शनिवार, 23 दिसंबर 2017

व्यंग्य : शकी नफे का यकीनी शक


- भाई नफे!

- हाँ बोल भाई जिले!

- आज कैसे शकी अंदाज में बैठा हुआ है?

- अरे नहीं भाई ऐसा कुछ नहीं है। तू बिना बात में शक कर रहा है।

- शक नहीं है बल्कि यकीन के साथ कह रहा हूँ कुछ न कुछ बात है जिसे तू छिपा रहा है।

- भाई कोई खास बात नहीं है।

- तो जो भी बात है उसे कह डाल।

- भाई दरअसल आज मैं नेहरू प्लेस गया था। वहाँ पेन ड्राइव और मोबाइल पावर बैंक लेने के बाद जीभ में पानी आया तो मोमो खाने लगा। वहीं एक बूढ़ी अम्मा मोमो की दुकान पर खड़े मोमो प्रेमियों से रुपये माँगने लगीं।

- तो तूने उन्हें रुपये दिए?

- बिलकुल नहीं दिए। मैं भिक्षावृत्ति के सख्त खिलाफ हूँ।

- तूने बिलकुल ठीक किया। ये भिखारी लोग भीख के सहारे जीने के आदी हो गए हैं। विदेशी पर्यटकों के आगे तो ये हमारी ऐसी बेइज्जती कराते हैं कि पूछ मत। इन्हें देखकर विदेशी भी शक करने लगते हैं कि कहीं भारत इनका ही तो देश नहीं है।

- हाँ भाई ये बात तो है। पर तुझे नहीं लगता कि इसमें हम भारतीयों की भी गलती है।

- वो कैसे?

- कोई भी भिखारी भीख माँगने पास नहीं कि हम दानवीर कर्ण की भूमिका में आकर बिना ये जाने कि वाकई में वो इंसान जरूरतमंद है भी कि नहीं उसे भीख के रूप में रुपया-पैसा अर्पण कर डालते हैं।

- ठीक कहा भाई! और इसी कारण कामचोर और निठल्ले लोगों के लिए भीख माँगने का धंधा सबसे आसान और उपयुक्त लगता है। अब तो बाकायदा भीख माँगने वाले गिरोह सक्रिय हैं जो छोटे-छोटे बच्चों से जबरन भीख मँगवाते हैं।

- हाँ भाई और ये सब जानते हुए लोग उन भिखारियों को भीख देकर कथित पुण्य की प्राप्ति के लिए लालायित रहते हैं। खैर छोड़ अब तू ये बता कि आगे क्या हुआ?

- मैंने उन बूढ़ी अम्मा से पूछा कि उन्हें रुपये किसलिए चाहिये तो वो बोलीं कि उन्हें भूख लगी है।

- फिर तूने क्या किया?

- मैंने उनसे कहा कि मैं उन्हें भोजन करवाऊंगा पर रुपये नहीं दूँगा।

- तो अम्मा इस बात पर राजी हुयीं?

- पहले तो वो रुपये देने के लिए ही मिन्नत करती रहीं, फिर थक-हारकर भोजन करने को राजी हो गयीं।

- अच्छा फिर तूने उन्हें क्या खिलाया?

- मैं एक दुकान से फ्राइड राइस लेकर आया और उनको खाने के लिए दिए।

- और फिर अम्मा ने फ्राइड राइस से अपने भूखे पेट को भरा।

- नहीं अम्मा ने उनको खाने से साफ इंकार कर दिया।

- वो क्यों भला?

- वो शक करते हुए कहने लगीं कि उनमें माँस मिला हुआ है और मैं उनका धर्म नष्ट करने पर तुला हुआ हूँ।

- ये तो  हद हो गयी। अम्मा तो बड़ी शकी निकलीं। पर तुझे समझाना तो था कि जैसा वो सोच  रही थीं वैसा कुछ नहीं था क्योंकि तू भी उस हिन्दू धर्म का अनुयायी है जो अन्य कथित धर्मों की भाँति किसी धर्म, पंथ अथवा संप्रदाय का अनादर अथवा उसकी भावनाओं से खिलवाड़ नहीं करता।

- भाई समझाया और एक बार नहीं बल्कि कई बार समझाया, पर वो नहीं मानी।

- फिर फ्राइड राइस का क्या हुआ?

