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मंगलवार, 17 जनवरी 2012

उड़न तश्तरी में उड़ते समीर लाल




प्रिय मित्रो

सादर ब्लॉगस्ते!

इंसान की शुरू से ही दूसरे के घर में ताक-झाँक करने की आदत रही है. जब हमने विज्ञान में प्रगति की तो हमारी पृथ्वी के वैज्ञानिक अपने ग्रह को छोड़ दूसरे ग्रहों में ताक-झाँक करने लगे. "तुम डाल-डाल हम पात-पात" की कहावत को चरितार्थ करते हुए दूसरे ग्रहों के वासी, जिन्हें हम एलियन कहते हैं, भी समय-समय पर अपनी-अपनी उड़न तश्तरी में सवार हो हमारी पृथ्वी पर ताक-झाँक करने आते रहते हैं. एक दिन ऐसे ही एक उड़न तश्तरी धरती पर उतरी, तो उस समय वहाँ दो हिंदी ब्लॉगर टहल रहे थे. उड़नतश्तरी से कुछ एलियन धरती की जाँच-पड़ताल करने निकले, तो इन दोनों ब्लॉगरों ने उन्हें नींद की दवा डालकर बनाया हुआ सूजी का हलवा खिला दिया. जब बेचारे एलियन नींद में मस्त हो धरती पर आराम फरमाने लगे, तो ये दोनों ब्लॉगर उड़न तश्तरी पर सवार हो पूरी दुनिया की सैर करने लगे. उनमें से एक ब्लॉगर उड़न तश्तरी में उड़ते-उड़ते जब बोर हो गये, तो नीचे उतर नुक्कड़ पर बैठकर पंचायत करने लगे. दूसरे ब्लॉगर अब तक उड़न तश्तरी पर सवार हो इधर से उधर घूम रहे हैं. जी हाँ हम बात कर रहे हैं उड़न तश्तरी वाले समीर लाल जी की .

समीर लाल जी पैदायशी रतलामी हैं. बचपन और जवानी का बड़ा हिस्सा गुजरा जबलपुर में, सी. ए. हुए मुंबई से, फिल्मों में न जाकर लौट गये जबलपुर और प्रेक्टिस करते रहे जबलपुर में, खूब जुड़े राजनीति से और फिर अब १२ साल पहले चले गए कनाडा में तो तकनीकी सलाहकार बने बैठे हैं बैंक में और लिख रहे हैं कहानी और कविता अपने ब्लॉग "उड़न तश्तरी" पर.परिवार के फ्रंट पर एक निरीह प्राणी बोले तो एक जिम्मेदार पति हैं, पिता हैं दो जवान लड़कों के, ससुर हैं दो प्यारी सी बहुओं के और अब दादा भी हो गए हैं अपने पोते आर्यव के आने के साथ. आज उनसे मिलने का बहुत मन किया तो उन्हें जैसे ही याद किया तो कुछ पलों में ही वह अपनी उड़न तश्तरी के साथ वह मेरे अंगना में उतर आये.

सुमित प्रताप सिंह- समीर लाल जी नमस्कार! कैसे हैं आप?

समीर लाल- नमस्कार सुमित प्रताप सिंह जी! मैं तो एक दम फिट हूँ. और आप सुनायें?

सुमित प्रताप सिंह- जी मैं भी बिलकुल फिट हूँ. किन्तु समीर लाल जी आज आप थके-थके कैसे लग रहे हैं?

समीर लाल(हैरान हो)- थका-थका ?(वह अपना लैपटॉप निकाल कर एक नई पोस्ट पढ़ते हैं और उस पर झट से कमेन्ट कर देते हैं. ) अब बताइए कि अब भी थका-थका लग रहा हूँ.

सुमित प्रताप सिंह- जी नहीं बिलकुल तरोताजा लेकिन एक बात तो बताइए कि आपका कमेन्ट लगभग हर ब्लॉग पर मिल जाता है कहीं आप औरों की तरह बिना पढ़े ही तो कमेन्ट नहीं दे आते है?

समीर लाल- ऐसा कुछ नहीं हैं, मैं पूरी पोस्ट पढ़ता हूँ, यदि रचना अच्छी लगे तभी कमेन्ट देता हूँ. (उनकी इस बात को सुन दिल को तसल्ली मिली, क्योंकि मेरी लगभग प्रत्येक रचना पर उनका कमेन्ट मिलता है. यानि मैं भी अच्छा लिखता हूँ.)

