शनिवार, 29 जुलाई 2023

अंतराष्ट्रीय कवि का त्यागपत्र


     वि लिक्खड़ लाल ने अचानक अपने सोशल मीडिया के बायोडाटा में स्वयं को राष्ट्रीय से अंतराष्ट्रीय कवि अपडेट कर दिया। उनके अंतराष्ट्रीय कवि के रूप में अपडेट होते ही उनके चेलों ने अपने गुरु की प्रशंसा के पुल बाँधते हुए सोशल मीडिया पर पोस्टों की बाढ़ ला दी। अब कवि लिक्खड़ लाल के चेले भी राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय कवि बनने के दिवास्वप्न देखने लगे। कवि लिक्खड़ लाल का कविता की चेरी तुकबंदी के संग सफर दो-चार साल पहले ही शुरू हुआ था। उन्होंने तुकबंदी को ही कविता माना और स्वयं को तुकबंद के बजाय कवि। जहाँ उनकी आयु के साथी नौकरी पेशा होकर अपने बाल-बच्चों पढ़ा-लिखा कर सक्षम बनाने के लिए संघर्षरत थे, वहीं लिक्खड़ लाल ने मलूकदास कवि के अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम। दास मलूका कह गए सबके दाता राम।। नामक दोहे को गाँठ बाँध कर उसी का अनुसरण करने की भीष्म प्रतिज्ञा कर चुके थे। उनके बुजुर्ग माँ-बाप ने उन्हें अनगिनत बार गरियाया और उनकी पत्नी ने उन्हें सुबह-शाम, दिन-रात ताने दे-देकर समझाने की भरकश कोशिश की, लेकिन उनके कान पर जूं नहीं रेंगा। आखिरकार एक दिन थकहार कर उनकी पत्नी ने घर का चूल्हा ठंडा न होने के लिए प्राइवेट नौकरी पकड़ ली। अब बेचारी पत्नी घर और नौकरी की चक्की में दिन-रात पिसती रहती और कवि लिक्खड़ लाल तुकबंदियों के झूले में आनंद से झूला झूलते रहते। अपने आस-पास के लोगों को अपनी तुकबंदियों से धराशाही करने के बाद एक दिन उनका पदार्पण सोशल मीडिया पर हो गया। दरअसल उनके शहर में रहने वाले उनकी तुकबंदियों से दुखी जीवों ने अपने-अपने मस्तिष्क और कानों को उनकी तुकबंदियों के अत्याचार से बचाने के लिए एक दिन चंदा करके एक एंड्राइड फोन ख़रीदा और एक तकनीक बुध्दि से दक्ष युवा ने उस फोन का सदुपयोग कर कवि लिक्खड़ लाल का एक सोशल मीडिया अकाउंट बनाया और उन्हें सोशल मीडिया पर उनकी तुकबंदियों की पताका फहराने के लिए छोड़ दिया। सोशल मीडिया पर कुछ दिन अपनी तुकबंदियों के साथ चहलकदमी करने के बाद उन्होंने स्वयं को राष्ट्रीय कवि घोषित कर दिया। धीमे-धीमे कवि लिक्खड़ लाल को सोशल मीडिया पर ऐसे-ऐसे लिक्खड़ों से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, जिन्होंने बिना-बात के निरंतर लिखकर और अपने लिखे को नियमित रूप से पुस्तक के रूप में छपवा कर जाने कितने हरे-भरे पेड़ों की हत्या करने का पुण्य अर्जित किया था। उन लिक्खड़ों में कुछ कवि लिक्खड़ लाल के गुरु बने तो कुछ ने उनकी शिष्यता स्वीकार कर ली। अब सभी