प्रिय मित्रो
सादर ब्लॉगस्ते!
दोस्तो कभी आपने सोचा है कि पहले चिट्टी किसने लिखी होगी? अगर पता चल जाए तो मुझे भी बताना | अभी हाल के कुछ सालों तक चिट्ठी एक-दूसरे के विचारों के आदान-प्रदान का प्रमुख स्रोत थी | प्रेमी-प्रेमिकाओं के जीवन का तो यह एक अभिन्न भाग थी और उन्होंने डाकिया चचा को देवदूत का पद प्रदान कर रखा था | किन्तु समय ने करवट बदली और चिट्टियों का युग भी बदला और बदल गई डाकिया चचा की किस्मत थी | अब लोगों ने डाकिया चचा को मक्खी मारने का काम सौंपकर इंटरनैट पर चिट्ठियां लिखनी आरंभ कर दी हैं तथा इन चिट्टियों को संबंधित व्यक्ति तक पहुँचाने का जिम्मा भी स्वयं ही संभाल लिया है | मतलब कि खुद ही अंतरजातीय डाकिया बन गये हैं | आज हम मिलने जा रहे है एक ऐसे हिंदी ब्लॉगर से जो इंटरनैट पर चिट्टियाँ लिखने में मस्त रहती हैं | मजे की बात यह है कि इनके ब्लॉग का नाम भी चिट्टी जगत है | सुष्मिता सिंह ने मास कम्यूनिकेशन में एम.फिल किया है और अभी सोपान स्टेप पत्रिका के साथ काम करती हैं, जो हम दिलवालों की दिल्ली से निकलती है और उस दुनिया के बारे में होती है जिसे गाँव कहते हैं | इनके ब्लॉग का नाम है तो चिट्ठीजगत लेकिन वो सिर्फ इनकी नहीं आप और हम सब की चिट्ठी है| चलिए मिलते हैं सुष्मिता सिंह से...
सुमित प्रताप सिंह- नमस्कार सुष्मिता सिंह कैसी हैं आप?
सुष्मिता सिंह- जी मैं ठीक चिट्ठी लिखने में मस्त हूँ
| आप कैसे हैं?
सुमित प्रताप सिंह- हम भी ठीक हैं. कुछ प्रश्न लाया हूँ आपके लिए.
सुष्मिता सिंह- जी पूछिए.
सुमित प्रताप सिंह- आपने अपनी पहली कागजी चिट्ठी कब और किसे लिखी?
सुष्मिता सिंह- जी मैंने पहली चिट्ठी दसवीं कक्षा में अपने दादा जी को लिखी थी|
( दादा जी को या फिर किसी और को? अरे आप क्यों मुस्कुरा रहे हैं?)
सुमित प्रताप सिंह- आपने अंतिम कागजी कब और किसे लिखी?
सुष्मिता सिंह- जी मैंने अंतिम कागजी चिट्ठी करीब तीन साल पर अपने एक भैया को लिखी थी|
( भैया को या फिर? हद हो गई पहले आप मुस्कुरा रहे और अब शर्माने भी लगे...खैर...)
सुमित प्रताप सिंह- आपको ब्लॉग लेखन करने के बारे में कैसे सूझा?
सुष्मिता सिंह- ब्लॉग के बारे में सुना था कि ये कोई बला है तो मैंने इसके बारे में और दिलचस्पी दिखाई और मेरा एम. फिल. का विषय ही न्यू मीडिया और ब्लॉगिंग बना इसलिए ब्लॉग लेखन और नए पुराने ब्लॉग, ब्लोगरों के बारे में जानना भी मुझे अच्छा लगने लगा | जब मैंने ब्लॉग के बारे में जाना तो लिखना भी सूझ गया | जब लिखना सूझ ही गया तो अब लिखते रहते हैं| अब ये न पूछियेगा कि क्या लिखते हैं | थोडा हमारे ब्लॉग की सैर भी कर लीजिए |
सुमित प्रताप सिंह- आपकी पहली रचना कब और कैसे रची गई?
सुष्मिता सिंह- रचना वो भी पहली ये तो ठीक है लेकिन कहाँ ये नहीं पूछा आपने| मैं फिर भी बता देती हूँ| स्कूल की मैगज़ीन में विदाई नाम से एक कविता छपी थी जब स्कूल से हमारी विदाई होने वाली थी | तब लिखने का शौक नहीं बल्कि दोस्तों से विदाई के गम में कविता बन गई | और ब्लॉग पर पहली रचना मेरी न हो कर मेरे दोस्त की आठवी में पढने वाली छोटी बहन की एक कविता थी जो मेरे ब्लॉग पर आई | वह कविता एक भिखारी पर लिखी गई थी | उसके बाद जब मेरी रचना मेरे ब्लॉग पर आई तो आज तक आ ही रही है | पहली तो आ गई आखिरी का पता नहीं...
सुमित प्रताप सिंह- आप लिखती क्यों हैं?