सुमित प्रताप सिंह- समीर लाल जी कुछ प्रश्न पूछने की इच्छा है आपसे.

समीर लाल- तो पूछिए सरकार.

सुमित प्रताप सिंह- आपको ये ब्लॉग लेखन की बीमारी कब, कैसे और क्यों लगी?

समीर लाल- मेहमान और बीमारी बताकर आये तो क्या आये. बस लग गई साहब. वायरल टाईप है, जो दिख भर जाये तो लग जाती है. कंप्यूटर पर कविताबाजी तो २००५ से ही ई कविता ग्रुप पर कर रहे थे और वहीं कुछ लोगों को देखकर यह बीमारी लगा बैठे- लाईलाज- कोई वेक्सीन नहीं. कुछ लगाव तो कवि और लेखक होने के नाते छपास से था ही- बस, इसने और हवा दे दी.

सुमित प्रताप सिंह- आपने अपने ब्लॉग का नाम "उड़न तश्तरी" ही क्यों रखा? कहीं इसके पीछे पायलट न बन पाने की दबी इच्छा अथवा दुःख तो नहीं?

समीर लाल- पायलट तो खैर अगर बनते तो किसी एयर होस्टेस के चक्कर में ही बनते वरना काया के हिसाब से परीक्षा में शून्य ही मिलता और हवाई जहाज भी शायद ही जमीन से हिलता. बस, नामकरण करना था. भारत से दूर थे. फट से पहुँच पाने की इच्छा भले ही विचारों के माध्यम से लेखन की लगाम थामे और रख लिया नाम उड़न तश्तरी. लोग पसंद करने लगे और हालत यह हुई कि शुद्ध पाठक यानि जो मुझे व्यक्तिगत रुप से नहीं जानते (व्यक्तिगत जानने वाले तो बेचारे मजबूरी में भी पढ़ते हैं) अक्सर पत्र में ऊड़न जी या आदरणीय तश्तरी जी लिखकर भी संबोधित करते नजर आते हैं.
(जी कर रहा है कि मैं भी हैलीकॉप्टर या रोकेट नाम से ब्लॉग शुरू कर दूँ लेकिन फिर मेरे सुमित के तड़के कैसे लगेंगे?)
यूँ मुस्कराने के लिए तो, दुनिया मुस्कराती है
मगर हाय तेरी ये अदा, जान ही निकल जाती है....
सुमित प्रताप सिंह- आपकी पहली रचना कब और कैसे रची गई?

समीर लाल- पूत के पाँव पालने में दिखे तो नहीं थे मगर झाँके जरुर थे, जब मेरे स्कूल की पत्रिका में मेरी एक रचना छपी. ५ या ६ क्लास में रहा हूँगा. फिर परसाई जी के हाथों से उस रचना के लिए पुरुस्कृत भी किया गया. हाल वही कि सम्मानित हुए और लिखना बन्द. सभी बड़े साहित्यकारों सा हाल अपना पहली रचना में ही हो गया. फिर सन २००५ में कलम थामी तो अब तक चली जा रही है. कोई रुकवाना चाहे तो करे ठीक से सम्मानित श्रीफल देकर और शॉल बाँटकर, बंद हो जायेगा अपना लिखना भी.

सुमित प्रताप सिंह-आप लिखते क्यों हैं?

समीर लाल- इस प्रश्न से वह कवि याद आया जो मंच से रचना सुनाकर अपनी ६-७ डायरी संभाले उतर रहा था तो एक श्रोता ने आकर पूछा कि महोदय इतनी डायरियाँ देखकर मेरे मन में एक प्रश्न आ रहा है.

कवि तो यूँ भी अपने आपको डेढ़ होशियार समझते हैं तो कवि महोदय ने कहा कि मैं समझ गया- "तुम पूछना चाहते कि मैं इतना कैसे लिख लेता हूँ?"

श्रोता ने कहा कि नहीं जनाब, मैं पूतो छना चाहता था कि आप इतना लिखते क्यूँ हैं?

अब आप बताओ कि क्या अब भी मेरे जबाब की जरुरत है या फिर आप खुद समझ लोगे? वैसे लिखता हूँ मन की बात कहने को, सुनाने को, लोगों से जुड़ने को, कुछ बदलने को बस और क्या?

