गुरुवार, 26 अक्टूबर 2017

कुछ अलग-थलग सी है सफेद कागज


    लोकप्रिय लोकसेवक एवं युवा कवि शैलेन्द्र कुमार भाटिया जी का हाल ही में प्रकाशित कविता संग्रह 'सफेद कागज' को आज मैंने पढ़कर समाप्त किया है। इसमें संकलित 152 कविताएँ विभिन्न विषयों पर केंद्रित हैं। कवि ने स्त्री, पिता व माँ पर अधिक कविताओं का सृजन किया है, जिससे ये भली-भाँति समझा जा सकता है कि कवि के हृदय में स्त्री, पिता व माँ के प्रति आदरभाव व श्रद्धा का कितना समावेश है।  इस कविता संग्रह में लगभग सभी कवितायें पठनीय हैं। निर्भया, चाँद सुन लेगा, तुम युक्ति हो मेरी, फाइलें, गंगा : एक जीवन जीने की विधि, गन्ने का जूस, गाँव क्यों उदास हो, फिर बचपन क्यों याद है, चीटियाँ व मैं कॉन्वेंट स्कूल हूँ इत्यादि कविताओं को बार-बार पढ़ने का मन करता है। कवि की भाषा शैली प्रभावशाली है।

जहाँ 'गन्ने का जूस' कविता में कवि ने लिखा है

"लोहे के दो गोलों के बीच
पिसना नियति है
दूसरों को रस व
मिठास देने के लिए
ये गन्ने
अपनी बूँद-बूँद देना
अपना कर्तव्य समझते हैं
वैसे ही जैसे
दो देशों की
सीमा पर तैनात सैनिक
अपने रक्त की एक-एक बूँद
दे देते हैं
अपने-अपने देशों में
जीवन की मिठास का
रस भरने के लिए।"

वहीं कविता 'चीटियाँ' में कवि ने कहा है

"जीवन में ऊंच-नीच
उतार-चढ़ाव-ठहराव को
लाँघती चीटियाँ
आज फिर से आँगन में
अपने अंडे लेकर निकलीं हैं
यह संकेत है
प्रस्थान का
परिवर्तन का
प्रकृति के बदलाव को
आत्मसात करने का
और एक नये पराक्रम का
अपनी संतति और अस्तित्व को
कायम करने के लिए।"

तथा 'मैं कॉन्वेंट स्कूल हूँ' में कवि की लेखनी कहती है

"समाजवाद से छूटा हूँ
पूँजीवाद का पोषक हूँ
किसानों और गरीबों से दूर
कुछ अतिविशिष्ट
जनों के लिए ही
उपलब्ध हूँ
मैं कॉन्वेंट स्कूल हूँ।"

कुल मिलाकर कवि का यह प्रथम प्रयास सराहनीय है। अभी लेखन जगत को उनसे काफी उम्मीदें हैं और उन उम्मीदों पर कवि का खरा उतरना तय है। कवि शैलेन्द्र कुमार भाटिया जी को सफेद कागज हेतु हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। ईश्वर करे कि उनकी सफेद कागज पुस्तक उनके साहित्यिक जीवन का सुनहरा अध्याय लिखे। एवमस्तु!

पुस्तक : सफेद कागज (कविता संग्रह)
लेखक : शैलेन्द्र कुमार भाटिया
समीक्षक : सुमित प्रताप सिंह
प्रकाशक : पी.एम. पब्लिकेशंस,नई दिल्ली
पृष्ठ : 224
मूल्य : 145/- रुपये

