबाइल में कुछ दिखाता है)
नफे की पत्नी : अरे ये क्या है?
नफे : ये सर्टिफिकेट है।
नफे की पत्नी : किस बात का सर्टिफिकेट?
नफे : ये कोरोना वारियर्स सर्टिफिकेट है।
नफे की पत्नी : कोरोना वारियर्स? पर तुमने कोरोना की कौन सी वार लड़ ली, जो कोरोना वारियर्स सर्टिफिकेट मिल गया?
नफे : अरे भाग्यवान, दरअसल मैं सोशल मीडिया पर ये देख-देख कर थक गया था, कि हर ऐरे-गैरे, नत्थूखैरे को कोरोना वारियर्स घोषित कर उसके नाम का सर्टिफिकेट जारी कर दिया जाता है।
नफे की पत्नी : हाँ, काफी दिनों से ये ड्रामा देख तो मैं भी रही हूँ।
नफे : इसी ड्रामे को देख कर मेरे दिल में भी एक टीस सी रहती थी, कि कोई हमें भी एक अदद सर्टिफिकेट देकर कोरोना वारियर्स घोषित कर डाले।
नफे की पत्नी : तो तुमने इस सर्टिफिकेट का जुगाड़ कहाँ से किया?
नफे : अपना एक साथी है जुगाड़ी लाल। वह पुलिस के साथी नाम से एक संस्था चलाता है। उसी से इस सर्टिफिकेट का जुगाड़ हुआ है।
नफे की पत्नी : इन दिनों देखने में आ रहा है, कि पुलिस काफी मेहनत कर रही है। वैसे जुगाड़ी लाल की संस्था पुलिस वालों का साथ निभा भी रही है या नहीं?
नफे : मैं कुछ समझा नहीं।
नफे की पत्नी : अरे, मैं तो ये पूछ रही हूँ कि जुगाड़ी लाल ने पुलिस के साथी नाम से संस्था बनायी है तो उस संस्था के माध्यम से पुलिस का कैसे साथ निभाती है। मतलब कि पुलिस के लिए कुछ करती-वरती भी है कि नहीं।
नफे : करती है न। संस्था का अध्यक्ष जुगाड़ी लाल किसी न किसी पुलिस अफसर को कभी गुलदस्ता तो कभी मिठाई का डिब्बा देते हुए उसके साथ अपनी चमकदार बत्तीसी दिखाकर फोटो खिंचवाता है और उस फोटो को फटाफट सोशल मीडिया पर शेयर कर देता है।
नफे की पत्नी : और क्या-क्या काम करता है ये जुगाड़ी लाल?
नफे : जब किसी व्यक्ति का पुलिस से संबंधित कोई काम अटकता है, तो जुगाड़ी लाल जुगाड़ बिठा कर उस काम को करवा देता है। इससे उसकी रोजी-रोटी का अच्छा-खासा जुगाड़ भी हो जाता है।
नफे की पत्नी : तो कोरोना की इस घड़ी में जुगाड़ी लाल की संस्था कुछ कर-वर भी रही है कि नहीं?
नफे : कर रही है न।
नफे की पत्नी : क्या कर रही है?
नफे : इस समय जुगाड़ी लाल अपनी संस्था के माध्यम से सोशल डिस्टेंसिंस की पूरी इज्ज़त करते हुए कोरोना वारियर्स के ऑनलाइन सर्टिफिकेट बाँटते हुए अपने पापी पेट के लिए जुगाड़ करने में मस्त है।
नफे की पत्नी : और इसी दौरान तुमने भी उनसे कोरोना वारियर्स के सर्टिफिकेट का जुगाड़ कर लिया। वैसे उन्होंने तुम्हें किस कैटगरी में कोरोना वारियर्स घोषित किया है?
नफे : अब सर्टिफिकेट मिल गया है, तो  कैटेगरी-वैटेगरी भी बाद में सोच ली जाएगी।
नफे की पत्नी : सुनते हो जी, मैं ये कह रही थी कि जुगाड़ी लाल से कह कर मेरा भी कोरोना वारियर्स का एक सर्टिफिकेट बनवा दो। मेरी जाने कितनी फ्रेंड्स कोरोना वारियर्स के सर्टिफिकेटों के संग सोशल मीडिया पर इठलाती फिर रही हैं।
नफे : हम्म, एक जेब तो खाली हो गयी। दूसरी जेब से पूछता हूँ कि सर्टिफिकेट के लायक उसमें कुछ वजन है भी कि नहीं?
नफे की पत्नी : (गुस्सा होते हुए) मतलब कि तुम मेरी छोटी सी बात भी नहीं मानोगे?
नफे : अरे नहीं मेमसाब, तुम्हारा आदेश सर आँखों पर...(झट से जुगाड़ी लाल को फोन मिलाता है) हैलो जुगाड़ी लाल जी एक और कोरोना वारियर्स के सर्टिफिकेट का जुगाड़ कर देंगे? अरे चिंता मत कीजिए आपकी सेवा का जुगाड़ हो जाएगा।
जुगाड़ी लाल : (दूसरी ओर से फोन पर) जनाब, अब मैं कोरोना वारियर्स के सर्टिफिकेट नहीं दे पाऊँगा।
नफे : जुगाड़ी लाल जी, मैं खर्चा देने को तैयार हूँ, फिर आपको दिक्कत क्या है?
जुगाड़ी लाल : जनाब, मैंने इतने सारे ऑनलाइन सर्टिफिकेट बाँटे, कि किसी ने पुलिस के कान फूँक दिए और मुझे  हवालात में डाले जाने की तैयारी चल रही है। 
नफे :अरे बाप रे! ( वह घबरा कर मोबाइल फोन से कोरोना वारियर्स सर्टिफिकेट को फटाफट डिलीट कर देता है)
नफे की पत्नी : अरे ये क्या किया तुमने? मेरे सर्टिफिकेट का जुगाड़ तो किया नहीं और अपना सर्टिफिकेट भी डिलीट कर दिया।
नफे : (प्यार से कंधे पर हाथ रखते हुए) डार्लिंग, ये सर्टिफिकेट वगैरह सब मिथ्या हैं। इंसान जिस हाल में हो उसी में जिये तो ज्यादा अच्छा है।
नफे की पत्नी : हुँह, आ गए न अपनी औकात पे।
नफे : मेमसाब, अब तुम जो भी समझो वही ठीक है!