सुमित प्रताप सिंह- लेखन में आपकी प्रिय विधा कौन सी है?

समीर लाल- यूँ तो छंद मुक्तकवितायें और व्यंग्य मुझे सबसे प्रिय हैं मगर हाथ-पैर सब जगह अटकाये हैं. जो जिसे चाहे उम्मीद रहती है कि हर तरह का पाठक जुड़े. यही संख्या शायद कभी नाम दिला जाये. वैसे तो उसके लिए अलग तरह की तिकड़म भिड़ानी होती है मगर उस हेतु अभी समय की कमी और केन्द्र बिन्दु से दूरी की अधिकता बाधक बनी हुई है.

सुमित प्रताप सिंह- अपनी रचनाओं से समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं?

समीर लाल- मैने बुजुर्गों की स्थितियों पर लिखा है, अराजकता, भ्रष्टाचार, गरीबी, राजननीति से लेकर हर वह बात जो मुझे कचोट जाती है, उस पर लिखता हूँ, विधा कोई भी अपनाऊँ. बिना आवाज उठाये कुछ नहीं बदलता यही सोच रहती है. आवाज कितनी भी हल्की हो, उठनी जरुर चाहिये. एक चिंगारी ही तो है जो आग में बदलती है. हाँ हर चिंगारी आग बने यह जरुरी नहीं किन्तु हर आग के लिए एक चिंगारी जरुरी है. समाज और सभी से कहता हूँ, निवेदन करता हूँ कि कुछ बदलना चाहते हो तो चुप मत बैठो, कदम बढ़ाओ. लिखो, बोलो, कुछ तो करो. चिंगारी भी नहीं उठाओगे तो आग की आशा करना बेकार है.

सुमित प्रताप सिंह- एक अंतिम प्रश्न. "ब्लॉग पर हिंदी लेखन और इसका भविष्य" इस विषय पर आप अपने कुछ विचार रखेंगे?

समीर लाल- एक तीव्र गति से विकास प्रक्रिया जारी है. देश की तरह मात्र घोषणा नहीं, सच में. हाँ, इधर कुछ एग्रीगेटर्स के बंद हो जाने से पुराने ब्लॉगर्स में भ्रम की स्थिति बन रही है, कि ब्लॉग की संख्या में कमी आ रही है. मगर इस आयाम का अंदाजा पूर्व में ही लगाया जा चुका था कि एक निश्चित संख्या के बाद एग्रीगेटर अपनी क्षमताओं के चलते काम के नहीं रह जायेंगे, लोग उन पर आश्रित नहीं रहेंगे और अंग्रेजी ब्लोग्स की तरह से ही यहाँ भी लोग फीड बर्नर और अन्य माध्यमों से लोगों के ब्लॉग अवलोकन करेंगे. मैं हिन्दी ब्लॉगिंग के भविष्य को लेकर आशान्वित हूँ और उत्साहित भी. हिन्दी ब्लॉगिंग का भविष्य उज्जवल है और इसमें अनेक संभावनायें है. संपूर्ण ब्लॉगजगत को मेरी शुभकामनाएँ.

(मैंने उनके नाश्ते के लिए सूजी का हलवा बनवाया था, किन्तु जैसे ही मैं सूजी का हलवा लेकर अपने अंगना में पहुँचा, समीर लाल जी अपनी उड़न तश्तरी के साथ गायब मिले. कहीं उन्हें कुछ ग़लतफ़हमी तो नहीं हो गयी थी?)

समीर लाल जी की उड़न तश्तरी में घूमना हो तो पधारें http://udantashtari.blogspot.com/ पर...

29 टिप्‍पणियां:

  1. समीर लाल जी ... वाकई एक ताजा झोंका . थकान बिल्कुल नहीं और नहीं बिना पढ़े कमेन्ट ... कुछ लोग इस श्रेणी में आ ही नहीं सकते . प्रश्न भी अच्छे , उत्तर चेहरे की मुस्कान

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  2. एलियन मिलियन में एक
    मिलियन से अधिक मुझे
    मालूम नहीं है
    फिर पता नहीं
    तुक भी बैठती
    या खड़ी ही रह जाती
    अरे वही, तुक
    और पता नहीं
    मजा दे भी पाती
    या सारा मजा
    खुद ही लूट कर ले जाती।

