मंगलवार, 31 मई 2022

नेपाल में हिंदी की पताका फहरातीं सुमी लोहनी


      सुमी लोहनी काठमांडू, नेपाल के भाटभेटनी क्षेत्र में निवास करते हुए पिछले कई वर्षों से लेखन के क्षेत्र में सक्रिय हैं। कविता, कहानी, नाटक, हाइकू, हास्य व्यंग्य, लेख, जीवनी व संस्मरण इत्यादि विधाओं में उनकी लेखनी निरंतर चल रही है। लेखन के साथ-साथ वह अनुवाद व संपादन में भी रत हैं। उनकी अब तक कुल 12 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। नेपाली भाषा में प्रकाशित होने वाली साहित्यिक मासिक पत्रिका शब्द संयोजन व ऑनलाइन पत्रिका दीपश्री उनके संपादन में कई वर्षों से फलफूल रही हैं। इस समय सुमी लोहनी ऑस्ट्रेलिया प्रवास पर हैं। हमने उनके व्यस्त समय में कुछ क्षण लेकर कुछ प्रश्नों के माध्यम से उनकी लेखन यात्रा के विषय में जानने का लघु प्रयास किया है।

आपको लेखन का रोग कब और कैसे लगा?

सुमी लोहनी - मेरा बचपन मेरे ननिहाल में बीता। परिवार में मेरे बुजुर्ग नाना-नानी और मैं ही थे । मेरे साथ बातें करने व हँसने-बोलने के लिए कोई नहीं था । मुझे बहुत अकेलापन अनुभव होता था । उसी अकेलेपन ने मेरी पुस्तकों से दोस्ती करवा दी । ननिहाल में पढ़ने का या यूँ कहें कि साहित्यिक माहौल बिलकुल भी नहीं था। पर मुझे तो अपने नये दोस्तों यानि कि पुस्तकों से प्यार हो गया था । पुस्तक, समाचारपत्र या जो कुछ भी मुझे पढ़ने को मिलता था, मैं पढ़ती थी । अक्सर मैं छिपकर ही पढ़ा करती । मेरे नाना-नानी मुझे पुस्तकें पढ़ते देखते तो बहुत गुस्सा करते थे । मेरे द्वारा कोर्स की पुस्तकों के अलावा दूसरी कोई पुस्तक पढ़ना उन्हें पसन्द नहीं था । पर क्या करती मुझे तो साहित्य को पढ़े बिना चैन ही नहीं मिलता था। वे दोनों जितना मना करते, मुझे उतनी ही अधिक पढ़ने की इच्छा होती थी । सो छिपकर ही पढ़ती थी । इस तरह मुझे पढ़ने की लत लग गई । जब पढ़नेकी लत लगी तो लिखने का भी मन हुआ । फिर मेरे मन में जो आता, उसे मैं लिखने लगी। शायद आरंभिक दिनों के मेरे लेखन को  साहित्यिक लेखन नहीं कहा जा सकता पर लेखन का आरंभ तो कह ही सकते है । चिप-छिप कर लिखते-लिखते कब साहित्यिक लेखन की शुरुआत हो गई पता ही नहीं चला।  इस तरह अनजाने में ही साहित्यिक राह पर मेरे कदम चल पड़े। इस तरह लिखने का ये लाइलाज रोग उम्र भर के लिए मुझे लग गया।  

लेखन से आप पर कौन सा अच्छा अथवा बुरा प्रभाव पड़ा?

 सुमी लोहनी - मुझे नहीं लगता कि मेरे लेखन से मुझपर कुछ भी बुरा प्रभाव पडा हो । मुझ जैसी अन्तर्मुखी महिला के लिए लेखन से अच्छी बात और हो भी क्या सकती है।

 क्या आपको लगता है कि लेखन समाज में कुछ बदलाव ला सकता है?

सुमी लोहनी - हाँ, निसंदेह मुझे लगता है कि लेखन समाज में बदलाव ला सकता है ।

आपकी सबसे प्रिय रचना कौन सी है और क्यों?

