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मंगलवार, 25 दिसंबर 2018

स्मार्ट आदमी


हमें नहीं मतलब
अपने आसपास कुछ भी 
घटित होने से 
किसी के जीने-मरने 
हँसने या रोने से 
न ही हमें 
ये जानने की है इच्छा कि
प्रकृति की सुंदरता का 
वध करके कैसे रोज
उग रहे हैं कंक्रीट के
नए-नए जंगल 
और भला कैसे 
प्राकृतिक संसाधनों का
गला घोंट कर 
उगाई जा रही है
विनाश की लहलहाती फसल
हमें नहीं पड़ता फर्क कि
प्रगति की आग का धुआँ
प्रदूषण का भेष धर
फूँके जा रहा है 
मानव सभ्यता के कलेजे को 
हम वास्तव में नहीं हैं
बिलकुल भी चिंतित
ऐसी-वैसी फालतू की
किसी भी बात पर 
क्योंकि हमें भली-भांति 
भान है इस तथ्य का कि
स्मार्ट फोन की संगत में
दरअसल हमारी तरह 
अब हर आदमी
स्मार्ट हो गया है।
लेखक - सुमित प्रताप सिंह

रविवार, 2 दिसंबर 2018

नन्हे कदम


नन्हे कदम पड़ें जो घर में
खुशहाली आ जाती है
रौनक सी घर में रहती है
नव ऊर्जा इसमें समाती है

बालक का रोना-धोना भी
मन-मस्तिष्क को सुख देता है
छोटे-मोटे कष्टों को तो
ये सुख यूँ ही हर लेता है
हृदय में हिलोरें उठती हैं
खुशी से फूलती छाती है

बेफिक्री कर जाती है कट्टी
जिम्मेदारी गले आ मिलती है
भावी जीवन की योजनाओं में  
तन-मन की चक्की पिलती है
स्वप्न देख उन्हें सच करने को
मन की भावनाएं इठलाती हैं
लेखक - सुमित प्रताप सिंह, नई दिल्ली