    वैसे एक राज खोल रहा हूं
    मैं एलियन से किसी
    न मिलियन से डरता हूं
    डरता हूं सिर्फ धक्‍के से
    जो उड़नतश्‍तरी से मुझे
    दिया गया था
    अब अगर कोई प्रेम से दे
    तो अविनाश कैसे न ले
    समीर की जरूरत सभी को
    गर्मियों में समीर के ठंडे
    धक्‍के सब चाहते हैं
    सर्दियों में वही
    सांस लेने और जीवन
    कायम रखने के काम आते हैं
    और सचमुच यम से बचाते हैं

    खाकर धक्‍का मैं रह गया था हक्‍का बक्‍का
    पर बुक्‍का फाड़कर नहीं रोया
    क्‍योंकि सिर्फ चिट्ठाकार नहीं हूं
    व्‍यंग्‍यकार भी हूं
    इसलिए अपने पर रोना नहीं
    सिर्फ हंसना और हंसाना ही जानता हूं
    हंसने-हंसाने को इंसानियत का
    परम नेक धर्म मानता हूं।

    व्‍यंग्‍यकार नेक होता है
    समीरभाई नेक हैं
    अपने बारे में कैसे कहूं
    शर्म मुझे यूं तो आती नहीं
    आती है तो शर्माती नहीं
    चेहरे पर सिर्फ खिलखिलाती है।

    जैसे उड़नतश्‍तरी एकाएक उड़ गई थी
    सूजी के हलवे की खुशबू से
    मेरी कविता भी उड़ रही है
    आपके चेहरे की बोरीय सूरत देखकर।

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  3. समीर जी से मुलाकात रोचक रही और यही उनके लेखन मे दिखता है जब भी पढो एक अलग सा मंज़र नज़र आता है एक नयी सी दुनिया।

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  4. कभी चंचल,कभी शरारती, कभी धीर-गंभीर
    किसे नहीं भाते निश्छल-निर्मल समीर !

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  5. समीर भाई के क्या कहने ...
    साक्षात्कार लाजवाब रहा ...

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  6. दादा तो बस दादा है. नए ब्लोगर्स को उन्होंने अपने कमेंट्स के द्वारा लिखने को प्रेरित किया. और हाँ .............जगह जगह हर ब्लॉग पर उनका नाम पढकर ही मैं इन्हें पहचानने लगी थी. बहुत अच्छा लिखते तो हैं ही..........बहुत प्यारे इंसान भी हैं.मुझ जैसे इनके बहुत सारे चाहने वाले होंगे पर.......मेरे लिए तो मेरा 'दादा' बस एक है.
    सुमित! उनकी आवाज़ सुनी है? नही तो सुनना.............इनकी आवाज़ बहुत सुहावनी है.जिसे मीठी सी कह सकते हैं.जब पहली बार फोन पर सुनी तो ......दंग रह गई.इतनी प्यारी आवाज़ किसकी है ? ''मैं समीर ....''
    ' ' हा हा हा दादा !...........'
    और............. वो आवाज़ आज भी मेरे कानों मे गूंजती है.कोई बच्चा हो जैसे उस ओर. जियो दादा!

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  7. बहुत अच्छा लगा समीर जी के बारे मे जान कर, लेकिन हम अनजाने ही कब थे :)

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  8. उड़नतश्तरी नाम तो है,
    पर वह यहीं-कहीं हमारे पास ही होती है.
    जब जी चाहता है,
    उससे हमारी-आपकी ,सबकी
    बातें होती हैं !

    दर-असल ,
    आदमी जो दिखता है,
    उससे भी ज़्यादा कोमल और महीन होता है.
    नाम भले हवा में हो,पर पाँव हमेशा ज़मीन में होता है !

    सादर ,समीर के लिए !

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  9. वाह जी बल्ले बल्ले. अच्छा लगा समीर जी को पढ़ कर. ☺

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  10. आपके ब्लॉग में पहली बार आया हूँ, आकर अच्छा लगा. समीर जी के साथ साथ अन्य ब्लॉग लेखको के साक्षात्कार का पठन किया. सराहनीय प्रस्तुति,शुभकामनाये.

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  11. आपके ब्लॉग में पहली बार आया हूँ, आकर अच्छा लगा. समीर जी के साथ साथ अन्य ब्लॉग लेखको के साक्षात्कार का पठन किया. सराहनीय प्रस्तुति,शुभकामनाये.

