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सोमवार, 31 अक्टूबर 2016

व्यंग्य : कंस का प्रतिशोध


 विष्णु जी को उदास हो किन्हीं ख्यालों में खोए देखकर लक्ष्मी जी से रहा नहीं गया और उनसे पूछ ही लिया।
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प्रभु किन विचारों में खोए हुए हैं?
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बस ऐसे ही कुछ सोच रहे थे।
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कुछ न कुछ तो बात है प्रभु। आप यूँ ही गुमसुम और उदास नहीं हो सकते।
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नहीं-नहीं देवी ऐसी कोई विशेष बात नहीं है।
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प्रभु शायद मेरी सेवा में कोई कमी रह गयी है।
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मैंने कहा न लक्ष्मी ऐसी कोई बात नहीं है।
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तो जो भी बात है कृपया मुझे बताएँ।
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द्वापर युग में हमने कृष्ण का अवतार लिया था।
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हाँ तो उस युग में हमने भी रुकमणि के रूप में आप संग अवतार लिया था।
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हाँ बिलकुल! उस युग में हमने अपने अत्याचारी मामा कंस और उसके दुष्ट सहयोगियों का वध किया था।
तो!
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तो हुआ ये कि कंस ने मरते हुए चुपके से हमारे पाँव पकड़कर अपने कर्मों के लिए क्षमा माँगी और हमसे धोखे से एक वरदान ले लिया।
धोखे से! किन्तु मैंने तो ये सुना है कि भोले शंकर ही भोलेपन के कारण धोखे में फँसते हैं पर आप भी...।
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अब क्या करतेउस समय मानवातार में कुछ पल के लिए बुद्धि भी मानवीय हो गयी थी इसलिए धोखे में फँस गए।
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आप तो फँस गए और साथ ही मुझे भी फँसवा दिया।
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वो कैसे?
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अभी तक तो मैं और सरस्वती अपनी सहेली पार्वती का उनके पति के भोलेपन के लिए मजाक उड़ाती थीं, लेकिन अब सरस्वती और पार्वती मुझे जीने नहीं देंगी।
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अरे भई भूल हो गयी सो हो गयी।
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वैसे कंस ने आपसे वो कौन सा वर लिया था जिसने आपको इतनी परेशानी में डाल दिया?
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उसने वर माँगा था कि अगले युग उसका जन्म कंस के रूप में न हो।
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कंस के रूप में नहीं तो फिर किस रूप में वह जन्म लेना चाहता था?
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वह मेरे रूप में जन्म लेना चाहता था।
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इसका अर्थ है कि मरते समय उसको वास्तव में सद्बुद्धि आ गयी थी।
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देवी जैसे कि कुत्ते की पूँछ कभी सीधी नहीं हो सकती, उसी तरह दुष्ट प्रवृत्ति के लोग अपनी दुष्टता से कभी भी बाज नहीं आ सकते।
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अब इसमें दुष्टता वाली बात क्या हो गयीउस बेचारे ने तो तुम्हारे आदर्शों से प्रभावित होकर तुम्हारे रूप में जन्म लेने का वर माँगा और आप उसे दुष्ट मानने पर तुले हुए हैं।
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देवी यही तो उसकी दुष्टता थी।
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वो भला कैसे?
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उसने मरते समय अपने साथियों व अपनी मृत्यु का बदला लेने के लिए षड़यंत्र रचा था।
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कैसा षड़यंत्र प्रभु?
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कंस द्वापर युग में तो हमारा बाल-बांका नहीं कर सकाकिन्तु कलियुग में उसने हमारे नाम पर पूर्व योजनानुसार ऐसी कालिख पोती है कि लोग हमारा  नाम लेने से भी कतराने लगे हैं और जो लोग नाम ले भी रहे हैं वो अभद्रतापूर्वक ले रहे हैं।
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अच्छा ऐसी बात है। वैसे प्रभु कंस ने कहाँ और किस नाम से जन्म लिया है?
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उस दुष्ट ने भारत देश में मेरे पर्यावाची नाम से जन्म लिया है और इस समय वहाँ के एक तथाकथित राष्ट्रभक्त विश्वविद्यालय में अपने हरकतों से मेरे नाम का मानमर्दन करने में लगा हुआ है।
इतना कहकर विष्णु जी ने गहरी साँस छोड़ी और उदास हो फिर से ध्यान मग्न हो गए।

लेखक : सुमित प्रताप सिंह