- फ्राइड राइस को वहीं भटक रहे एक गरीब बच्चे रफ़ीक़ ने चटखारे लेते हुए खाया।



- और अम्मा का क्या रहा?

- अम्मा मुझे कोसते हुए और मेरे शक को मजबूती प्रदान करते हुए आगे बढ़ गयीं।

- मैं कुछ समझा नहीं भाई।

- भाई बूढ़ी अम्मा ने खुद को भूख से तड़पती हुयी  दुखियारी महिला बताया था, जबकि मुझे शक था कि वो प्रोफेशनल भिखारिन हैं। और जब वो मुझे छोड़कर एक दूसरे व्यक्ति से रुपये देने के लिए गिड़गिड़ायीं तो मेरा शक यकीन में बदल गया।

- मतलब कि तेरा शक ठीक निकला। पर तेरे शक ने एक गरीब बच्चे को एक वक्त का भोजन नसीब करवा दिया।

- हाँ भाई और इस बहाने जाने-अनजाने मुझसे हुए मेरे पाप भी धुल गए।

- हा हा हा भाई तू भी पक्का शकी है। अब अपनी नेकनीयती पर भी शक करने लगा।

- क्या करूँ भाई आदत से मजबूर जो ठहरा।

लेखक - सुमित प्रताप सिंह, नई दिल्ली



रविवार, 17 दिसंबर 2017

संस्मरण : जेल की रोटी संग कविताई


- भाई नफे!

- हाँ बोल भाई जिले!

- आज यूँ पेट पर हाथ फेरते हुए कहाँ से आ रहा है?

- भाई आज जेल की रोटी खाकर आ रहा हूँ।

- जेल की रोटी खाकर! भला तेरे जैसे शरीफ इंसान ने कौन सा अपराध कर दिया जो जेल की रोटी खानी पड़ गयी?

- कवि सम्मेलन में जाने का अपराध।

- भाई मैं कुछ समझा नहीं।

- अरे भाई आज तिहाड़ जेल में कवि सम्मेलन था।

- अच्छा तो ये बात थी।

- हाँ भाई दिल्ली पुलिस के युवा रचनाकार मनीष मधुकर व पीसमेकर पत्रिका वाले संतोष कुमार सरस के संयोजन में तिहाड़ जेल में हास्य कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया था। दिल्ली पुलिस के एक युवा रचनाकार के मधुर निमंत्रण पर दिल्ली पुलिस के दूसरे युवा रचनाकार वहाँ पहुँचे और उनके साथ मैं भी जा धमका।

- दूसरे रचनाकार बोले तो अपने कलमकार मित्र सुमित के तड़के वाले सुमित प्रताप सिंह।

- बिलकुल ठीक पहचाना भाई।

- अच्छा तो अब ये बता कि वहाँ क्या-क्या हुआ?

- तिहाड़ जेल नंबर 1 के गेट नंबर 3 के बाहर मनीष मधुकर व संतोष कुमार सरस पूरी कवि मंडली के संग हमारी प्रतीक्षा करते हुए मिले। सभी साथियों के आ जुटने के बाद गहन तलाशी के बाद हमारा जेल के भीतर प्रवेश हुआ। जेल के भीतर सुपरिटेंडेंट सुभाष चन्दर साहब ने अपने कार्यालय में हम सभी का गर्मजोशी के साथ स्वागत किया।

- अच्छा फिर क्या हुआ।

- फिर सुमित प्रताप सिंह ने सावधान होकर सुपरिटेंडेंट साहब को अपनी पुस्तक सावधान! पुलिस मंच पर है भेंट की जिसे पाकर सुपरिटेंडेंट साहब ने उसे तिहाड़ जेल की लाइब्रेरी में रखने की घोषणा कर डाली।


- अरे वाह ये तो अच्छी खबर है। अब तिहाड़ के कैदी भी इस पुस्तक के साथ सावधान हुआ करेंगे। अच्छा फिर आगे क्या हुआ।

- फिर सुपरिटेंडेंट साहब ने हमारी पूरी मंडली को जेल की सैर करवाई।

- अच्छा तो वहाँ क्या-क्या देखने को मिला?

