मंगलवार, 28 अगस्त 2018

व्यंग्यात्मक तेवर झलकाती सहिष्णुता की खोज


    कानून व्यवस्था से सीधा जुड़ा कोई व्यक्ति जब लेखन में उतरता है और वह भी व्यंग्य लेखन में तो उसकी रचनाओं पर कुछ कहने लिखने से पहले इस बात की तारीफ तो अनिवार्य हो जाती है कि वह लिखने में सन्नद्ध हुआ। यानि उसका अपना पक्ष है और वह इसे खुलकर अभिव्यक्त करना चाहता है। सुमित प्रताप सिंह के व्यंग्य संग्रह 'सहिष्णुता की खोज' इस मायने में ध्यान आकर्षित करती है कि क्या राजनीतिक चालों-कुचालों से प्रेरित व्यंग्य प्रवृतियों पर कोई सार्थक बहस की गुंजाइश संभव है जो दो धुर विरोधी विचार धाराओं की पोषक संरक्षक अवधारणा का महज मायाजाल है और अपने-अपने पक्ष में तर्क और कुतर्कों का अंबार खड़ा करता है। इस संग्रह के भी कुछ लेख इसी एकांगिता या एक पक्षीय दृष्टिकोण का शिकार हुए हैं। लेकिन यह व्यंग्य की ताकत और असीम ऊर्जा है कि व्यंग्यकार विचलन के कुछेक क्षणों के बावजूद अपने व्यापक वैचारिक उद्देलन का साथ नहीं छोड़ता और जल्द ही अपनी पुख्ता जमीन पर काबिज होता है।
इस पुस्तक में 'सहिष्णुता की खोज', 'एक पत्र आमिर खान के नाम',  'काश! हम भी सम्मान लौटा पाते' जैसे लेख थोड़ी असुविधा पैदा करते हैं। लेकिन साथ ही 'विकास गया तेल लेने' 'अगले जन्म मोहे ठुल्ला ही कीजो',  'अस्वच्छ मन बनाम स्वच्छता अभियान'  'हम पापी पुलिस वाले' जैसे सम्यक दृष्टिकोण से जनतंत्र की सच्ची अपेक्षाओं को संवेदनात्मक लय से विश्लेषित करते हुए बड़ी हद तक आश्वस्त करते हैं।
सुमित इस संग्रह के कुछ लेखों में कल्पित पात्रों जिले-नफे की समाज शैली का अत्यंत रोचक इस्तेमाल करते हैं  जहाँ चयनित विषयों को परत दर परत खोलते हुए प्रभावोत्पादक परिणाम तक ले जाते हैं।  'सच्ची श्रद्धांजलि', 'सुनो हे जनप्रतिनिधि', 'एनकाउंटर' लेख इसके बेहतर उदाहरण हैं। ऐसा नहीं है कि संग्रह के लेखक अपनी पेशेवर प्रवृत्ति के कायल ही रहे हों, लेकिन इस तथ्य से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि पेशे का व्यक्तित्व पर स्वाभाविक प्रभाव पड़ता है और एक हद तक लेखन का उससे पूरी तरह मुक्त हो पाना कठिन होता है। प्रत्येक समस्या या विषयों को कानूनी पहलू या तथाकथित स्वीकृति की यंत्रवत दुहाई न देकर उसे व्यापक नैतिक दृष्टिकोण से विश्लेषित करके अनछुए पहलुओं को उद्घाटित किया जा सकता है जहाँ कहीं भी सुमित इस एकांगिता व सीमितता से मुक्त हुए हैं और वे कुछेक विचारणाओं को छोड़कर अधिकांशतः इससे मुक्ति में सफल भी हुए हैं और वहीं वेअपने दृष्टिकोण से अपेक्षित व्यंग्यात्मक तेवर झलकाने में सफल भी हुए हैं।
पुस्तक : सहिष्णुता की 
लेखक : सुमित प्रताप सिंह
प्रकाशक : सी. पी. हाउस, दिल्ली - 110081
मूल्य : 160/- 
पृष्ठ : 119
समीक्षक : श्री राजेन्द्र सहगल, दिल्ली
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