लिक्खड़ मिलकर सोशल मीडिया पर कविता का नाम देकर तुकबंदियों को पेलते रहते, जिसे देखकर बेचारी कविता मन मसोसकर सुबकते हुए आँसू बहाती रहती। धीमे-धीमे कवि लिक्खड़ लाल ने विदेश में बसे लिक्खड़ों से संपर्क स्थापित कर लिया। कुछ वर्षों की ऑनलाइन चमचागीरी के फलस्वरूप एक दिन विदेश में बसे कवि महालिक्खड़ लाल के निमंत्रण पर कवि लिक्खड़ लाल ने वैश्विक ऑनलाइन काव्य गोष्ठी में विश्व भर के चुने हुए लिक्खड़ों के बीच अपनी तुकबंदियों को सुना-सुना कर सोशल मीडिया पर भूचाल ला दिया। इस ऑनलाइन काव्य गोष्ठी के बाद कवि लिक्खड़ लाल ने स्वयं को राष्ट्रीय से अंतराष्ट्रीय कवि के रूप में अपडेट कर दिया। उनके राष्ट्रीय से अंतराष्ट्रीय कवि होने की बात उनके पड़ोसी शहर में रहने वाले दूसरे लिक्खड़ कवि से बर्दाश्त न हुई और उसने लिक्खड़ लाल के अंतराष्ट्रीय कवि होने पर तंज कस दिया। उस तंज से कवि लिक्खड़ लाल ने तुकबंदी कर एक कथित कविता को रचा और पड़ोसी शहर के लिक्खड़ कवि को टैग करके सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया। कवि लिक्खड़ लाल के चेलों ने उस पोस्ट पर कमेंट के रूप में माँ-बहन के सम्मान को समर्पित एक से बढ़कर एक गालियों की लाइन लगा दी। अपने सुसंस्कृत चेलों के संस्कारपूर्ण कमेंटों पर लव रिएक्शन देते हुए कवि लिक्खड़ लाल गौरवान्वित होने लगे। तभी उन्हें स्वयं को किसी पोस्ट में टैग होने की नोटिफिकेशन मिली। जब टैग की गयी पोस्ट पर जाकर उन्होंने देखा तो उनके होश उड़ गए। वो पोस्ट उनके प्रतिद्वंदी लिक्खड़ कवि थी। उस पोस्ट में वह अपने पहलवान साथियों के साथ लाइव होकर कवि लिक्खड़ लाल का तिया-पाँचा करने की धमकी देते हुए उनके घर की ओर प्रस्थान कर चुका था। ये देखते ही कवि लिक्खड़ लाल की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गयी। उन्होंने आनन्-फानन में अंतराष्ट्रीय कवि की पदवी को त्यागने की घोषणा करते हुए एक पत्र लिखा और उसे पडोसी शहर के लिक्खड़ कवि को क्षमा याचना के साथ टैग कर अपने सोशल मीडिया अकॉउंट पर पोस्ट कर दिया और अपने शहर से तड़ीपार हो गए। पड़ोसी शहर के लिक्खड़ कवि ने कवि लिक्खड़ लाल के त्यागपत्र को सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया। आजकल पड़ोसी शहर का लिक्खड़ कवि अंतराष्ट्रीय कवि की पदवी धारण कर चुका है। कवि लिक्खड़ लाल के चेलों ने भी अपनी निष्ठा का मुख पड़ोसी शहर के लिक्खड़ कवि की ओर मोड़ कर उसकी शिष्यता ग्रहण कर ली है। ये सब देखकर कवि लिक्खड़ लाल अपने फर्जी सोशल मीडिया अकाउंट पर बैठे-बैठे आँसू बहाते रहते हैं और उनकी तुकबंदियाँ उनकी फिरकी लेती रहती हैं।

