शुक्रवार, 9 जुलाई 2021

कविता : उपक्रम


प्रिये, इन दिनों मैं

शब्दों को बचाने के 

उपक्रम में लगा हूँ

इसलिए यदि मैं 

मितभाषी रहूँ 

अथवा मौन का 

अनुसरण करता मिलूँ

तो तुम चिंतित मत होना 

क्योंकि मेरा ये उपक्रम 

भविष्य में हम दोनों के लिए 

सुखकारी साबित होगा

जब सबकी तिजोरियों में 

शब्दों का अकाल पड़ जाएगा

तब हमारी तिजोरी 

शब्दों के खजाने से 

भरी पड़ी होगी 

और फिर हम उस खजाने से

समय-समय पर शब्दों को 

निकाल कर खर्च करते हुए 

अपने प्रेम की कथा को 

संपूर्णता प्रदान कर रहे होंगे।

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