डॉ. देशमित्र त्यागी का जन्म 15 जुलाई, 1978 को उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के महमूदपुर गांव में हुआ। इनके पिता स्वर्गीय श्री योगेंद्र सिंह गांव के एक कृषक एवं प्रसिद्ध समाजसेवी थे। इनका पालन-पोषण एवं माध्यमिक शिक्षा संभल तथा उच्च शिक्षा जे.एस.एच. कॉलेज,अमरोहा में संपन्न हुई। इन्होंने एम.जे.पी. रोहिलखंड विश्वविद्यालय, बरेली से संस्कृत एवं हिंदी विषय में स्नातकोत्तर एवं हिंदी विषय में विद्या वाचस्पति उपाधि प्राप्त की। इन्होंने अभी तक हिंदी साहित्य का संक्षिप्त इतिहास एवं हिंदी भाषा का संक्षिप्त इतिहास, नवीन हिंदी काव्य के प्रमुख साहित्यकार एवं उनकी मुख्य रचनाएं तीन पुस्तक लिखीं हैं तथा इस समय श्री वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय, रजबपुर गजरौला में हिंदी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत रहते हुए साहित्य से मित्रता भाव रखते हुए साहित्य सृजन में रत हैं। हमने कुछ प्रश्नों के माध्यम से इनकी साहित्यिक यात्रा के विषय में जानने का लघु प्रयास किया है।
सुमित प्रताप सिंह - आपको लेखन का रोग कब और कैसे लगा?
डॉ. देशमित्र त्यागी - मैं कोई लेखक नहीं हूं। परंतु दुख और सुख में व्यक्ति कभी रोता है, कभी हंसता है और कभी गाता है। इसी प्रकार मेरे साथ हुई एक घटना ने मुझे लिखने पर विवश किया। यह घटना मेरे मेले में गुम होने की थी, जिस पर मैंने एक संस्मरण लिखा जिसका नाम था 'यह सूरज कब निकलेगा'।
सुमित प्रताप सिंह - लेखन से आप पर कौन सा अच्छा अथवा बुरा प्रभाव पड़ा?
डॉ. देशमित्र त्यागी - लेखन साहित्य का वह अंग है जिसमें सराबोर होकर व्यक्ति अपने मन की भावनाओं को समाज में परोसता है। चूंकि मेरे गुरु डॉ. राम अवध शास्त्री जी स्वयं एक ललित निबंधकार थे उनके आशीर्वाद से मुझ पर लेखन का अच्छा प्रभाव ही पड़ा है।
सुमित प्रताप सिंह - क्या आपको लगता है कि लेखन समाज में कुछ बदलाव ला सकता है?
डॉ. देशमित्र त्यागी - यह लेखक के स्वयं के बूते की बात नहीं है। यह तो पाठक पर निर्भर करता है कि लेखक की रचना उसे प्रभावित करती है अथवा नहीं। वर्तमान समय में कुछ लेखकों को छोड़कर अधिकांश लेखक चाटुकार हैं। संभवतः उन सभी का उद्देश्य साहित्य की सेवा करना कम और धनार्जन करना एवं प्रसिद्धि प्राप्त करना अधिक है। वैसे साहित्यकार समाज का वह जिम्मेदार व्यक्ति है, जो अंधे व्यक्ति को भी रास्ता दिखाने का कार्य करता है। इसमें परिवर्तन ग्राहय अथवा अग्राह्य भी हो सकता है।
सुमित प्रताप सिंह - आपकी अपनी सबसे प्रिय रचना कौन सी है और क्यों?
डॉ. देशमित्र त्यागी - यह सूरज कब निकलेगा नामक संस्मरण मेरी प्रिय रचना है। जैसा कि मैंने पहले ही बताया है कि मैं बचपन में मेले में खो गया था। जब मैं अपना घर ढूंढते हुए घर पहुंचा तो मेरी मां मुझे अपनी छाती से लगा कर बहुत रोई थीं। उस घटना के बाद मैंने इस संस्मरण को लिखा था।
सुमित प्रताप सिंह - आप अपने लेखन से समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं?
डॉ. देशमित्र त्यागी - प्रथम तो साहित्यकार अपने साहित्यिक कर्म को अपनाएं। समाज के लिए मेरा संदेश अपने माता-पिता की सेवा, परिवार का उचित पालन-पोषण और देश सेवा है। ये ही मेरे साहित्यिक कर्म का उद्देश्य है और सदैव रहेगा।
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