लेखक: सुमित प्रताप सिंह

रविवार, 23 जुलाई 2023

पबजी वाला प्यार


      मय के साथ-साथ प्यार करने के अंदाज ने भी काफी प्रगति कर ली है। अब पेड़ों के इर्द-गिर्द घूमते हुए प्यार का इजहार करने वाला दौर नहीं रहा और न ही अब अपने प्यार को जताने के लिए सालों-साल तक अपने प्रेमी या प्रेमिका के गली-मोहल्ले या कूचे में भटकते रहने का समय रहा। अब तो पबजी वाले प्यार का ज़माना आ गया है। पबजी पर ऑनलाइन खेल खेलते हुए कब खेल-खेल में प्यार हो जाए पता ही नहीं चल पाता है। प्यार भी ऐसा होता है कि उसकी बाधा बनने वाली देश की सीमाएं भी तोड़ दी जाती हैं। हालांकि पुराने वाले प्यार की तरह पबजी वाला प्यार भी जाति, धर्म या समुदाय को स्वीकार नहीं करता, लेकिन इस नए-नवेले प्यार के रुप ने प्यार के लिए हर उल्टा-सीधा उपाय आजमाने की नीति अपनाई है। इश्क़ और जंग में सब जायज़ है मुहावरे को सही मायने में चरितार्थ इस पबजी वाले प्यार ने ही किया है।
     कई साल पहले एक फिल्म आई थी जिसमें नायक अपनी प्रेमिका को वापिस अपने देश में लाने के लिए पड़ोसी देश में जाकर प्यार के दुश्मनों से भिड़ जाता है और यहां तक कि गुस्से में उनका हैंडपंप तक उखाड़ डालता है। इधर मामला दूसरे टाइप का है। पबजी वाले प्यार में किसी से भिड़ने के बजाय खेल-खेल में बड़ा लंबा खेल खेलते हुए ऑफलाइन प्रेमी को दुलत्ती जड़कर और उसका सबकुछ बेचकर ऑनलाइन प्रेमी से प्यार की पींगें बढ़ाने के लिए रफूचक्कर हो प्रेमिका द्वारा पड़ोसी देश में अपने प्रेमी के यहां पहुंचने का शातिर खेल खेला जाता है। इस शातिर खेल को देखकर पड़ोसी देश का मीडिया और जन परेशान नहीं होते, बल्कि इसमें अपना गौरव और जीत का अनुभव करते हैं। मजे की बात ये है कि कुछ साल पहले जिस देश में पबजी खेल को प्रतिबंधित कर दिया गया था, उस देश में पबजी वाला प्यार कुलांचें भर रहा है। 
    देश का मीडिया अपने टीआरपी वाले प्यार में डूबकर मदहोश हो पबजी वाले प्यार की गाथा सुबह-शाम, दिन-रात सुना-सुना कर देश की जनता का भेजा खाली कर डालता है। सोशल मीडिया पर लिखाड़ू वीर पबजी वाले प्यार के पक्ष-विपक्ष में धड़ाधड़ लेख लिखकर सोशल मीडिया की कमर तोड़ने के लिए कमर कस लेते हैं। कोई इस पबजी वाले प्यार को देश की जीत मानता है तो कोई धर्म या समुदाय की। इस जीत के उत्सव में पूरा देश प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से डूब जाता है। इस बीच इस देश की सीमा एक पल को पबजी वाले प्यार की प्रेमिका की धूर्तता और चतुराई की सीमा को देखती है और दूसरे पल को देशवासियों की मूर्खता की सीमा को।