शुक्रवार, 20 अक्टूबर 2017

...तो ये मुल्क़ बंट जाएगा


   न राजपूत किसी पंडित, जाट या गूजर को गाली देता है न पंडित, जाट अथवा गूजर किसी राजपूत को गाली देता है। न सवर्ण किसी दलित को गाली देता है और न दलित किसी सवर्ण को गाली देता है। परोक्ष और अपरोक्ष युद्ध में मुँह की खाने के बाद पड़ोसी दुश्मन देश ने अब सोशल मीडिया के माध्यम से भारत से युद्ध के लिए कमर कसी है और अपने कथित वीर सिपाहियों को हमारे देश के भाईचारे को खंडित करने के लिए सोशल मीडिया पर तैनात कर दिया है। ये कथित वीर सिपाही स्वयं को किसी न किसी जाति के नेता व हितेषी घोषित कर दूसरी जातियों के बारे में घृणित व अपमानजनक शब्द लिखकर हमारे आपसी सद्भाव को नष्ट करने की कोशिश में जी-जान से लगातार जुटे हुए हैं। कम पढ़े-लिखे व अल्पबुद्धि के लोग उनके प्रभाव में जल्दी आ जाते हैं और उनकी कठपुतली बनकर अपने जाति बंधुओं के बीच इस घृणा को फैलाने में माध्यम बनने का कार्य करते हैं। विभिन्न जातियों के देवताओं व महापुरुषों के साथ अभद्र व्यवहार करते हुए लेख व चित्र सोशल मीडिया पर डालकर जातियों को आपस में उलझाने की निरंतर साजिश रची जा रही है। इस साजिश के परिणामस्वरूप लोग एक-दूसरे के जानी दुश्मन तक बनते जा रहे हैं और ये लोग भावनाओं में अंधे होकर हत्या तक करने से नहीं चूक रहे हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो दुश्मन देश अपने मकसद में कुछ हद तक कामयाब होता दिख रहा है। इससे पहले कि  जातियों के बीच आपसी वैमनस्यता इतनी अधिक बढ़ जाए कि अपने देश में गृह युध्द की नौबत आ जाए और ये देश खंडित होने के कगार पर पहुँच जाए हम देशवासियों को जागना होगा। सोशल मीडिया पर जो भी व्यक्ति किसी जाति के देवता अथवा महापुरुष के विषय में कोई अभद्र टिप्पणी, लेख अथवा चित्र पोस्ट करे तो उसके बारे में सोशल मीडिया के उस प्लेटफार्म के प्रबंधन समूह को सूचना देकर आपत्ति दर्ज करवाई जाए। यदि ऐसा घृणित कार्य करनेवाला आपके आस-पास ही रहता है तो इस संबंध में निकटवर्ती थाने में लिखित शिकायत दी जाए। यदि आप उससे अपरिचित हैं तो साइबर क्राइम सेल को ई मेल द्वारा इसकी शिकायत भेजी जाए। आपका कोई मित्र घृणा फैलानेवाले ऐसे किसी संदेश को सोशल मीडिया पर शेयर करता है तो उसे प्रेमपूर्वक समझाया जाए। यदि वह आपकी बात नहीं मानता है तो उसे अपनी मित्र मंडली से तड़ीपार कर अपने मित्र समूह को इस संबंध में पोस्ट के माध्यम से बाकायदा सूचित करते हुए जानकारी दी जाए। सोशल मीडिया को निरंतर प्रयोग में लानेवाले अपने मित्रों व संबधियों को दुश्मन देश के षड़यंत्र के बारे में बताया जाए।
ऐसे ही कुछ छोटे-छोटे प्रयासों से हम अपने प्यारे देश भारत की अखंडता व संप्रभुता की रक्षा कर सकते हैं। इस बात को हम हमेशा याद रखें कि हर जाति के लिए उसके देवता व महापुरुष आदरणीय और वंदनीय हैं और हमें कोई अधिकार नहीं है कि हम उनके देवताओं अथवा महापुरुषों के विषय में कुछ भी उल-जलूल लिखकर या फिर इस तरह की बातों को शेयर करके उनकी भावनाओं को ठेस पहुचाएं।

नफरत का ये नाग 
चैन-ओ-अमन को डस जाएगा
तू अब भी न जागा 
तो ये मुल्क़ बंट जाएगा।

याद रखिए यदि हमने इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया तो ये अपना देश कई टुकड़ों में बंट जाएगा और कोई भी देशप्रेमी कभी भी  नहीं चाहेगा कि इस देश का कोई भी हिस्सा इससे अलग हो।
जय हिंद!
वंदे मातरम!
लेखक : सुमित प्रताप सिंह

चित्र गूगल से साभार

रविवार, 1 अक्टूबर 2017

कविता : घर में बुजुर्ग होने का अर्थ


('अंतरराष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक दिवस' पर विशेष कविता)

घर में बुजुर्ग होने का अर्थ है
जीवन की एक विशेष पाठशाला का होना
जिसमें मिल सकते हैं हमको
नित्य नए-नए सबक

घर में बुजुर्ग होने का अर्थ है
तजुर्बों को अपने मस्तिष्क में संजोए हुए
एक तजुर्बेकार व्यक्तित्व की उपस्थिति
जो सिखा सकता है हमें
गलत और सही में सच्चा फर्क

घर में बुजुर्ग होने का अर्थ है
अपनी जिम्मेवारियों को
बखूबी निभा लेने के बाद भी
जिम्मेवारियों का बोझ उठाए हुए
एक बहुत ही खास शख्सियत

घर में बुजुर्ग होने का अर्थ है
अपने हृदय में
स्नेह का सागर भरे हुए
एक प्यारी सी मानव कृति

घर में बुजुर्ग होने का अर्थ है
हमारे परिवार के चारों ओर
एक मजबूत चारदीवारी का होना
जो करती है सुरक्षा
हर असंभावित खतरे से

इसलिए बुजुर्ग आदणीय हैं, वंदनीय हैं
और हमारे घर के अभिन्न अंग हैं
यदि बुजुर्गों का आशीष हमारे संग है
तो फिर इस जीवन में उमंग ही उमंग है।

लेखक : सुमित प्रताप सिंह

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