रविवार, 25 मार्च 2018

व्यंग्य : श्रीराम की चिंता


        राम का नाम भारत के जन-जन में और कण-कण में बसा हुआ है। ये उनके नाम का ही प्रभाव माने कि किसी को विरोध करना हो, अपनी माँगों को मजबूती से रखना या फिर अपनी राजनीति की नैया पार लगवानी हो तो राम ही याद आते हैं। अभी कुछ दिन ही तो बीते हैं जब एक समूह राम के चित्रों को जूते मारते हुए मार्च कर रहे थे। उस महान मार्च को सुरक्षित निकलवाने के लिए उस क्षेत्र के वीर पुलिसकर्मी कमर कसे हुए थे। मार्च निकालने वाले जनसमूह के समर्थक और शुभचिंतक सोशल मीडिया पर प्रसन्नतापूर्वक इस मार्च के वीडियो व चित्रों को शेयर करते हुए गर्वित हो रहे थे। इस सारे घटनाक्रम को तिरपाल में बैठे राम लला गुमसुम हो देख रहे थे। हो सकता है कि राम लला सोच रहे हों कि उस तिरपाल से मुक्ति मिले तो कुछ किया जाए। पर वो कहावत है न कि 'न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी' सो राम लला को कुछ करने के लिए शायद अभी वर्षों तक और प्रतीक्षा करनी पड़े। वैसे भी उन्हें अब आदत हो गई है इन सबको सहने की। कोई पहले उनके अस्तित्व को नकारता है और फिर आवश्यकता पड़ने पर उनके चरणों में ही जाकर अपनी नाक रगड़ता है, कोई उन्हें पहले तो खूब गरियाता है फिर अचानक स्वार्थ सिद्धि के लिए उनका जयघोष करने लगता है तो कोई उन्हें अत्याचारी घोषित कर उनके लिए अभद्रता की हदें पार करने को उतारू हो जाता है। ये सब देखकर राम लला एकपल को उदास हो जाते हैं फिर कुछ पल बाद मुस्कुराते हैं। कुछ क्षण मुस्कुराने के पश्चात वो उठकर केवट मल्लाह को हृदय से लगाते हैं, फिर शबरी के झूठे बेरों से अपनी भूख मिटाते हैं और फिर महर्षि बाल्मीकि को प्रणाम कर चिंता करते हुए मन ही मन बुदबुदाते हैं, 'ये लंकापति रावण मृत्यु से पहले भारत भूमि में किन-किन स्थानों पर अपने बीज रोप गया था?'
लेखक - सुमित प्रताप सिंह

गुरुवार, 8 मार्च 2018

कविता : धरती की परमेश्वर


जब भी बाहर मैं 
किसी स्त्री को देखता हूँ
तो उसे देखकर मैं
ठंडी आहें नहीं भरता
सीटी बजाकर या 
गंदे और फूहड़ इशारे कर
उसे लुभाने की बेकार और
घटिया कोशिश नहीं करता
उसपर अश्लील फब्तियां कसकर
उसकी गरिमा तार-तार नहीं करता
दूषित मन के साथ उसके घर तक
उसका पीछा नहीं करता
और मैं ऐसा कोई भी 
काम नहीं करता
जिससे किसी स्त्री को 
थोड़ी देर के लिए भी 
ये पछतावा हो कि 
उसने स्त्री रूप में 
इस सड़कछाप संसार में
आखिर जन्म क्यों लिया
हाँ जब भी मैं 
किसी स्त्री को देखता हूँ तो
उसे देखकर मैं 
नतमस्तक हो आभार जताता हूँ
उस परमपिता परमेश्वर का
जिसने जग की इस अनमोल
और पवित्र कृति का सृजन किया
जिसकी पावन कोख से 
मानव सभ्यता का सृजन हुआ
और जिसने माँ, बहिन, पत्नी 
और बेटी का रूप धर 
इस जग को प्रेम, वात्सल्य, सौंदर्य
और प्रसन्नता से भर दिया
और मैं पूरी श्रद्धा के साथ 
धरती की इस परमेश्वर के आगे 
नतमस्तक हो जाता हूँ।
लेखक : सुमित प्रताप सिंह

चित्र गूगल से साभार


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