रविवार, 16 जुलाई 2023

अंतर्वस्त्र की व्यथा


     न दिनों पतियों का अंतर्वस्त्र कच्छा भयभीत व व्यथित है। उसका भयभीत व व्यथित होना उचित है। अभी हाल ही में एक प्रगतिशील नारी ने शब्दों की बुरी तरह धुनाई कर एक कथित कविता बना कर उसे रील प्रेमी नवनृत्यांगनाओं के बीच सोशल मीडिया पर मटकने के लिए छोड़ दिया। अब वह कथित कविता विवश हो सोशल मीडिया पर मटक रही है और लाइक-डिसलाइक व अच्छी-बुरी प्रतिक्रियाओं को विवश हो गटक रही है। भयभीत व व्यथित कच्छा उसकी ऐसी स्थिति देखकर पसीना-पसीना हो रखा है। उसे इस बात का भय है कि इस कविता से कहीं ऐसी स्थिति उत्पन्न न हो जाए कि उसका आस्तित्व ही समाप्त हो जाए। कच्छा जहाँ एक ओर भयभीत है वहीं पतियों से अप्रसन्न भी है। उसकी अप्रसन्नता इस बात से है कि पतियों ने स्वयं की इच्छाओं को तिलांजलि देकर परिवार की इच्छाओं और आवश्यकताओं को सर्वोपरि रखा। स्वयं का कच्छा निरंतर घिस-घिस कर अदृश्य होने की ओर अग्रसर रहा, किन्तु उसकी चिंता छोड़ अपने बाल-बच्चों और पत्नियों के अंतर्वस्त्रों व बहिर्वस्त्रों में कोई कमी न होने दी। कलियुग ने पूरे विश्व के हृदय में परिवर्तन कर दिया, किन्तु इस पति नामक जीव के हृदय ने जाने क्यों सौगंध खा रखी है, कि भैया हम न बदलने वाले। हम तो हर युग में जैसे थे की स्थिति में ही रहेंगे। पतियों की इस जैसे थे की स्थिति से कच्छे का तन-मन सुलग उठता है। कच्छे ने अपना आस्तित्व बचाने के लिए पतियों का माइंड वाश करने का प्रयास किया था, कि पति तो बहुत व्यस्त प्राणी होता है और वह जितना समय अपना कच्छा धोने में व्यय करेगा उतने समय में तो वह अपने परिवार की आवश्यकता की किसी न किसी वस्तु की व्यवस्था कर लेगा। हालाँकि ये कच्छे की अपने-आपको बचाने की एक चाल भर थी। वास्तव में कच्छे को धोते समय पति लोग अनावश्यक बल का प्रयोग करते थे, जिसके परिणामस्वरुप उसकी पसलियाँ क्षत-विक्षत हो जाती थीं। इसके अतिरिक्त पति महोदय कच्छे को धोते समय वाशिंग पाउडर और साबुन की इतनी तगड़ी डोज दे देते थे, कि कच्छे का अंग-प्रत्यंग वाशिंग पाउडर और साबुन से भर उठता था। चाहे जितना भी पानी में उसे निकालो पर वाशिंग पाउडर और साबुन के अंश उसमें जमे रहते थे। जिसका परिणाम ये मिलता था कि कच्छे के शरीर में बुरी तरह खुजली उठती थी और कच्छे को खुजली की थोड़ी मात्रा पतियों को भी समर्पित करनी पड़ती थी। फलस्वरूप पति बेचारे दिन-रात कच्छे द्वारा घेरे गए अंग को खुजाते रहते और अपने निर्दयी नाखूनों से कच्छे में छोटे-मोटे छेदों की अभिवृद्धि कर देते थे। वे छोटे-मोटे छेद ही आगे चलकर बड़े छेदों का रूप धरकर कच्छे के आस्तित्व को समाप्त कर डालते। कच्छे द्वारा माइंड वाश किए जाने के पश्चात् उसे धोने का भार पत्नियों पर आ गया। अब कच्छा अत्यंत प्रसन्न था। पत्नियां अपने नर्म व कोमल हाथों से और उचित मात्रा में वाशिंग पाउडर व साबुन का प्रयोग कर कच्छे को धोने लगीं। अब न तो उसकी पसलियां दुखती थीं और न ही उसका सामना खुजली से होता था। कुल मिला कर उसका अच्छा-खासा जीवन चल रहा था, किन्तु उसके ऊपर बनी कथित कविता ने उसके आस्तित्व को अचानक संकट में डाल दिया। अब कच्छा शांत हो उस कविता से समाज में उत्पन्न होने वाली प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा कर रहा है। देखें कि पत्नियों के नर्म व कोमल हाथों से उसके आस्तित्व की रक्षा हो पाती है या फिर उसके भाग्य में पतियों के हाथों पटक-पटक कर और खुजलाते हुए समाप्त होना ही लिखा है।