- जैसा हम जेल के बारे में सुनते हैं उससे अलग वहाँ का जीवन दिखाई दिया।

- कैसा जीवन भाई?

- व्यस्त जीवन, मस्त जीवन।

- वो कैसे?

- तिहाड़ जेल प्रशासन ने जेल के कैदियों के जो व्यवस्था कर रखी है उससे साक्षात्कार हुआ। कैदियों को शिक्षा प्रदान करनेवाली क्लास में हम गए। वहाँ हमें देखने को मिला कि कैदियों को उर्दू, हिंदी व अंग्रेजी भाषाएं पढ़ाई जा रही थीं। गणित की क्लास में कैदी गुणा, भाग, जमा व घटा से नूरा-कुश्ती करते मिले। जहाँ कंप्यूटर की क्लास में कंप्यूटर द्वारा उन्हें तकनीकी का ज्ञान दिया जा रहा था, वहीं ई कॉमर्स और मैनेजमेंट की एडवांस क्लासें कैदियों को जेल से बाहर निकलने के बाद के सुनहरे भविष्य के सपने दिखा रही थीं।

- अरे वाह कैदियों की शिक्षित करने की जेल में भरपूर व्यवस्था हो रखी है।

- हाँ भाई शिक्षित करने के साथ-साथ सक्षम और आत्मनिर्भर बनाने की भी व्यवस्था है।

- वो कैसे भाई?

- जेल में कैदियों द्वारा खुद साग-सब्जी व फलों को उगाया जाता है। जेल की मशीनों व कलपुर्जों को जहाँ ठीक करने की व्यवस्था है, वहीं कूलर-पंखों की मोटर, कूलर पंप व बल्ब निर्माण करने के बाद उन्हें जेल से बाहर बिक्री के लिए सप्लाई भी किया जाता है।

- मतलब कि जेल आत्मनिर्भर बनते हुए अपने बाशिंदों को सक्षम भी बना रही है।

- हाँ बिलकुल ठीक पहचाना। जेल में सिलाई-कढ़ाई, चित्रकारी इत्यादि सबकुछ सिखाया जाता है और इसके लिए जेल प्रबंधन साधुवाद का पात्र है।

- हाँ भाई बिलकुल साधुवाद का पात्र है। अच्छा फिर कवि सम्मेलन कब हुआ?

- जेल भ्रमण के बाद सुपरिटेंडेंट साहब ने हमें जेल की रोटी खाने के लिए आमंत्रित किया।

- तो जेल की रोटी कैसी लगी?

- बहुत बढ़िया लगी। रोटी के साथ पनीर और मिक्स वेजिटेबल का आनंद लिया, दाल-भात, सलाद और करारे पापड़ का मजा लूटा और अंत में मूँग की दाल के स्वादिष्ट हलवे से मुँह मीठा किया।

- भाई तूने तो मेरे मुँह में पानी ला दिया। अच्छा भोजन के बाद कवि सम्मेलन शुरू हुआ?


- हाँ भाई खा-पीकर फुल होने के बाद कवि सम्मेलन का शुभारंभ हुआ। ऊर्जावान मनीष मधुकर व युवा एंकर सोनम छाबड़ा के संचालन में कवि सम्मेलन ने गति पकड़ी। युवा रचनाकार अभिराज पंकज, अमित शर्मा, दिनेश सैनी, सुमित प्रताप सिंह, पंकज शर्मा, बेबाक जौनपुरी, प्रीति तिवारी, अमिता एवं मनीष मधुकर तथा वरिष्ठ कवि गजेंद्र सोलंकी व कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ. अशोक वर्मा ने अपने-अपने अंदाज में श्रोताओं का मनोरंजन किया।


- मतलब कि माँ सरस्वती की संतानों ने जेल में उस दिन को कैदियों के लिए यादगार बना दिया।

- हाँ भाई वो दिन जेलवालों के साथ-साथ माँ सरस्वती की संतानों के लिए भी यादगार रहेगा।


- तो अगली बार जेलयात्रा पर कब जा रहा है?