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  12. एक और मुलाकात हुई उड़न जी से
    आभार आपका

    वैसे श्रीमान तश्तरी ने बताया नहीं कि वे भिलाई में निक्कर संभाले पढ़ने जाते थे!?

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  13. बहुत बढ़िया लगा आपलोगों की ये बातचीत पढ़कर | आपका आभार | समीर लाल जी की जो राय है वो लगभग सच्चे ब्लॉगर की राय है | बहुत खूब |

    मेरी कविता:वो एक ख्वाब था

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  14. घनघोर रपटकार बने हुए हैं जी आप । देस बिदेस से अंतरिक्ष तक सब जगह का रिपोर्टिंग धुंआधार चल रहा है । जय हो । एलियन बबा तो हमरे परम संगी हैं । बहुत मज़ा आया बहुते मज़ा जी

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  15. bahut hi sundar varnan raha aapka...is tarah ka post maine pahli baar read kiya hai...shukriya sumit ji...

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  16. सुमित जी,
    बहुत बढ़िया काम है यह.... बल्कि एक आन्दोलन की तरह चला रहे हैं आप. ब्लोगर बिरादिरी को करीब लाने में यह अभिनव कदम है. क्रम बनाये रखें.... चहेते ब्लोगर्स के भावों को पढने में अच्छा लग रहा है.

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  17. बहुत ही बढ़िया साक्षात्कार आपकी इस पोस्ट के बहाने हमे भी मौका मिला समीर लाल जी को थोड़ा करीब से जानने का मौका मिला उसके लिए आपका आभार साथ ही वंदना जी की बात से भी सहमत हूँ एक अलग ही पहचान है एक अलग ही दुनिया है उनकी उनके ब्लॉग पर॥

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  18. समीर लाल जी तो ’हिंदी ब्लाग जगत’ के पितामह हॆं.अपनी उडनतश्तरी में बॆठकर,कहीं भी पहुंच सकते हॆं.वर्ष-2007 में जब मॆंने ब्लागिंग शुरु की थी,तो सबसे पहली टिप्पणी-उन्हीं की मिली थी.आप किसी भी ब्लाग पर जाइए,उडनतश्तरी वहां,पहले से ही मॊजूद होगी.यह मेरा सॊभाग्य हॆ कि मॆं सशरीर भी उनके दर्शन कर चुका हूं.वाकई वे सर्वव्यापी हॆं.आपके साक्षात्कार में भी मजा आ गया.बहूत खूब!

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  19. आपकी कलम से आदरणीय समीर जी के बारे में जानकर अच्‍छा लगा ..

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  20. समीर लाल जी तो ’हिंदी ब्लाग जगत’ के पितामह हॆं.अपनी उडनतश्तरी में बॆठकर,कहीं भी पहुंच सकते हॆं.वर्ष-2007 में जब मॆंने ब्लागिंग शुरु की थी,तो सबसे पहली टिप्पणी-उन्हीं की मिली थी.आप किसी भी ब्लाग पर जाइए,उडनतश्तरी वहां,पहले से ही मॊजूद होगी.यह मेरा सॊभाग्य हॆ कि मॆं सशरीर भी उनके दर्शन कर चुका हूं.वाकई वे सर्वव्यापी हॆं.आपके साक्षात्कार में भी मजा आ गया.बहूत खूब!

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  21. समीर लाल जी यूँही उड़नतश्तरी में उड़ते रहे.सार्थक पोस्ट.

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  22. आप सबके स्नेह का बहुत आभार- इसी तरह बनाये रखिये. सब एक साथ चलते रहेंगे...

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  23. समीर लाल जी वाकई बड़े इंसान है, साहित्य के समंदर में गोताखोर हैं... जब भी अच्छा पढते हैं, पूरी समझ के साथ उनकी टिप्पणी होती हैं... इस दिलखुश इंसान हर पल अपने आप को एक मुकाम पर पहुंचाता हैं, यही तो उस आदमी का सही दर्शन हैं.... सलाम मेरे दोस्त !

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  24. बहुत बढ़िया लगा...साक्षात्कार

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  25. पढ़कर आनंद आ गया। बहुत अच्छा लगा समीर जी का साक्षात्कार।आभार!

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  26. बहुत सुंदर....
    रही बात हलुए की ... तो वो हम लोग खा लेंगे.,

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