शुक्रवार, 1 मई 2020

हास्य कविता - टहलू इंसान



र कोई इंसान भला 
घर में कहाँ बहलता है
इसलिए विवश हो वह
घर से बाहर जा टहलता है
घर में वह रुक जाए 
ये भी भला कोई बात है
उसकी तो एक अलग ही 
टहलू नाम की जमात है
बेशक कैसी भी रोक हो
कोई भी सरकारी टोक हो
वह इंसान हर रोक-टोक को
बड़ी बेदर्दी से नकार देगा
जब तक आप उसे टोकेंगे
वह पार्क का एक चक्कर काट लेगा
जब अकेले टहलने से  
वह बहुत ऊब जाएगा
तब टहलू जमात के साथ
वह गप्प में डूब जाएगा
जब रंगे हाथों वह पकड़ा जाएगा
तो झट से ढेरों बहाने बनाएगा
मैं तो आया था माँ की दवाई लेने
या फिर बच्चे की जिद पर मिठाई लेने
पत्नी के आदेश से रौशनाई लेने 
या फिर ओढ़ने को नई रजाई लेने 
उसका कोई न कोई बहाना
आखिर काम कर ही जाएगा 
और पकड़े जाने से वह
बाल-बाल बच जाएगा
यूँ बच जाने पर वह 
खुशी के मारे ऊल जाएगा
और कुछ देर बाद टहलने को 
फिर किसी पार्क में कूद जाएगा।
लेखक - सुमित प्रताप सिंह



बुधवार, 29 अप्रैल 2020

गीत : गाथा कोरोना वारियर्स पत्रकारों की


एक-एक पल की खबर दिखाते 
घर, कूँचों और गलियारों की
आओ हम सब मिल गाथा गायें
कोरोना वारियर्स पत्रकारों की
कोई खबर न छूटे जिनसे
हो मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारों की
आओ हम सब मिल गाथा गायें
कोरोना वारियर्स पत्रकारों की

सर्दी, गर्मी, बारिश की 
ये परवाह कभी न करते हैं
देश के हर हालात पे
ये ध्यान सदा ही धरते हैं
 ये देश का चौथा खंबा कहलाते
हम कद्र करें इन उजियारों की 
आओ हम सब मिल गाथा गायें
कोरोना वारियर्स पत्रकारों की

देश में झगड़े-दंगे हों 
या फैले कोई महामारी
पत्रकार कर्तव्य निभा 
जुटा लाते खबरें सारी
अंदाज अलग, है बात अलग
देश के इन बलिहारों की
आओ हम सब मिल गाथा गायें
कोरोना वारियर्स पत्रकारों की

ये बिना सुरक्षा जीते हैं
पर चिंता राष्ट्र की करते हैं
इनमें से जाने कितने अक्सर
बदहाली-तंगहाली में मरते हैं 
फिर भी इनकी कोशिश रहती
देश से, हो छटा दूर अंधियारों की 
आओ हम सब मिल गाथा गायें
कोरोना वारियर्स पत्रकारों की

