चर्चित युवा व्यंग्यकार सुमित प्रताप सिंह की छठी पुस्तक ‘ये दिल सेल्फ़ियाना’ जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है पाठकों को खुद की ओर खींचने को मजबूर करती है। सुमित हर बार नया टाॅपिक, नया मुद्दा और नई लेखन शैली लेकर पाठकों के सामने आते हैं। हर बार किताब में नयापन और सोचने को मजबूर देने वाला बोध होता है। निरंतर लेखन और अभ्यास से उनकी शैली और मजबूत हुई है। उनकी खासियत है कि वे जिस टाॅपिक को उठाते हैं, पहले उसके में गंभीरता से पढ़ते हैं, फिर उसका विश्लेषण करते हैं, इसके बाद नई शैली में लिखते हैं। इस कारण आलोचक किताब पढ़ने के बाद ‘नो कमेंट’ की स्थिति में हो जाते हैं। जो गंभीरता उनके लेखन में दिखती है वही गंभीरता वे अन्य लेखकों में भी चाहते हैं। इस बार सुमित का ये व्यंग्य संग्रह पहले ही व्यंग्य 'म्हारे गुटखेबाज किसी पिकासो से कम न हैं' से ही बांध लेता है। ये अपने आप में जबर्दस्त व्यंग्य है। इस पर विमोचन समारोह में वरिष्ठ साहित्यकार पद्यश्री नरेंद्र कोहली जी ने श्रेष्ठ व्यंग्य होने की मोहर लगा दी है। पढ़ते-पढ़ते कब पूरी किताब कब खत्म हो जाती है, पता ही नहीं चलता। इस बार उन्होंने इस बीच उठे सभी मुद्दों पर अपनी व्यंग्य की लाठी से करारा प्रहार किया है। मुद्दे समसामयिक होने के बावजूद कालजयी हो गए हैं। इस किताब में सुमित ने किस्सागोई का भी जबर्दस्त प्रयोग किया है। जो बताता है कि उनके जीवन में व्यंग्य किस कदर छाया हुआ है। रेल में चढ़ते-उतरते और सोते हुए जो उन्हें मजेदार अनुभव हुए और परिकल्पना बनी, उसे उन्होंने 'मेरी खर्राटों भरी यात्रा' नामक व्यंग्य में प्रस्तुत किया है। हालांकि उन्होंने हर मुद्दों पर गहरे और कड़े व्यंग्य किए हैं। फिर भी हास्य अपनी जरूरत के हिसाब से निखर कर आया है। ये अच्छे व्यंग्य की निशानी है। पाठकों के लिए ये किताब सुमित का नायाब तोहफा है।
पुस्तक का नाम - ये दिल सेल्फ़ियाना
लेखक - सुमित प्रताप सिंह
प्रकाशक - सी.पी. हाउस, दिल्ली
प्रकाशन वर्ष - 2018
पृष्ठ संख्या - 128
मूल्य - 160 रुपए
समीक्षक - गौरव त्रिपाठी
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