- देखो फिर कब जेल की रोटी खाना भाग्य में नसीब होता है?

- मैं दुआ करूँगा कि तुझे ये सौभाग्य जल्दी मिले और तेरे साथ मैं भी जेल में रोटी के साथ कविताई का आनंद उठाऊँ।

- आमीन!

लेखक - सुमित प्रताप सिंह


मंगलवार, 12 दिसंबर 2017

संस्मरण : मेरी घड़ी गुरु


    कहावत है कि 'समय बड़ा बलवान होता है' और समय की गणना विभिन्न कालों में विभिन्न माध्यमों से की जाती रही है। जब मैं गाँव में था तो बड़े बुजुर्ग सूरज, चाँद और तारों को देखकर समय बता देते थे। फिर एक दिन मैं शहर आ गया। यहाँ फ्लैटों के भीतर बंद संसार में कब सवेरा होता है और कब रात होती है पता ही नहीं चलता। इसलिए यहाँ समय को जानने के लिए घड़ी का सहारा लिया जाता है। घड़ी से याद आया कि गाँव में पाँचवी की परीक्षा अधूरी छोड़कर जब मैं शहर में पढ़ने आया तो मुझे घड़ी में समय देखना नहीं आता था। मैं उत्सुकता से दीवार घड़ी को देखा करता था और उसमें टिक-टिक की ध्वनि करके निरंतर भागती हुईं सुइयों को देखकर सोचा करता था कि ये ससुरा समय भला देखा कैसे जाता है?
इस कठिन घड़ी में मेरी बहिन होनी, जिसका नाम तो हनी रखा गया था पर उसके कुछ दिन गाँव में रहने की सज़ा गाँववालों द्वारा उसका नाम हनी से होनी बिगाड़कर दी गयी थी, ने मेरा साथ निभाया। वह दिल्ली में ही जन्मी थी और कुछ दिनों गाँव में रहने का सुख लेने व हनी से होनी बनने की हानि झेलने के बाद से उसकी शिक्षा-दीक्षा इस महानगर में ही हो रही थी। एक दिन उसने मुझे समझाया कि घड़ी में समय देखना तो उसे भी नहीं आता पर उसकी टीचर मैडम ने सिखाया था कि घड़ी की कौन सी सुई किस काम आती है। उसने घंटे, मिनट व सेकंड की सुइयों के विषय में विस्तार से बताया और उनसे समय जानने की प्रक्रिया समझायी। मैंने अपने मस्तिष्क पर ज़ोर डाला और शाम तक घड़ी में समय देखना सीख गया। इस प्रकार मैं अपनी बहिन हनी को अपना घड़ी गुरु मानता हूँ। अब ये और बात है कि मेरी घड़ी गुरु घड़ी में समय देखना मेरे बहुत दिनों बाद सीख पायी।