लेखक : सुमित प्रताप सिंह

रविवार, 9 जुलाई 2023

बेवफाई के वक्तव्य का संशोधन

     ट्रेन से उतर कर प्लेटफार्म पर चलते हुए गला सूखने लगा तो वहीं दुकान से एक पानी की बोतल खरीद ली। फिर रेलवे स्टेशन के प्रतीक्षालय में  पहुंच कर अपने गले को पानी से तर किया और दुकानदार द्वारा लौटाए गए रुपयों को क्रम से लगा कर जेब में रखने लगा। तभी अचानक मेरा ध्यान एक दस रूपए के नोट पर गया तो उस पर सोनम गुप्ता बेवफा है लिखा पाया। ऐसा नोट मेरे पास दूसरी बार आया था। जब मुझे ऐसा पहला नोट मिला था तब पहली बार मेरा सामना सोनम गुप्ता की बेवफाई से हुआ था। हो सकता है कि ये शरारत किसी  कथित प्रेमी की हो जो अपने एक तरफ़ा प्रेम को  ठुकराए जाने का बदला सोनम गुप्ता नामक किसी मासूम लड़की से ले रहा हो। ऐसा भी हो सकता है कि किसी सोनम गुप्ता ने किसी मासूम छोकरे की प्रेम कहानी को बेवफाई की कटार से छील डाला हो। इसी उधेड़-बुन में डूबा हुआ था कि रेलवे स्टेशन के प्रतीक्षालय में लगे टेलीविज़न पर एक व्यक्ति रोते हुए दिखायी दिया। समाचार था कि उस बेचारे ने पाई-पाई जोड़कर अपनी पत्नी को पढ़ाया-लिखाया, लेकिन उस पढ़ाई-लिखाई का फल ये मिला कि उसकी पत्नी क्लास वन अफसर बन गयी और जब उस बेचारे का गर्व से सीना फुला कर जश्न मनाने का समय आया, तब उसे अपनी अफसर पत्नी की बेवफाई का मातम मनाना पड़ रहा है। हालाँकि ये पहला मामला नहीं है जब किसी पति ने अपनी पत्नी के लिए अपना सबकुछ लुटा दिया और बदले में पत्नी की बेवफाई ही नसीब हुई। ऐसे अनेक मामले समाज में समय-समय पर आते रहते हैं। हालाँकि बेवफाई का मैडल केवल स्त्रियां ही नहीं जीततीं, इस मामले में पुरुष भी उनके तगड़े प्रतिस्पर्द्धी हैं। गाँव में जाने कितनी पत्नियां इस आस में अपना जीवन काट देतीं हैं, कि पढ़-लिख कर महानगर में नौकरी करने गया उनका पति एक दिन आएगा और उनके सारे सपनों को साकार करेगा। लेकिन उन बेचारी पत्नियों के सपनों को अपने स्वार्थ की भट्टी में झोंक कर उनके पढ़े-लिखे पति महानगरों में अपनी दूसरी सुंदर-सलोनी पत्नियों के पल्लुओं में खोये हुए बेवफाई का नया अध्याय लिख रहे होते हैं। रेलवे स्टेशन से निकल कर मैंने घर जाने के लिए ऑटो रिक्शा पकड़ा। ऑटो रिक्शा में सफर करते हुए कुछ सोच कर मैंने उस नोट पर लिखे वक्तव्य सोनम गुप्ता बेवफा है को संशोधित कर सिर्फ सोनम गुप्ता ही बेवफा नहीं है लिख दिया और ऑटो रिक्शा से उतर कर उस दस रूपये के नोट को अन्य नोटों के साथ ऑटो रिक्शा वाले के हवाले कर दिया। मैं घर में घुस ही रहा था, कि तभी अचानक एक बड़ी सी कार मेरे बगल में आकर रुकी। उसमें से हमारी कॉलोनी में सब्जी की रेहड़ी लगाने वाला संतोष उतरा और उतर कर मुझसे राम-राम किया। 

मैं उससे बोला - राम-राम संतोष, और सुनाओ कैसे हो?

संतोष ने बड़े ही संतोष के साथ उत्तर दिया - बाबू जी, राम जी की कृपा से बहुत अच्छे हैं।

अचानक मुझे शरारत सूझी और मैंने उससे पूछा - अरे भाई, तुम अपनी पत्नी को सिविल सर्विस की तैयारी करवा रहे थे। उसका कुछ परिणाम निकला?

संतोष के चेहरे पर अब संतोष के साथ मुस्कान भी आ गयी - हाँ बाबू जी, परिणाम बहुत शानदार निकला। श्रीमती जी, कलेक्टर बन गयीं हैं।

मैं प्रसन्न हो बोला - अरे वाह! ये तो बहुत अच्छा समाचार है। अच्छा ये बताओ कि अब तुम क्या कर रहे हो?

संतोष ने बताया - श्रीमती जी ने कलेक्टर बनने के बाद कपड़ों का एक शानदार शोरूम खुलवा दिया। और कभी सब्जी की  रेहड़ी लगाने वाला ये संतोष आज एक अच्छा-खासा बिजनेसमैन बन चुका है।

इतने सारे नकारात्मक समाचारों के बीच इस सुखद समाचार को सुनकर मन प्रफुल्लित हो उठा। मैंने ये सोच कर पीछे मुड़कर ऑटो रिक्शा वाले को देखा कि उसको दिए दस रुपए के नोट पर लिखे बेवफाई के वक्तव्य को फिर से संशोधित किए जाने की आवश्यकता है। पर वह ऑटो वाला जा चुका था। मैंने संतोष को  जलपान के लिए अपने घर में आमंत्रित किया, लेकिन उसने बताया उसके एक और कपड़ों के शोरूम का शहर के एक जाने-माने मॉल में उद्घाटन होना है। उसने किसी और दिन फुर्सत में आकर मिलने का वादा किया और राम-राम कर वहां से चला गया। घर के भीतर घुसते हुए अनायास जेब में हाथ गया तो वहां बीस रुपए का एक  मुड़ा हुआ नोट मिला। उसे खोल कर देखा तो उसमें भी सोनम गुप्ता की बेवफाई उपस्थित मिली। मैंने घर में घुसकर अपना बैग रखा और बाकी काम छोड़कर बीस रुपए के उस नोट में लिखे बेवफाई के वक्तव्य को संशोधित करने में जुट गया।

लेखक: सुमित प्रताप सिंह

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