सुमी लोहनी - जैसे माँ के लिए सभी सन्तानें प्रिय होती हैं, उसी प्रकार मुझे भी अपनी सभी रचनाएं प्रिय हैं। किसी एक को अधिक प्रिय बताकर मैं बाकी रचनाओं के साथ नाइंसाफी नहीं कर सकती । हाँ पाठकों को मेरी किसी भी रचना को गुण-दोष के आधार पर अच्छा या बुरा कहने का पूर्ण अधिकार है।

बुधवार, 4 मई 2022

नारियों की अनछुई दास्तां है हर स्टोरी

"आत्मा के सौंदर्य का शब्द रूप है काव्य,

मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य।"

कवि गोपालदास नीरज की उक्त पंक्तियों को चरितार्थ करते हुए काव्य परिवार में एक नए सदस्य का आगमन हुआ है और उस सदस्य का नाम है सुश्री नेहा बंसल। साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित अंग्रेजी कविताओं के संग्रह 'हर स्टोरी' के माध्यम से कवयित्री नेहा बंसल पाठकों के लिए उन नारियों की कहानियाँ लेकर आयीं हैं, जिनके बारे में समाज ने लिखना उचित नहीं समझा और यदि लिखा भी है तो उसे नगण्य की श्रेणी में ही रखा जाएगा। द्रोपदी, हिडिम्बी, अहिल्या, सूर्पनखा, मंदोदरी, रेणुका, यशोदा व उर्मिला जैसे ऐतिहासिक पात्रों के साथ-साथ कवयित्री ने नारी जीवन से जुड़े प्रत्येक विषय पर अपनी कलम चलायी है। वह विषय चाहे अपने स्वार्थ के लिए नारी को डायन घोषित कर मार डालने वाले समाज का हो, या वासना से अभिभूत सिरफिरों द्वारा तेजाब फेंककर किसी मासूम लड़की का चेहरा जलाकर उसका जीवन बर्बाद कर देने की घृणित मानसिकता हो या फिर नारी के शोषण के लिए अपनायी जाने वालीं सामाजिक कुरीतियों का वर्णन हो। कवयित्री ने प्रत्येक विषय को बड़े ही संवेदनशील व मार्मिक ढंग से अपने इस कविता संग्रह में उठाया है। नारी से संबंधित छोटे-बड़े विषयों को जिस गहराई व संवेदनशीलता से कवयित्री ने उस संग्रह में संकलित अपनी 39 कविताओं द्वारा प्रस्तुत किया है वह प्रशंसनीय हैं। हिडिम्बी पर केंद्रित कविता के साथ-साथ इस कविता संग्रह की कुछ अन्य कविताएं तो इतनी मार्मिक हैं, कि उन्हें पढ़कर पाठक का हृदय संवेदना से भर उठता है। प्रशासनिक सेवा में रहते हुए भी कवयित्री का संवेदनशील लेखन पाठकों को इस बात के प्रति आश्वस्त करता है, कि कवयित्री लेखन के साथ-साथ प्रशासनिक सेवा का संवहन करते हुए समाज की बेहतरी में निश्चित रूप से अपना भरपूर योगदान देंगीं। इसलिए मुझे आशा के साथ-साथ पूर्ण विश्वास है, कि सरस्वती कुल के सभी सम्मानित सदस्यगण एवं गंभीर पाठकगण कवयित्री के इस प्रथम प्रयास के लिए उनका हृदय खोलकर स्वागत करेंगे तथा साथ ही ये कामना करेंगे कि कवयित्री नेहा बंसल एक न एक दिन लेखन के आकाश में ध्रुव तारा बनकर  चमकें। एवमस्तु!

पुस्तक - हर स्टोरी

लेखिका - नेहा बंसल, नई दिल्ली

प्रकाशक - साहित्य अकादमी, दिल्ली

पृष्ठ - 78

मूल्य - 100 रुपये

समीक्षक - सुमित प्रताप सिंह, नई दिल्ली

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