लेखक : सुमित प्रताप सिंह

शुक्रवार, 27 मार्च 2020

हास्य व्यंग्य : मंचीय कवि का कोरोना काल


   चीनी वायरस कोरोना के कारण देश में हुए लॉकडाउन के बाद मंच के धुरंधर कवि चोरोना लाल पर बहुत बड़ी आफत आ गयी। पूरे साल मंच पर व्यस्त रहने वाले चोरोना लाल अचानक कुछ भी करो न की स्थिति में आ गए थे। अब उनकी दौड़ इस कमरे से उस कमरे या कमरे से बाथरूम, लैट्रिन या बालकनी तक ही होती थी। एक दिन उन्होंने अपनी दौड़ का रास्ता बदल दिया और कमरे से रसोई की ओर चले गए। वहाँ उनकी पत्नी ने अपनी थकान का हवाला देकर उनसे पूरे दिन के बर्तन धुलवा लिए और चुपके से इस दुर्घटना का वीडियो भी बना लिया। अगले दिन से पत्नी ने उस वीडियो को टिकटोक पर डालने की धमकी देकर उन्हें अपनी दौड़ कमरे से रसोई के बीच लगाने को विवश कर दिया। बीच में एक-आध बार उनकी दौड़ कमरे से बाथरूम के बीच हुई तो बेचारे पत्नी के धमकी भरे आदेश के कारण कपड़ों पर भी जोर आजमाइश कर आए। उन्होंने अचानक आयीं इन विपत्तियों का सदुपयोग करने का विचार किया और मंच के  लिए कुछ दर्द भरी रचनाओं का निर्माण करने की योजना बनाने लगे। पर उनकी ये योजना सफल नहीं हो पायी और उनसे किसी भी रचना का निर्माण लाख प्रयास करने के बाद भी न हो पाया।
उन्होंने सोचा कि दर्द भरी रचना ना सही कुछ प्रेम भरे गीत ही बनाए जाएं। इसके लिए वो घर से चुपचाप निकल कर अपनी सोसाइटी के बगल में बने लंबे-चौड़े गार्डन में पहुँचे और अपने बटुए में छिपायी हुई मंच की युवा कवियत्री छप्पन छुरी की तस्वीर निकाली और उसमें डूबते हुए स्वप्न संसार में प्रेमगीत की खोज में भटकने लगे। तभी उनकी पीठ पर पड़े जोरदार लट्ठ ने उन्हें उस स्वप्न संसार से वास्तविक दुनिया में वापस ला पटका। चोरोना लाल ने चोर नज़रों से देखा तो इलाके के थानेदार लठैत सिंह को अपने स्टाफ के संग गुस्से में खड़ा पाया। इससे पहले कि उन पर लठैत सिंह के लट्ठ का दूसरा वार होता, उन्होंने बिना देर किए लठैत सिंह के पैर पकड़ लिए। चोरोना लाल ने आयोजकों और संयोजकों के पैर पकड़ने का सालोंसाल जो अभ्यास किया था वो उस दिन काम आया और लठैत सिंह उनको बिना लट्ठ जड़े घर में पड़े रहने की कड़ी चेतावनी देकर वहाँ से चले गये।
अगला दिन भी चोरोना लाल का रचना निर्माण के संघर्ष करते हुए कमरे से क्रमशः दूसरे कमरे, रसोई, बाथरूम, लैट्रिन और बालकनी की दौड़ लगाते हुए ही बीता। रात को बड़ी उदासी के साथ चोरोना लाल अपने मस्तिष्क से रचना का निर्माण करो ना का निवेदन करते हुए बिस्तर पर ढेर हो गए।
अगले दिन चोरोना लाल के घरवालों ने देखा कि वो बिस्तर पर पड़े-पड़े अधमरे हो कुछ बड़बड़ा रहे थे। घरवालों ने ध्यान से सुना तो चोरोना लाल बड़बड़ाते हुए 'प्राण दें' 'ऊर्जा दें' 'आशीर्वाद दें' इत्यादि वाक्यों को बार-बार दोहरा रहे थे।
घरवालों ने नीम-हकीम, डॉक्टर, झाड़-फूँक जैसे सारे उपाय कर डाले पर चोरोना लाल की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ। अचानक उनकी पत्नी को न जाने क्या सूझी और उन्होंने चोरोना लाल के गुरु श्री जुगाड़ करोना को फोन मिला दिया। चोरोना लाल की पत्नी की पूरी बात को सुनकर गुरुजी मंद-मंद मुस्कुराये और उन्होंने चोरोना लाल की पत्नी को इस परेशानी से बाहर निकलने का उपाय सुझाया।
अगले दिन निश्चित समय पर घर में रखे पुराने तख्त को सजाकर मंच का निर्माण किया और उस पर चोरोना लाल को स्थापित किया गया। घर के बाकी सदस्य श्रोता बनकर नीचे दरी बिछाकर बैठ गए। इसके पश्चात गुरु श्री जुगाड़ करोना व उनकी कवि मंडली के होनहार जुगाड़ू कवियों को वीडियो कॉलिंग के माध्यम से जोड़ा गया और ऑनलाइन कवि सम्मेलन का शुभारंभ किया गया। चोरोना लाल ने बारी-बारी से सभी कवियों की रचनाओं को ध्यान से सुना और अपने गुरु श्री जुगाड़ करोना को प्रणाम कर चौर्यकर्म का सदुपयोग करते हुए झट से एक लंबी रचना का निर्माण कर डाला। अब घर के सदस्य चोरोना लाल की हर पंक्ति सुनने के बाद 'प्राण दें' 'ऊर्जा दें' और 'आशीर्वाद दें' इत्यादि वाक्य सुनते ही ताली पीटना आरंभ कर देते। उस ऑनलाइन कवि सम्मेलन के समाप्त होने पर चोरोना लाल की पत्नी ने लिफाफे में 1100 ₹ रुपये रखकर उन्हें दिए। चोरोना लाल ने आदतानुसार उस लिफाफे में से संयोजक का कमीशन निकालकर पत्नी को वापिस कर दिया। शाम तक  चोरोना लाल की तबीयत में अप्रत्याशित सुधार आया और उनकी एक कमरे से दूसरे कमरे, रसोई, बाथरूम, लैट्रिन और बालकनी की दौड़ फिर से शुरू हो गयी।
लेखक : सुमित प्रताप सिंह