सुष्मिता सिंह- लिखते क्यों है, ये क्या बात हुई | अब हम लिखते क्यों है ये बता कर लिखेंगे क्या? अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हमें भी है | हमारे मन के विचारों को साकार रूप देने के लिए| कभी अपने लिए कभी आपके लिए | अभिव्यक्ति के लिए | लिखेंगे हमेशा लिखेंगे | ब्लॉग पर और भी लिखेंगे | आप को कमेन्ट करना है तो करें, मैं भी करुँगी | आप भी लिखे हम भी लिखे| सब लिखे पढ़े और आगे बढ़ें |
सुमित प्रताप सिंह- लेखन में आपकी प्रिय विधा कौन सी है?
सुष्मिता सिंह-- अब विधा कौन सी बताऊ | जिस विधा में हमारी लेखनी फिट बैठ जाये वही प्रिय है | विधाता ने इतनी विधाएँ बनाई है किसका किसका नाम ले | कभी कवि, कभी लेखक तो कभी शायर बनने का भी मन करता है पर शायरी आती कहाँ हमें | अगर ब्लॉग की बात करे तो आज हर विधा में ब्लॉग मौजूद है बशर्ते आप क्या पढ़ना पसंद करेंगे | और लेखन को किसी विधा में बाँटना जरुरी तो नहीं |
(ये लो जी हमने तो विधा पूछी थी सुष्मिता ने प्रवचन ही दे डाला| राम-राम जपो...)
सुमित प्रताप सिंह- अपनी रचनाओं से समाज को क्या सन्देश देना चाहती हैं?
सुष्मिता सिंह- हमारी रचनाओं से समाज को क्या सन्देश मिला ये तो समाज बेहतर बता पायेगा (तो आप क्या बाएंगिन?) हम तो सिर्फ लिखने का काम करते हैं | अगर समाज का आइना बनते है हमारे लेख तो कुछ देखते ही होंगे समाज में रहने वाले इस आईने में | सन्देश तो हर वो चिट्ठी देती है जो पढ़ते ही याद दिलाती है वो यादे जो कही खो गई हैं दुनियादारी में |
(लो फिर प्रवचन शुरू... अब श्याम-श्याम जपो...)
सुमित प्रताप सिंह- एक अंतिम प्रश्न "ब्लॉग पर हिंदी लेखन और हिंदी की प्रगति में युवाओं का योगदान" इस विषय पर आप कुछ विचार रखेंगी?
सुष्मिता सिंह- 55 युवा आबादी है भारत की | युवा शक्ति से तो सभी वाकिफ होंगे ही | जहां इनकी चाह होगी वहां राह बना ही लेते हैं | युवा मूवी तो याद है ना | जहाँ तक ब्लॉग की बात है यह एक तरह से सिटिज़न पत्रकारिता का भी एक रूप है | जब युवा भारत अपनी सशक्त अभिव्यक्ति के लिए तैयार है तो ब्लॉग उनका साथ कैसे छोड़ सकता है | बस एक माध्यम चाहिये आगाज के लिए अंजाम तक तो खुद ब खुद पहुँच जाते हैं ईश्वर के दूत | स्वागत है युवा ब्लोगरों का...कदम कदम बढ़ाये जा...
( सुष्मिता सिंह का मन चिट्ठी लिखते-लिखते शायद गीत गाने का कर रहा था सो उन्हें यूँ गुनगुनाते और निरंतर चिट्ठी लिखते रहने की शुभकामनाएँ देते हुए राह पकड़ी अपने डगर की )
( सुष्मिता सिंह का मन चिट्ठी लिखते-लिखते शायद गीत गाने का कर रहा था सो उन्हें यूँ गुनगुनाते और निरंतर चिट्ठी लिखते रहने की शुभकामनाएँ देते हुए राह पकड़ी अपने डगर की )
सुष्मिता सिंह की चिट्ठियाँ पढ़नी हों तो पधारें http://chitthijagat.blogspot.in/ पर...
10 टिप्पणियां:
सुष्मिता जी से मिलना अच्छा लगा ... अगर मैं गलत नहीं हूँ तो शायद इनसे एक मुलाकात अविनाश जी के घर पर भी हुयी थी !
अब शिव शिव जपो
भला शिव जी भी
कभी गलत हो सकते हैं
Hमारा घर तो है ही
हिंदी चिट्ठाकारों का अड्डा.
आपके माध्यम से एक प्रश्न के विविध आयाम प्रभावित करते हैं ... अच्छा लगा सुष्मिता जी से मिलना
☺☺☺
सुमित जी और आप सभी चिट्ठाकारों को सबसे पहले धन्यवाद् कहना कहूंगी उसके बाद आप की दुवाए भी लेना चाहूँगी .....शिवम् जी आप सही कह रहे हैं हम एक बार मिल चुके है अन्ना जी के घर पर...अच्छा है किसी को तो याद है हम ....
सुष्मिता जी से मिलकर अच्छा लगा।
सुष्मिता जी से मिलना अच्छा लगा..
सुष्मिता सिंह जी से मलकर अच्छा लगा |पोस्ट भी अच्छी लगी |मेरी नई पोस्ट पर स्वागत है|
सुष्मिता सिंह के बारे में जानकर अच्छा लगा.सुंदर साक्षात्कार .....
सुष्मिता जी से साक्षात तो पहले ही मिल चुका हूँ ...उन्होंने तो मेरे दिल्ली वाले कार्यक्रम की रिपोर्टिंग भी की थी ...आज उनके बारे में विस्तार से जानकार अच्छा लगा, बधाईयाँ !
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