लेखक : सुमित प्रताप सिंह 

सोमवार, 4 दिसंबर 2017

हास्य व्यंग्य : मेरी खर्राटों भरी रेलयात्रा


     ससुराल की सेवा और मेवा का सुख लेने के बाद मैं सपत्नीक अपने मायके के लिये रवाना हो लिया। कहीं जीजा जी दीदी संग रेलवे स्टेशन से वापस न लौट आयें इस डर से साले रेलवे स्टेशन तक हमें छोड़ने हमारे साथ ही आये। रेलवे स्टेशन पहुँचकर हम ये सोचते हुये भागे-भागे रेलवे प्लेटफार्म पर गये कि कहीं हमारी ट्रेन समय से पहले पहुँचकर हमारी प्रतीक्षा करने का दुःख न झेल रही हो, लेकिन ये हमारी एक बहुत ही हसीन भूल थी। हमारी ट्रेन पूरे ढाई घंटे लेट थी। बहरहाल हम सरकार के स्वच्छता मिशन को जीभ चिढ़ाते इटावा स्टेशन के प्रतीक्षालय में बेहाल हो अपनी ट्रेन की प्रतीक्षा में लगे रहे। हमारी ट्रेन लेट पर लेट होकर हमारे सब्र का इम्तिहान लिये जा रही थी। खैर रेलवे विभाग की कर्मठता  और सक्षमता के फलस्वरूप साढ़े पाँच घंटे की कड़ी परीक्षा लेने के बाद सुबह 3.45 बजे जाकर ऊँचाहार एक्सप्रेस, जिसका नामकरण परेशान होकर मैंने नीचाहार एक्सप्रेस कर दिया था, में चढ़ने का सौभाग्य मिल पाया। पहले तो डिब्बे के अटेंडेंट को ढूँढने में काफी परिश्रम करना पड़ा, आखिरकार टी.टी. के बताए हुए ठिकाने पर जाकर अटेंडेंट को झकझोर कर जगाया और उससे सीट पर बिछाने के लिए चादरें माँगी तथा जितना जल्दी हो सका सीट पर चादर बिछाकर सोने की कोशिश करने लगा। मैंने देखा कि थकान होने के कारण पत्नी सो चुकी थी और मैं पूरे दिन की थकान होने के बावजूद अपने बगलवाली सीट पर पसरे इंसान के जोरदार खर्राटों से बेहाल हो जागने को विवश होता हुआ गहरी नींद में डूबने के स्वप्न देख रहा था। मैंने उसके खर्राटे बंद करने के लिये उसका कंबल कई खींचा, ताकि वो गहरी नींद से बाहर आ अपने खर्राटों पर पूर्ण विराम लगाये, लेकिन मेरी इस आशा पर उसने खर्राटे मारते रहकर फुल स्टॉप लगा दिया। अब मैंने पानी की बोतल उसके ऊपर फेंकने का दुस्साहसी विचार किया, लेकिन उस विचार को कुछ सोचकर अमल में नहीं लाया और जोर-जोर से कंबल खींचने की प्रक्रिया ही जारी रखी। पर वो इंसान शायद कुम्भकर्ण की पीढ़ी से था, सो उसे कुछ भी असर न हुआ और उसके घनघोर खर्राटे लगातार चालू रहे। मैंने अनुभव किया कि वो शायद कोई बुज़ुर्ग आदमी है, जो अधिक थकान होने के कारण खर्राटे युक्त होकर सो रहा था। मैं दुःखी हो करवट बदलते हुए सोच रहा था कि जाने किस मनहूस घड़ी में दुगुना दाम चुकाकर उस कथित सुविधासंपन्न ऊँचाहार एक्सप्रेस का तत्काल टिकट लेने की महान भूल की थी। मैं लेटे-लेटे ट्विटर पर ट्वीट क्रिया करते हुये प्रार्थना करने लगा कि हे प्रभु इस खर्राटेवाले दैत्य को कुछ देर के लिए कुम्भकर्णी मुद्रा से निकाल बाहर करो ताकि निंद्रा मेरे नैनों में एंट्री मार सके। फिर अचानक मुझे याद आया कि प्रभु तो इस्तीफा दे चुके थे सो मैंने उनके उत्तराधिकारी का स्मरण करना आरंभ कर दिया। जाने वो प्रार्थना का प्रभाव था या फिर मेरे कंबल खींचने का फल जो उसके खर्राटे अचानक बंद हो गये। मैंने इस मौके का फायदा उठाया और झट से नींद के आगोश में खो गया। एक-दो घंटे की नींद  खींचने के बाद किसी बच्चे की आवाज से मेरी आँख खुल गई। आँख खुलते ही सामने की सीट पर खर्राटे लेकर नींद का सत्यानाश करनेवाले इंसान को देखने का सौभाग्य हासिल किया। ये एक महिला थी जो अपने बतोले बेटे के ढेर सारे जवाब देने में मस्त थी। मैं मन ही मन उसकी खर्राटा शक्ति को नमन करते हुये शुक्र मनाने लगा कि अच्छा हुआ जो रात को मैंने उस महिला के ऊपर बोतल फैंककर नहीं मारी वर्ना आई.पी.सी. की छेड़छाड़ की धारा 354 मुझसे गले मिल रही होती।

लेखक : सुमित प्रताप सिंह

कार्टून गूगल से साभार


Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...