कार्टून गूगल से साभार

रविवार, 15 मार्च 2020

व्यंग्य : हम सब कोरोना से कम हैं क्या



       न दिनों कोरोना का कहर पूरे संसार पर हावी हो रखा है। अब तो इसे विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा भी महामारी घोषित कर दिया गया है। भोले-भाले देश चीन पर इसे फैलाने का दोष मढ़ा जा रहा है। हालाँकि चीन ने अपने से भी भोले-भाले देश अमरीका पर इसे फैलाने का इल्जाम जड़ दिया है। कोरोना आरोप-प्रत्यारोप के खेल से निश्चिंत हो अपने पुण्य कार्य में व्यस्त है।
ताज़ा समाचार ये है कि कोरोना वायरस  ने भारत में भी दस्तक दे दी है। हालाँकि कोरोना वायरस को इस बात का भान नहीं है, कि उससे भी बड़ा वायरस अपने देश में जाने कबसे मौजूद है। ये वायरस समय-समय पर अपने संक्रमण द्वारा देश में अपना-अपना योगदान देता रहता है। अब यदि हम चाहें तो कोरोना की भाँति इस वायरस का भी नामकरण कर सकते हैं. वैसे इसका नाम 'सड़ोना' रखना उचित रहेगा। इस वायरस की उत्पत्ति तब होती है जब किसी व्यक्ति की मानसिकता सड़ना आरंभ कर देती है।
इस सड़न प्रक्रिया के फलस्वरूप उस व्यक्ति के मस्तिष्क में सड़े-गले विचारों की उत्पत्ति होनी आरंभ हो जाती है। तदुपरांत वह व्यक्ति अपनी जाति, अपने समुदाय अथवा अपने धर्म के सर्वश्रेष्ठ होने की घोषणा करते हुए दूसरे व्यक्ति की जाति, समुदाय व धर्म को दीन-हीन मानते हुए उसका व उसके महापुरुषों का मान-मर्दन करना आरंभ कर देते हैं।
जब दूसरा व्यक्ति सहनशीलता को गुडबाय बोलकर इस बात का विरोध करना आरंभ कर देता है, तो सड़ोना वायरस से पीड़ित व्यक्ति आगबबूला हो उठता है और गुस्से में वह चाकू निकालता है, पेट्रोल बम तैयार करता है, पत्थर इकट्ठे करता है और विरोध करने वाले व्यक्ति पर धावा बोल देता है। सड़ोना वायरस अवसर पाते ही दूसरे व्यक्ति को भी संक्रमित कर डालता है। इसके पश्चात ऐसा विध्वंस होना आरंभ होता है कि उसे देखकर मानवता शर्मसार होते हुए हाथ जोड़कर सड़ोना वायरस से पीड़ित व्यक्तियों से निवेदन करती है कि अब बस भी करो ना। पर मानवता की नहीं सुनी जाती। कोरोना वायरस ये देखकर एक पल के लिए तो घबरा जाता है। कोरोना की इस हालत को देखकर सड़ोना वायरस से पीड़ित व्यक्ति खिलखिलाकर हँसते हुए कहते हैं कि हम सब कोरोना से कम हैं क्या।

लेखक : सुमित प्रताप सिंह

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